अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 21/ मन्त्र 5
समि॑न्द्र रा॒या समि॒षा र॑भेमहि॒ सं वाजे॑भिः पुरुश्च॒न्द्रैर॒भिद्यु॑भिः। सं दे॒व्या प्रम॑त्या वी॒रशु॑ष्मया गोअग्र॒याश्वा॑वत्या रभेमहि ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । इ॒न्द्र॒ । रा॒या । सम् । इ॒षा । र॒भे॒म॒हि॒ । सम् । वाजे॑भि: । पु॒रु॒ऽच॒न्द्रै: । अ॒भिद्यु॑ऽभि: ॥ सम् । दे॒व्या । प्रऽम॑त्या । वी॒रशु॑ष्मया । गोऽअ॑ग्रया । अश्व॑ऽवत्या । र॒भे॒म॒हि॒ ॥२१.५॥
स्वर रहित मन्त्र
समिन्द्र राया समिषा रभेमहि सं वाजेभिः पुरुश्चन्द्रैरभिद्युभिः। सं देव्या प्रमत्या वीरशुष्मया गोअग्रयाश्वावत्या रभेमहि ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । इन्द्र । राया । सम् । इषा । रभेमहि । सम् । वाजेभि: । पुरुऽचन्द्रै: । अभिद्युऽभि: ॥ सम् । देव्या । प्रऽमत्या । वीरशुष्मया । गोऽअग्रया । अश्वऽवत्या । रभेमहि ॥२१.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 21; मन्त्र » 5
विषय - परमेश्वर और राजा।
भावार्थ -
हे (इन्द्र) राजन् ! परमेश्वर ! हम (राया) धन से (सम् रभेमहि) युक्त हों। (इषा) अन्न और बल से (सं रभेमहि) युक्त हों। (पुरुचन्द्रैः) बहुत आह्लादक पदार्थों से युक्त, (अभिद्युभिः) सर्वत्र कान्तियुक्त, (वाजैः) बलों और ऐश्वर्यों से (सं रभेमहि) युक्त हों। (वीरशुष्मया) वीर सैनिकों के बलवाली (गो-अग्रया) गौ आदि पशुओं को मुख्य धन रूप से या उद्देश्य रूप से रखने वाली, (अश्वावत्या) घोड़ों से युक्त, (देव्या) विजयशील (प्रमत्या) शत्रुओं का अच्छी प्रकार स्तम्भन करने में समर्थ सेना से (सं रभेमहि) युक्त हों। अथवा—(देव्या प्रमत्या) उत्कृष्ट मतिरूप देवी, सात्विक व्यवहार बुद्धि से युक्त हो जो (वीरशुष्मया) प्राणों के बल से बलवती, (गो-अग्रया) वाणी या ज्ञानेन्द्रियों को मुख्य रखने वाली और (अश्वावत्या) कर्मेन्द्रियों के बल से भी युक्त हों। अथवा—(प्रमत्या देव्या) उत्कृष्ट ज्ञानवाली देवी, विद्वानों की परिष्यत् या राजशक्ति या स्त्री से युक्त हों।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - सव्य आंगिरस ऋषिः। इन्द्रो देवता। १-९ जगन्यः। १०, ११ त्रिष्टुभौ। एकादशर्चं सूक्तम्॥
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