अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 8/ मन्त्र 4
सूक्त - अथर्वा
देवता - विश्वे देवाः
छन्दः - चतुष्पदा विराद्बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्
सूक्तम् - राष्ट्रधारण सूक्त
इ॒हेद॑साथ॒ न प॒रो ग॑मा॒थेर्यो॑ गो॒पाः पु॑ष्ट॒पति॑र्व॒ आज॑त्। अ॒स्मै कामा॒योप॑ का॒मिनी॒र्विश्वे॑ वो दे॒वा उ॑प॒संय॑न्तु ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒ह । इत् । अ॒सा॒थ॒ । न । प॒र: । ग॒मा॒थ॒ । इर्य॑: । गो॒पा: । पुष्ट॒ऽपति॑: । व॒: । आ । अ॒ज॒त् । अ॒स्मै । कामा॑य । उप॑ । का॒मिनी॑: । विश्वे॑ । व॒: । दे॒वा: । उ॒प॒ऽसंय॑न्तु ॥८.४॥
स्वर रहित मन्त्र
इहेदसाथ न परो गमाथेर्यो गोपाः पुष्टपतिर्व आजत्। अस्मै कामायोप कामिनीर्विश्वे वो देवा उपसंयन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठइह । इत् । असाथ । न । पर: । गमाथ । इर्य: । गोपा: । पुष्टऽपति: । व: । आ । अजत् । अस्मै । कामाय । उप । कामिनी: । विश्वे । व: । देवा: । उपऽसंयन्तु ॥८.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 8; मन्त्र » 4
विषय - राजा के कर्तव्य ।
भावार्थ -
राजा अपने अधिकारीगण और प्रजाओं को उपदेश करता है कि-हे प्रजाओ ! (इह इत्) यहां ही, इसी राष्ट्र में ही (असाथ) सुखपूर्वक निवास करो । (परः) दूर (न) मत (गमाथ) जाओ । इसी प्रकार का उपदेश राजा अपनी सेनाओं के प्रति भी करता है। (इर्यः) तुमको सन्मार्ग पर चलाने हारा, आज्ञापक (गोपाः) गौओं को पालन करने हारे गोपति के समान तुम प्रजाओं और सेनाओं का पालक, (पुष्टपतिः) तुम्हारे पुष्टिकारक पदार्थों का भी परिपालक (वः) तुमको (आजत्) ठीक मार्ग पर चला रहा है । आप लोग (अस्मै) इसके (कामाय) अभिलाषा के अनुकूल ही (कामिनीः) अपनी अभिलाषा उसी प्रकार बनाये रक्खो जिस प्रकार अभिलाषा वाली स्त्रियां अपने साधु और प्रिय पतियों के प्रति रहती हैं। तभी (वः) तुमको (विश्वे देवाः) समस्त विद्वत्गण भी (उप संयन्तु) प्राप्त हों, तुम्हारे आज्ञावर्ती और सहायक हों ।
राजा सब विभागों पर अध्यक्ष नियत करे, उसके अनुसार सब चलें, तभी राष्ट्र के विद्वद्गुण भी उनकी सहायता करें ।
टिप्पणी -
(च०) ‘उपसंनयन्तु’ (तृ०) उपकायिनीस्त, उपकामिनीरित इति वा ह्विटिनिकामितः पाठः । (तृ० च०) अस्मै वः कामा उपकामिनी विश्वे देवा उपसस्यामिह इति पैप्प० सं० (प्र०) ‘नपुर:’ इति सायणा-भिमतः पाठः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। मित्रो विश्वेदेवा वा देवता । २, ६ जगत्यौ । ४ चतुष्पदा विराड् बृहतीगर्भा । त्रिष्टुप् । ५ अनुष्टुप् । १, ३ त्रिष्टुभौ । षडृचं सूक्तम् ॥
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