Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 129/ मन्त्र 2
येन॑ वृ॒क्षाँ अ॒भ्यभ॑वो॒ भगे॑न॒ वर्च॑सा स॒ह। तेन॑ मा भ॒गिनं॑ कृ॒ण्वप॑ द्रा॒न्त्वरा॑तयः ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । वृ॒क्षान् । अ॒भि॒ऽअभ॑व: । भगे॑न । वर्च॑सा । स॒ह । तेन॑ । मा॒ । भ॒गिन॑म् । कृ॒णु॒ । अप॑ । द्रा॒न्तु॒ । अरा॑तय: ॥१२९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
येन वृक्षाँ अभ्यभवो भगेन वर्चसा सह। तेन मा भगिनं कृण्वप द्रान्त्वरातयः ॥
स्वर रहित पद पाठयेन । वृक्षान् । अभिऽअभव: । भगेन । वर्चसा । सह । तेन । मा । भगिनम् । कृणु । अप । द्रान्तु । अरातय: ॥१२९.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 129; मन्त्र » 2
विषय - राजा का ऐश्वर्यमय रूप।
भावार्थ -
शंशपा वृक्ष (येन) जिस सामर्थ्य से बढ़कर (वृक्षान् अभि अभवः) और वृक्षों से शक्ति, कठोरता, दृढ़ता, बल और ऊँचाई में बढ़ जाता है और उनको दबा लेता है उसी प्रकार हे राजन् ! जिस ऐश्वर्य और तेज से तू परिपुष्ट होकर सब पुरुषों को अपने अधीन कर लेता है उस (भगेन वर्चसा सह) ऐश्वर्य और तेज से (मा भगिनं कृणु) मुझे भी ऐश्वर्यवान् कर और (अप द्रान्तु अरातयः) मेंरे शत्रु मुझ से दूर हों।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वाङ्गिरा ऋषिः। भगो देवता। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
इस भाष्य को एडिट करें