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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 9/ मन्त्र 1
    सूक्त - उपरिबभ्रवः देवता - पूषा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - स्वस्तिदा पूषा सूक्त

    प्रप॑थे प॒थाम॑जनिष्ट पू॒षा प्रप॑थे दि॒वः प्रप॑थे पृथि॒व्याः। उ॒भे अ॒भि प्रि॒यत॑मे स॒धस्थे॒ आ च॒ परा॑ च चरति प्रजा॒नन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रऽप॑थे । प॒थाम् । अ॒ज॒नि॒ष्ट॒ । पू॒षा । प्रऽप॑थे । दि॒व: । प्रऽप॑थे । पृ॒थि॒व्या: । उ॒भे इति॑ । अ॒भि । प्रि॒यत॑मे॒ इति॑ प्रि॒यऽत॑मे । स॒धऽस्थे इति॑ स॒धऽस्थे॑ । आ । च॒ । परा॑ । च॒ । च॒र॒ति॒ । प्र॒ऽजा॒नन् ॥१०.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रपथे पथामजनिष्ट पूषा प्रपथे दिवः प्रपथे पृथिव्याः। उभे अभि प्रियतमे सधस्थे आ च परा च चरति प्रजानन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रऽपथे । पथाम् । अजनिष्ट । पूषा । प्रऽपथे । दिव: । प्रऽपथे । पृथिव्या: । उभे इति । अभि । प्रियतमे इति प्रियऽतमे । सधऽस्थे इति सधऽस्थे । आ । च । परा । च । चरति । प्रऽजानन् ॥१०.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 9; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (पूषा) समस्त संसार का पोषक परमात्मा (पथाम्) समस्त मार्गों या लोकों के (प्रपथे) उत्कृष्ट, उच्चतर मार्ग में और (दिवः प्रपथे) द्यौ = सूर्य के मार्ग में और (पृथिव्याः प्रपथे) पृथिवी के मार्ग में (अजनिष्ट) विद्यमान है (प्रियतमे) अत्यन्त प्रियतम (सधस्थे) एक ही स्थान अर्थात् आकाश में विद्यमान है द्यौ और पृथिवी दोनों के (अभि) सन्मुख उन दोनों को (प्रजानन्) जानता हुआ (आ च चरति परा च) उनके पास और दूर सर्वत्र व्यापक है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - उपरिबभ्रव ऋषिः। ऋग्वेदे देवश्रवा यामायन ऋषिः। पूषा देवता। १, २ त्रिष्टुभौ। ३ त्रिपदा आर्षी गायत्री। ४ अनुष्टुप्। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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