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यजुर्वेद अध्याय - 25

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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 18
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - ईश्वरो देवता छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः
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    तमीशा॑नं॒ जग॑तस्त॒स्थुष॒स्पतिं॑ धियञ्जि॒न्वमव॑से हूमहे व॒यम्।पू॒षा नो॒ यथा॒ वेद॑सा॒मस॑द् वृ॒धे र॑क्षि॒ता पा॒युरद॑ब्धः स्व॒स्तये॑॥१८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम्। ईशा॑नम्। जग॑तः। त॒स्थुषः॑। पति॑म्। धि॒यं॒जि॒न्वमिति॑ धियम्ऽजि॒न्वम्। अव॑से। हू॒म॒हे॒। व॒यम्। पू॒षा। नः॒। यथा॑। वेद॑साम्। अस॑त्। वृ॒धे। र॒क्षि॒ता॒। पा॒युः। अद॑ब्धः। स्व॒स्तये॑ ॥१८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तमीशानञ्जगतस्तस्थुषस्पतिञ्धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयम् । पूषा नो यथा वेदसामसद्वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तम्। ईशानम्। जगतः। तस्थुषः। पतिम्। धियंजिन्वमिति धियम्ऽजिन्वम्। अवसे। हूमहे। वयम्। पूषा। नः। यथा। वेदसाम्। असत्। वृधे। रक्षिता। पायुः। अदब्धः। स्वस्तये॥१८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 18
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    व्याखान -

    हे सुख और मोक्ष की इच्छा करनेवाले जनो! उस परमात्मा को ही (हूमहे) हम लोग प्राप्त होने के लिए अत्यन्त स्पर्धा करते हैं कि उसको हम कब मिलेंगे, क्योंकि वह (ईशानम्) सब जगत् का स्वामी है और ईषण [उत्पादन] करने की इच्छा करनेवाला है। (जगतः तस्थुषः पतिम्) दो प्रकार का जगत है-चर और अचर-इन दोनों प्रकार के जगत् का पालन करनेवाला वही है, (धिञ्जिन्वम्) विज्ञानमय, विज्ञानप्रद और तृतिकारक ईश्वर से अन्य कोई नहीं है। उसको (अवसे) अपनी रक्षा के लिए हम स्पर्धा [इच्छा] से आह्वान करते हैं, "यथा" जैसे वह ईश्वर (नः पूषा) हमारे लिए पोषणप्रद है, वैसे ही (वेदसाम्) धन और विज्ञानों की वृद्धि का (रक्षिता) रक्षक है तथा (स्वस्तये) निरुपद्रवता के लिए हमारा (पायुः)  पालक वही है और (अदब्धः)  हिंसारहित है, इसलिए ईश्वर जो निराकार, सर्वानन्दप्रद है, हे मनुष्यो ! उसको मत भूलो, बिना उसके कोई सुख का ठिकाना नहीं है ॥ ५० ॥

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