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यजुर्वेद अध्याय - 25

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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 21
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    भ॒द्रं कर्णे॑भिः शृणुयाम देवा भ॒द्रं प॑श्येमा॒क्षभि॑र्यजत्राः। स्थि॒रैरङ्गै॑स्तुष्टु॒वास॑स्त॒नूभि॒र्व्यशेमहि दे॒वहि॑तं॒ यदायुः॑॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भ॒द्रम्। कर्णे॑भिः। शृ॒णु॒या॒म॒। दे॒वाः॒। भ॒द्रम्। प॒श्ये॒म॒। अ॒क्षभि॒रित्य॒क्षऽभिः॑। य॒ज॒त्राः॒। स्थि॒रैः। अङ्गैः॑। तु॒ष्टु॒वासः॑। तु॒स्तु॒वास॒ इति॑ तुस्तु॒ऽवासः॑। त॒नूभिः॑। वि। अ॒शे॒म॒हि॒। दे॒वहि॑त॒मिति॑ दे॒वऽहि॑तम्। यत्। आयुः॑ ॥२१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भद्रङ्कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रम्पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाँसस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितँयदायुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    भद्रम्। कर्णेभिः। शृणुयाम। देवाः। भद्रम्। पश्येम। अक्षभिरित्यक्षऽभिः। यजत्राः। स्थिरैः। अङ्गैः। तुष्टुवासः। तुस्तुवास इति तुस्तुऽवासः। तनूभिः। वि। अशेमहि। देवहितमिति देवऽहितम्। यत्। आयुः॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 21
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    व्याखान -

    हे देवेश्वर! (देवाः)  विद्वानो! हम लोग (कर्णेभिः, भद्रं, शृणुयाम) कानों से सदैव भद्र=कल्याण को ही सुनें, अकल्याण की बात भी हम कभी न सुनें । (यजत्राः)  हे यजनीयेश्वर! हे यज्ञकर्त्तार: ! (अक्षभिः, भद्रं, पश्येम) हम आँखों से कल्याण [मङ्गलसुख] को ही सदा देखें। हे जगदीश्वर! हे जनो! (स्थिरैः, अङ्गैः, तनूभिः) हमारे सब अङ्ग-उपाङ्ग [श्रोत्रादि इन्द्रिय तथा सेनादि उपाङ्ग] स्थिर [दृढ़] सदा रहें, जिससे हम लोग स्थिरता से (तुष्टुवांसः) आपकी स्तुति और आपकी आज्ञा का अनुष्ठान सदा करें तथा हम लोग (देवहितं, यद्, आयुः)  आत्मा, शरीर, इन्द्रिय और विद्वानों के हितकारक आयु को विविध सुखपूर्वक प्राप्त हों, अर्थात् सदा सुख में ही रहें ॥ २७ ॥

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