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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 187 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 187/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - ओषधयः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    स्वादो॑ पितो॒ मधो॑ पितो व॒यं त्वा॑ ववृमहे। अ॒स्माक॑मवि॒ता भ॑व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वादो॒ इति॑ । पितो॒ इति॑ । मधो॒ इति॑ । पि॒तो॒ इति॑ । व॒यम् । त्वा॒ । व॒वृ॒म॒हे॒ । अ॒स्माक॑म् । अ॒वि॒ता । भ॒व॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वादो पितो मधो पितो वयं त्वा ववृमहे। अस्माकमविता भव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वादो इति। पितो इति। मधो इति। पितो इति। वयम्। त्वा। ववृमहे। अस्माकम्। अविता। भव ॥ १.१८७.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 187; मन्त्र » 2
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे परमात्मन् त्वन्निर्मितं स्वादो पितो मधो पितो त्वा वयं ववृमहे। अतस्त्वं तदन्नपानदानेनास्माकमविता भव ॥ २ ॥

    पदार्थः

    (स्वादो) स्वादु (पितो) पेयम् (मधो) मधुरम् (पितो) पालकमन्नम् (वयम्) (त्वा) तत्। अत्र व्यत्ययः। (ववृमहे) स्वीकुर्महे (अस्माकम्) (अविता) रक्षकः (भव) ॥ २ ॥

    भावार्थः

    मनुष्यैर्मधुरादिरसयोगेन स्वादिष्ठमन्नं व्यञ्जनं चायुर्वेदरीत्या निर्माय सदा भोक्तव्यम्। यद्रोगनाशकत्वेनायुर्वर्द्धनाद्रक्षकं भवेत् ॥ २ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! आपके रचे (स्वादो) स्वादु (पितो) पीने योग्य जल तथा (मधो) मधुर (पितो) पालना करनेवाले (त्वा) उस अन्न को (वयम्) हम लोग (ववृमहे) स्वीकार करते हैं इससे आप उस अन्नपान के दान से (अस्माकम्) हमारी (अविता) रक्षा करनेवाले (भव) हूजिये ॥ २ ॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को मधुरादि रस के योग से स्वादिष्ठ अन्न और व्यञ्जन को आयुर्वेद की रीति से बनाकर सदा भोजन करना चाहिये, जो रोग को नष्ट करने से आयुर्दा बढ़ाने से रक्षा करनेवाला हो ॥ २ ॥

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    विषय

    स्वादु व मधुर अन्न

    पदार्थ

    १. हे पितो रक्षक अन्न ! (स्वादो) = जो तू स्वादवाला है, हृदय को प्रिय प्रतीत होता है, हृद्य है । (मधो पितो) = हे अन्न ! जो तू मधुर है— ओषधियों के सारभूत मधु [शहद] के समान गुणकारी है, ऐसे त्वा तुझे (वयम्) = हम (ववृमहे) = वरण करते हैं। अन्न के चुनाव में दो बातें महत्त्वपूर्ण हैं- एक वह रुचिकर हो और दूसरे वह मधु के समान सारभूत हो । जो अन्न रुचिकर न होगाप्रसन्नतापूर्वक न खाया जाएगा, वह शरीर में उत्तम धातुओं का निर्माण करनेवाला न होकर विषसा बन जाएगा। सम्भवतः इस प्रकार का अन्न ही दीर्घकाल तक अरुचि से खाये जाने पर कैंसर का कारण बन जाता है । इसी दृष्टिकोण से मनु के ये शब्द स्मरणीय हैं कि- 'दृष्ट्वा हृष्येत् प्रसीदेच्च'– भोजन को देखकर हर्ष व प्रसाद का अनुभव करे । २. हे अन्न! तू (अस्माकम्) = हमारा (अविता) = रक्षण करनेवाला (भव) = हो । रक्षणात्मक [protective] भोजन ही सर्वोत्तम है। ऐसा ही भोजन दीर्घायुष्य का कारण बनता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- भोजन रुचिकर व हृद्य होना चाहिए। नीरस भोजन ठीक नहीं है। यह भोजन मधुर होना चाहिए । ओषधियों के सारभूत मधु के समान यह सारवान् हो ।

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    विषय

    अन्नवत् पालक प्रभु की उपासना।

    भावार्थ

    हे ( पितो ) सबके पालक अन्न के समान ( स्वादो ) स्वादु आनन्द देने वाले और ‘स्वादु’ अर्थात् स्वयं अपने आत्मा द्वारा स्वीकारने और अनुभव करने योग्य, अन्तरात्म-प्रत्ययवेद्य, स्वानुभूतिमात्र एक प्रमाण से जानने योग्य ! हे ( मधो पितो ) अन्न के समान मधुर एवं ( मधो ) अति आनन्ददायक ! ( त्व) तुझे (वयं) हम (ववृमहे) वरण करते हैं । तुझे ही हम सब से श्रेष्ठ जानकर उपास्य रूप से चुनते हैं। तू ही (अस्माकम्) हमारा (अविता) रक्षक, प्रकाशक, प्रिय, तृप्तिकारक, वृद्धिकारक, शरण में लेने हारा स्वामी (भव) हो।

    टिप्पणी

    ‘अविता’—अव रक्षण, गति, कान्ति, प्रीति, तृप्ति, अवगम, प्रवेश, श्रवण, स्वाम्यर्थयाचन, किया, इच्छा, दीप्ति, अवाप्ति, आलिंगन, हिंसा, दान, भाग, वृद्धिषु ॥ भ्वादिः ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्य ऋषिः॥ ओषधयो देवता॥ छन्दः- १ उष्णिक् । ६, ७ भुरिगुष्णिक् । २, ८ निचृद गायत्री । ४ विराट् गयात्री । ९, १० गायत्री च । ३, ५ निचृदनुष्टुप् । ११ स्वराडनुष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी नेहमी मधुर रसाच्या योगाने स्वादिष्ट अन्न व व्यंजन आयुर्वेदिक पद्धतीने बनवून भोजन करावे. जे रोग नाहीसे करणारे व आयुष्य वाढवून रक्षण करणारे असावे. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O the food of life! O the drink for life! Delicious are you! Honey sweet are you! We love and cherish you with thanks and gratitude to the Lord of life and giver of food and nourishment. Be our saviour, preserver, sustainer, protector and promoter.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The qualities of good meals.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O God! we take tasty drink and savory meals given by you. Be our Protector and grant all this (meals and drink) to us.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    NA

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should take nourishing and delicious meals prepared in accordance with Ayurvedic and dietetic techniques. It keeps away all diseases, and imparts longevity and preserves health.

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