ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 66/ मन्त्र 4
ऋषि॒र्न स्तुभ्वा॑ वि॒क्षु प्र॑श॒स्तो वा॒जी न प्री॒तो वयो॑ दधाति ॥
स्वर सहित पद पाठऋषिः॑ । न । स्तुभ्वा॑ । वि॒क्षु । प्र॒ऽश॒स्तः । वा॒जी । न । प्री॒तः । वयः॑ । द॒धा॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋषिर्न स्तुभ्वा विक्षु प्रशस्तो वाजी न प्रीतो वयो दधाति ॥
स्वर रहित पद पाठऋषिः। न। स्तुभ्वा। विक्षु। प्रऽशस्तः। वाजी। न। प्रीतः। वयः। दधाति ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 66; मन्त्र » 4
अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स मनुष्यः कीदृशो भवेदित्युपदिश्यते ॥
अन्वयः
यो मनुष्य ओको नेव रण्वः पक्वो यवो नेव पक्वऋषिर्नेव स्तुभ्वा वाजी नेव प्रीतो विक्षु प्रशस्तो जनानां जेता वयो दधाति स क्षेमं दाधार ॥ २ ॥
पदार्थः
(दाधार) धरेत्। अत्र तुजादित्वाद् दीर्घोऽभ्यासः। (क्षेमम्) कल्याणकरं रक्षणम् (ओकः) गृहम् (न) इव (रण्वः) रमणीयः (यवः) सुखकारी धान्यविशेषः (न) इव (पक्वः) उपभोक्तुमर्हः (जेता) उत्कर्षत्वप्रापकः (जनानाम्) मनुष्यादीनाम् (ऋषिः) मन्त्रार्थद्रष्टा विद्वान् विद्याप्रकाशकः (न) इव (स्तुभ्वा) अर्चकः। स्तोभतीत्यर्चतिकर्मसु पठितम्। (निघं०३.१४) (विक्षु) उत्पन्नासु प्रजासु (प्रशस्तः) श्रेष्ठः (वाजी) वेगवानश्वः (न) इव (प्रीतः) कमनीयः (वयः) जीवनम् (दधाति) धरेत् ॥ २ ॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। ये मनुष्या जीवनहेतून् ब्रह्मचर्यादीन् सम्यग् विज्ञाय कार्य्यसिद्धये संप्रयुञ्जते युक्ताहारविहारायोपयुक्तान् पदार्थान् धरन्ति, ते दीर्घायुषो भूत्वा सदा सुखिनो भवन्ति ॥ २ ॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर वह मनुष्य कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थ
जो मनुष्य (ओकः) घर के (न) समान (रण्वः) रमणीयस्वरूप (पक्वः) पके (यवः) सुख करनेवाले यव के (न) समान (ऋषिः) मन्त्रों के अर्थ को जाननेवाले विद्वान् के (न) समान (स्तुभ्वा) सत्कार के योग्य (वाजी) वेगवान् घोड़े के समान (प्रीतः) कमनीय (विक्षु) प्रजाओं में (प्रशस्त) श्रेष्ठ (जनानाम्) मनुष्य आदि प्राणियों को (जेता) सुख प्राप्त करानेवाला (वयः) जीवन (दधाति) धारण करता है, वह (क्षेमम्) रक्षा को (दाधार) धारण करता है ॥ २ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य जीवन के निमित्त ब्रह्मचर्य्यादि कर्मों को काम की सिद्धि के लिये अच्छे प्रकार जानके युक्तिपूर्वक आहार और विहार के अर्थ यथायोग्य पदार्थों को धारण करते हैं, वे बहुत काल पर्यन्त जी के सदा सुखी होते हैं ॥ २ ॥
विषय
क्षेम का धारक
पदार्थ
१. वे प्रभु (क्षेमं दाधार) = प्राणिमात्र के कल्याण का धारण करते हैं । वे (ओकः न) = घर के समान (रण्वः) = रमणीय हैं । जैसे एक मनुष्य घर में आनन्द का अनुभव करता है, उसी प्रकार उस प्रभु में स्थित व्यक्ति एक अवर्णनीय आनन्द पाता है ।
२. (यवः न पक्वः) = यव के समान वे प्रभु पूर्ण परिपक्व हैं । यव की विशेषता है - ‘बुराइयों को दूर करनेवाला तथा अच्छाइयों को मिलानेवाला’ । वे प्रभु भी इसी प्रकार सब बुराइयों से दूर व अच्छाइयों से युक्त हैं । अपने उपासक के लिए वे इस पक्व यव के समान हैं । (जनानां जेता) = लोगों के विजेता हैं, अर्थात् लोगों की प्रत्येक विजय को प्राप्त करानेवाले वे प्रभु ही हैं । सब बुराइयों पर विजय दिलाकर प्रभु ही अपने भक्तों के जीवनों को सुन्दर बनाते हैं । (ऋषिः न) = एक तत्त्वद्रष्टा के समान वे (स्तुभ्वा) = [स्तुभ् to stop, to suppress] सब कष्टों का निवारण करनेवाले हैं । तत्त्वज्ञान देकर भक्तों के कष्टों का अन्त कर देते हैं । (विक्षु) = प्रजाओं में (प्रशस्तः) = वे प्रशस्त हैं । तत्वज्ञान देकर ही वस्तुतः प्रजाओं के जीवन को सुन्दर बनाते हैं ।
४. (वाजी न) = एक शक्तिशाली घोड़े के समान वे (प्रीतः) = प्रीणित करनेवाले हैं । शक्ति देकर प्रीति [प्रसन्नता] उत्पन्न करते हैं और इस प्रकार (वयः) = उत्कृष्ट जीवन को (दधाति) = धारण करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ - वे प्रभु ही वस्तुतः हमारा कल्याण करते हैं । हमारी बुराइयों को दूर करते हैं, शक्ति व ज्ञान देकर जीवन को प्रशस्त बनाते हैं ।
विषय
नाना दृष्टान्तों से वीर पुरुष, नायक, राजा अग्नि तथा परमेश्वर का वर्णन
भावार्थ
राजा ( सृष्टा ) युद्ध के लिये भेजी या तैयार हुई (सेना इव) सेना के समान शत्रु के हृदय में (अमं दधाति) भय को उत्पन्न करे और राष्ट्र में बल की वृद्धि करे, ( अमं दधाति ) और निर्बल राष्ट्रवासी जन की रक्षा करे । ( अस्तुः) बाणों के फेंकने वाले वीर पुरुष की (त्वेषप्रतीका) दीप्ति को अग्रभाग में रखने वाले, तीव्र मुख वाले (दिद्यत् न) खूब गहरे छेदने वाले बाण के समान शत्रुओं को छेदन भेदन या नाश करने वाला और तेजस्वी मुख वाला हो। वह ( यमः ) राष्ट्र का नियन्ता होकर ( जातः ) जो प्रकट वर्तमान उसका स्वामी और या ( यमः) अपने समान बलशाली पुरुष के साथ मिलकर युगल पति पत्नी के समान ( जनित्वम् ) आगे उत्पन्न होने वाले सब पदार्थों को वश कराने वाला हो । वह ही ( कनीनाम् ) कन्याओं के समान नव कान्ति से युक्त, उषाओं के ( जारः ) प्रथम वयस की हानि करके प्रौढ़ता में लाने वाले सूर्य के समान तेजस्वी, उठती प्रजाओं को और अधिक प्रौढ़ ऐश्वर्यवान्, वलवान् बनाने हारा और ( कनीनाम् ) विवाहित पत्नियों के ( पतिः ) पति के समान सम विषम, सब दशाओं में प्रजाओं का सब प्रकार से भरण पोषण करके पालक हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पराशरः शाक्त्य ऋषिः ॥ अग्निर्देवता । छन्दः—१ पंक्तिः । २ भुरिक् पंक्तिः । ३ निचृत्पंक्तिः । ४, ५ विराट् पंक्तिः ॥
विषय
विषय (भाषा)- फिर वह मनुष्य कैसा हो, यह विषय इस मन्त्र में कहा है ॥
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- यः मनुष्यः ओकः न इव रण्वः पक्वः यवः न इव पक्वः ऋषिः न इव स्तुभ्वा वाजी न इव प्रीतः विक्षु प्रशस्तः जनानां जेता वयः दधाति स क्षेमं दाधार ॥२॥
पदार्थ
पदार्थः- (यः)=जो, (मनुष्यः)= मनुष्य, (ओकः) गृहम्=घर के, (न) इव=समान, (रण्वः) रमणीयः=सुन्दर, (पक्वः) उपभोक्तुमर्हः=खाने के योग्य, (यवः) सुखकारी धान्यविशेषः=सुखकारी जौ के, (न) इव=समान और (ऋषिः) मन्त्रार्थद्रष्टा विद्वान् विद्याप्रकाशकः= मन्त्रों के अर्थों के द्रष्टा विद्वान् विद्या के प्रकाशक के, (न) इव=समान, (स्तुभ्वा) अर्चकः= अर्चना करनेवाले और, (वाजी) वेगवानश्वः=वेगवान् घोड़े के, (न) इव=समान, (प्रीतः) कमनीयः= मनभावन, (विक्षु) उत्पन्नासु प्रजासु=उत्पन्न सन्तानों में, (प्रशस्तः) श्रेष्ठः= श्रेष्ठ, (जनानाम्) मनुष्यादीनाम्=मनुष्य आदियों में, (जेता) उत्कर्षत्वप्रापकः=अत्यधिक प्राप्त करानेवाला, (वयः) जीवनम्=जीवन को, (दधाति) धरेत्=धारण करता है, (सः)=वह, (क्षेमम्) कल्याणकरं रक्षणम्= कल्याणकारी और रक्षा के कार्य को, (दाधार) धरेत्=धारण करे ॥२॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य जीवन के लिये ब्रह्मचर्य्य आदि कर्मों को अच्छे प्रकार से जान करके, कार्य की सिद्धि के लिये अच्छी तरह से प्रयोग करते हैं, युक्त आहार विहार के लिये उपयुक्त पदार्थों को धारण करते हैं, वे दीर्घ जीवी होकर के सदा सुखी होते हैं ॥२॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
पदार्थान्वयः(म.द.स.)- (यः) जो (मनुष्यः) मनुष्य (ओकः) घर के (न) समान (रण्वः) सुन्दर और (पक्वः) खाने के योग्य (यवः) सुखकारी जौ के (न) समान और (ऋषिः) मन्त्रों के अर्थों के द्रष्टा विद्या के प्रकाशक विद्वान् के (न) समान (स्तुभ्वा) अर्चना करनेवाले और (वाजी) वेगवान् घोड़े के (न) समान (प्रीतः) मनभावन (विक्षु) उत्पन्न सन्तानों में (प्रशस्तः) श्रेष्ठ (जनानाम्) मनुष्य आदियों में (जेता) अत्यधिक प्राप्त करानेवाला है और (वयः) जीवन को (दधाति) धारण करता है, (सः) वह (क्षेमम्) कल्याणकारी और रक्षा के कार्य को (दाधार) धारण करे ॥२॥
संस्कृत भाग
स्वर सहित पद पाठ दा॒धार॑ । क्षेम॑म् । ओकः॑ । न । र॒ण्वः॑ । यवः॑ । न । प॒क्वः । जेता॑ । जना॑नाम् ॥ ऋषिः॑ । न । स्तुभ्वा॑ । वि॒क्षु । प्र॒ऽश॒स्तः । वा॒जी । न । प्री॒तः । वयः॑ । द॒धा॒ति॒ ॥ विषयः- पुनः स मनुष्यः कीदृशो भवेदित्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- अत्रोपमालङ्कारः। ये मनुष्या जीवनहेतून् ब्रह्मचर्यादीन् सम्यग् विज्ञाय कार्य्यसिद्धये संप्रयुञ्जते युक्ताहारविहारायोपयुक्तान् पदार्थान् धरन्ति, ते दीर्घायुषो भूत्वा सदा सुखिनो भवन्ति ॥२॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी हे जाणावे की विद्येमुळे सम्यक प्रयत्नाने जसे प्रशिक्षणयुक्त सिद्ध सेना शत्रूंना जिंकून विजय मिळविते. जसे धनुर्वेदविद् शत्रूंवर अस्र शस्त्र सोडून त्यांचे छेदन करून त्यांना पलायन करण्यास भाग पाडतात. तसेच उत्तम सेनापती सर्व दुःखांचा नाश करतो. हे तुम्ही जाणा. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
It is the treasure of peace and welfare. Soothing as a home and food as barley, it is the winner of victories for humanity. Worthy of reverence as a seer, it is admired of people. It is worthy of admiration as a war-chariot and bears life, energy and long age for us.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should the man as a leader (Agni) be is taught in the fourth mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
That man enjoys happiness who is like a secure and delightful mansion, who nourishes people like ripe barley, who is conqueror of all men leading them towards the path of progress, who is like a Rishi-seer of the secret of the Vedas and illuminator of true knowledge, who is eminent and best among the people, who is liked by all as a spirited horse by its rider, and thus who leads a noble life.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(ऋषि:) मन्त्रार्थद्रष्टा विद्वान्, विद्याप्रकाशक: = A seer who knows the secret of the Mantra and is illuminator of true knowledge. (ऋषिदर्शनात्-ऋषयोमन्त्रद्रष्टारः -निरुक्ते ) । (ओक:) गृहम् = House or Mansion
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those people are always happy and long-lived who know well the means of longaaH8ble fife like the Brahmacharya (perfect purity and self control) and use them for the accomplishment of their works, who possess and utilies properly all necessary articles for suitable and regular diet and walk etc.
Subject of the mantra
Then, what kind of person should that be?This subject has been discussed in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
(yaḥ) =That, (manuṣyaḥ) =man, (okaḥ) =of house, (na) =like, (raṇvaḥ) =beautiful and, (pakvaḥ) =edible, (yavaḥ) =pleasurable barley, (na) =like and, (ṛṣiḥ)=Seer of the meanings of mantras, revealer of knowledge, scholar, (na) =like (stubhvā) =worshipers and, (vājī) =of swift horse, (na) =like, (prītaḥ) =pleasing, (vikṣu)= among the born children, (praśastaḥ) =best, (janānām)=among human beings etc., (jetā)= is highly attainable and, (vayaḥ) =to life, (dadhāti)= sustains life, (saḥ) =that, (kṣemam)= welfare and protective work (dādhāra) =maintain.
English Translation (K.K.V.)
The man who is as beautiful as a house and edible as pleasurable as to eat barley, the seer of the meanings of mantras, the revealer of knowledge, who worships like a scholar, and who is pleasing to the eye like a swift horse, is the best among the born children, is the best among the others, is the one who gives immense attainments and sustains life. He should perform the task of welfare and protection.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
There is simile as a figurative in this mantra. Those people who know well the duties like celibacy etc. for life, use them well for the accomplishment of their work, and eat healthy food and consume suitable things for life, they live a long life and are always happy.
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