ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 78/ मन्त्र 2
तमु॑ त्वा॒ गोत॑मो गि॒रा रा॒यस्का॑मो दुवस्यति। द्यु॒म्नैर॒भि प्र णो॑नुमः ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । ऊँ॒ इति॑ । त्वा॒ । गोत॑मः । गि॒रा । रा॒यःऽका॑मः । दु॒व॒स्य॒ति॒ । द्यु॒म्नैः । अ॒भि । प्र । नो॒नु॒मः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमु त्वा गोतमो गिरा रायस्कामो दुवस्यति। द्युम्नैरभि प्र णोनुमः ॥
स्वर रहित पद पाठतम्। ऊँ इति। त्वा। गोतमः। गिरा। रायःऽकामः। दुवस्यति। द्युम्नैः। अभि। प्र। नोनुमः ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 78; मन्त्र » 2
अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
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अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः सः विद्वान् कीदृश इत्युपदिश्यते ॥
अन्वयः
हे धनेश ! यथा रायस्कामो गोतमो विद्वान् गिरा त्वा दुवस्यति तथा तमु द्युम्नैः सह वर्त्तमानः वयमभिप्रणोनुमः ॥ २ ॥
पदार्थः
(तम्) उक्तार्थम् (उ) वितर्के (त्वा) त्वाम् (गोतमः) विद्यायुक्तो जनः (गिरा) वाचा (रायस्कामः) धनमीप्सुः (दुवस्यति) सेवते (द्युम्नैः) श्रेष्ठैर्यशोभिः (अभि) सर्वतः (प्र) प्रकृष्टे (नोनुमः) प्रशंसामः ॥ २ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नहि मनुष्याणां परमेश्वरोपासनेन विद्वत्सहवासेन च विना धनकामपूर्तिर्भवितुं शक्या ॥ २ ॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर वह विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थ
हे धनपते (रायस्कामः) धन की इच्छा करनेवाला (गोतमः) विद्वान् मनुष्य ! (गिरा) वाणी से (त्वा) तेरी (दुवस्यति) सेवा करता है वैसे (तम् उ) उसी आपकी (द्युम्नैः) श्रेष्ठ कीर्ति से सह वर्त्तमान हम लोग (अभि) सब ओर से (प्र णोनुमः) अति प्रशंसा करते हैं ॥ २ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को ऐसा विचार अपने मन में सदैव रखना चाहिये कि परमेश्वर की उपासना और विद्वान् मनुष्य के संग के विना हम लोगों की धन की कामना पूरी कभी नहीं हो सकती ॥ २ ॥
विषय
धन
पदार्थ
१. हे प्रभो ! (तं त्वा उ) = उन आपको ही (रायस्कामः) = [पशवो वै रायः - श०३/३/१८] गौ आदि पशुरूप धनों की कामनावाला (गोतमः) = प्रशस्तेन्द्रिय पुरुष (गिरा) = वेदवाणी के द्वारा (दुवस्यति) = उपासित करता है । गोतम प्रभु का उपासन करता है और गौ आदि पशुरूप धनों को प्राप्त करता है । २. हम भी उस गोतम का अनुकरण करते हुए, गोतम ही बनने की इच्छा करते हुए (द्युम्नैः) = द्युम्नों के हेतु से (अभिप्रणोनुमः) = दिन के प्रारम्भ व अन्त में दोनों ओर - प्रातः व सायं खूब ही प्रभु को नमन करते हैं । इस नमन के द्वारा हम संसार - यात्रा के लिए आवश्यक धनों को प्राप्त करनेवाले बनते हैं [द्युम्नमिति धननाम - नि० २/१०] ।
भावार्थ
भावार्थ - उपासक के लिए प्रभु धन प्राप्त कराते हैं ।
विषय
विद्वान की गृहपति से तुलना । गृहस्थ के कर्तव्य । मेघादि की उत्पत्ति
भावार्थ
हे परमेश्वर ! एवं विद्वन् ! (रायः कामः) ऐश्वर्य की कामना करने वाला (गोतमः) विद्वान् स्तुतिकर्त्ता जन (तम् उ त्वा) उस स्तुति योग्य तुझ को ही ( गिरा ) वाणी से ( दुवस्यति ) भजन करता है । हम भी ( द्युम्नैः ) उत्तम गुणों के प्रकाशक स्तुति वचनों और यश कीर्तनों से ( त्वा अभि ) तुझे लक्ष्य करके ( प्र नोनुमः ) अच्छी प्रकार स्तुति करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-५ गोतम राहूगण ऋषिः ॥ ऋग्नर्देवता ॥ १-५ गायत्री छन्दः ।
विषय
विषय (भाषा)- फिर वह विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में कहा है ॥
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- हे धनेश ! यथा रायस्कामः गोतमः विद्वान् गिरा त्वा दुवस्यति तथा तम् उ द्युम्नैः सह वर्त्तमानः वयम् अभि प्रनोनुमः ॥२॥
पदार्थ
पदार्थः- हे (धनेश)=धनों के स्वामी परमेश्वर ! (यथा)=जिस प्रकार से, (रायस्कामः) धनमीप्सुः= धनों के इच्छा करनेवाले, (गोतमः) विद्यायुक्तो जनः=विद्या से युक्त, (विद्वान्)= विद्वान् लोग, (गिरा) वाचा=वाणी से, (त्वा) त्वाम्=तुम्हारा, (दुवस्यति) सेवते=पूजन करते हैं, (तथा)=वैसे ही, (तम्) उक्तार्थम्= विद्वान् लोग, (उ) वितर्के=अथवा, (द्युम्नैः) श्रेष्ठैर्यशोभिः=श्रेष्ठों में उत्तम लोगों के, (सह)= साथ, (वर्त्तमानः)=उपस्थित, (वयम्)=हम, (अभि) सर्वतः=हर ओर से, (प्र) प्रकृष्टे= प्रकृष्ट रूप से, (नोनुमः) प्रशंसामः= प्रशंसा करते हैं ॥२॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। परमेश्वर की उपासना और विद्वान् मनुष्य के साथ रहने के विना मनुष्यों की धन की कामना की पूर्ति नहीं हो सकती है॥२॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
पदार्थान्वयः(म.द.स.)- हे (धनेश) धनों के स्वामी परमेश्वर ! (यथा) जिस प्रकार से (रायस्कामः) धनों के इच्छा करनेवाले, (गोतमः) विद्या से युक्त (विद्वान्) विद्वान् लोग (गिरा) वाणी से (त्वा) तुम्हारा (दुवस्यति) पूजन करते हैं, (तथा) वैसे ही (तम्) विद्वान् लोग (उ) अथवा (द्युम्नैः) श्रेष्ठों में उत्तम लोगों के (सह) साथ (वर्त्तमानः) उपस्थित (वयम्) हम (अभि) हर ओर से, (प्र) प्रकृष्ट रूप से [तुम्हारी] (नोनुमः) प्रशंसा करते हैं ॥२॥
संस्कृत भाग
तम् । ऊँ॒ इति॑ । त्वा॒ । गोत॑मः । गि॒रा । रा॒यःऽका॑मः । दु॒व॒स्य॒ति॒ । द्यु॒म्नैः । अ॒भि । प्र । नो॒नु॒मः॒ ॥ विषयः- पुनः सः विद्वान् कीदृश इत्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नहि मनुष्याणां परमेश्वरोपासनेन विद्वत्सहवासेन च विना धनकामपूर्तिर्भवितुं शक्या॥२॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी असा विचार सदैव बाळगला पाहिजे की परमेश्वराची उपासना व विद्वान माणसाशिवाय आपल्या धनाची कामना कधीही पूर्ण होऊ शकत नाही. ॥ २ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
The man of knowledge and admiration, desirous of wealth and honour, offers homage and prayer to you, Agni, lord of light and power, with his voice of the heart. We do homage to you with all our wealth and power and with noblest songs of praise.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is learned man is taught in the second Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O God the Lord of all wealth; as a learned person desirous of wealth (internal in the form of wisdom and external) worships Thee with his speech, in the same manner. we offer adoration to Thee from all side (every where) being endowed with good reputation and glory.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(गोतमः) विद्यायुक्तो जनः = A learned person. (घुम्नै:) श्रेष्ठै: यशोभिः = With good reputation.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
None can accomplish his desire of acquiring all kind of wealth without the communion with God and association with learned wise persons.
Translator's Notes
गौरिति पदनाम (निघ४ १) पद-गतो Among the three meanings of गति the first of ज्ञान or knowledge has been taken here द्युम्नंद्योतेर्यशो वा अन्नंवा (निरुते ) hence the meaning of good reputation by Rishi Dayananda
Subject of the mantra
Then, what kind of scholar should he be?The advice on this topic has been given in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
He=O! (dhaneśa)=Lord of wealth God, (yathā) =like,(rāyaskāmaḥ)= who desire wealth, (gotamaḥ)=who have knowledge, (vidvān) =scholars, (girā) =by speech, (tvā) =your, (duvasyati) =worship, (tathā) =similarly, (tam) =scholars, (u) =or,(dyumnaiḥ)=of best among the pre-eminent, (saha) =with, (varttamānaḥ) =present, (vayam) =we, (abhi) hara ora se=from all sides, (nonumaḥ)= praise.
English Translation (K.K.V.)
O Lord of wealth God! Just as the learned people, who desire wealth and have knowledge, worship you with their speech, in the same way, we present with the learned people or the best among the pre-eminent, praise you from all sides, intensely.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
There is silent vocal simile as a figurative in this mantra. Without worshiping God and living with learned people, people's desire for wealth cannot be fulfilled.
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