ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 144/ मन्त्र 2
ऋषिः - सुपर्णस्तार्क्ष्यपुत्र ऊर्ध्वकृशनो वा यामायनः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - स्वराडार्चीबृहती
स्वरः - मध्यमः
अ॒यम॒स्मासु॒ काव्य॑ ऋ॒भुर्वज्रो॒ दास्व॑ते । अ॒यं बि॑भर्त्यू॒र्ध्वकृ॑शनं॒ मद॑मृ॒भुर्न कृत्व्यं॒ मद॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । अ॒स्मासु॑ । काव्यः॑ । ऋ॒भुः । वज्रः॑ । दास्व॑ते । अ॒यम् । बि॒भ॒र्ति॒ । ऊ॒र्ध्वऽकृ॑शनम् । मद॑म् । ऋ॒भुः । न । कृत्व्य॑म् । मद॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयमस्मासु काव्य ऋभुर्वज्रो दास्वते । अयं बिभर्त्यूर्ध्वकृशनं मदमृभुर्न कृत्व्यं मदम् ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । अस्मासु । काव्यः । ऋभुः । वज्रः । दास्वते । अयम् । बिभर्ति । ऊर्ध्वऽकृशनम् । मदम् । ऋभुः । न । कृत्व्यम् । मदम् ॥ १०.१४४.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 144; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अयम्) यह इन्दु-वीर्यपदार्थ-ब्रह्मचर्य (अस्मासु) हमारे निमित्त (काव्यः) कवियों मेधावियों द्वारा कमनीय या कवि बनानेवाला (ऋभुः) आयु का प्रकाशक (दास्वते वज्रः) क्षयकारक रोग के लिये वज्र-उसका नाशक है (अयम्) यह (ऊर्ध्वकृशनम्) उत्कृष्टरूप (मदं बिभर्ति) हर्ष को धारण करता है (ऋभुः-न) मेधावी जन का जैसा (कृत्व्यं मदम्) करने योग्य हर्ष होता है, उस हर्ष को धारण करता है ॥२॥
भावार्थ
ब्रह्मचर्य मनुष्य को मेधावी बनाता है, आयु देता है, ऊँचा हर्षकारक रोगनाशक है, उसको धारण करना चाहिये ॥२॥
विषय
सोमरक्षण के लाभ
पदार्थ
[१] (अयम्) = यह सोम (अस्मासु) = हमारे में (काव्यः) = क्रान्तदर्शित्व व तत्त्वज्ञान को पैदा करनेवाला है। सोम के रक्षण से बुद्धि तीव्र होती है और हम तत्त्वज्ञान को प्राप्त करनेवाले बनते हैं । (ऋभुः) = यह खूब दीप्त होनेवाला है, दीप्ति व तेजस्विता का साधक होता है । (दास्वते) = प्रभु प्रति अपना अर्पण करनेवाले के लिये यह (वज्रः) = 'शत्रूणां वर्जकः ' शत्रुओं का वर्जक होता है । यह शरीर में रोगों को नहीं आने देता तो मन में वासनाओं को नहीं आने देता । [२] (अयम्) = यह सोम (ऊर्ध्वकृशनम्) = [कृशनं रूपनाम नि०] उत्कृष्ट रूपवाले (मदम्) = आनन्दमय स्वभाववाले व्यक्ति का (बिभर्ति) = धारण करता है । वस्तुतः सोम का धारण ही उस पुरुष को उत्कृष्ट रूपवाला व प्रसन्न मनोवृत्तिवाला बनाता है । (ऋभुः न) = यह सोम खूब दीप्त होनेवाले के समान होता हुआ (कृत्व्यम्) = कर्त्तव्यपालन में उत्तम (मदम्) = आनन्दमय स्वभावाले पुरुष का धारण करता है । अर्थात् सोम का रक्षण हमें कर्त्तव्यपालन की वृत्तिवाला तथा प्रसन्नचित्त बनाता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से क्रान्तदर्शित्व, दीप्ति, शत्रुवर्जनशक्ति, उत्कृष्टरूप, प्रसन्नता तथा कर्त्तव्यपालन की वृत्ति प्राप्त होती है ।
विषय
ऊर्ध्वकृशन आत्मा। उसकी सब बाधाओं को दूर करने वाला प्रभु।
भावार्थ
(अयम्) यह (अस्मासु) हम में (काव्यः) कवियों,क्रान्तदर्शी विद्वानों द्वारा वर्णित, उपदिष्ट (ऋभुः) महान् सामर्थ्यवान्,बड़े तेज से चमकने वाला, सत्य के बल से दीप्तिमान्, (दास्वते वज्रः) अपने को समर्पित कर देने वाले जन के लिये वज्र के तुल्य उसके सब बाधक कारणों को दूर करने वाला है। (अयम्) यह (ऊर्ध्व-कृशनम्) उत्तम पद की ओर तीक्ष्णता से जाने वाले अग्नि के तुल्य तेजस्वी (मदम्) स्तुति कर्त्ता को (बिभर्त्ति) धारता और पालता है और वह (ऋभुः न) बड़े धनवान्, ज्ञानी वा तेजस्वी के समान (कृत्व्यं) कर्म करने वाले (मदम्) हर्षयुक्त जन के समान कर्मण्य पुरुष को हर्ष प्रदान करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः सुपर्णस्तार्क्ष्यपुत्र ऊर्ध्वकृशनो वा यामायनः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः— १, ३ निचृद्गायत्री। ४ भुरिग्गायत्री। २ आर्ची स्वराड् बृहती। ५ सतोबृहती। ६ निचृत् पंक्तिः॥ षडृचं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अयम्) एष पूर्वोक्त इन्द्रः-रेतोरूपो वीर्यपदार्थः (अस्मासु) अस्मन्निमित्तम् ‘निमित्तसप्तमी’ (काव्यः) कविभिर्मेधाविभिः कमनीयः “काव्यं कविभिर्मेधाविभिः कमनीयम्” [ऋ० ५।३९।५ दयानन्दः] यद्वा कविं मेधाविनं सम्पादयतीति मेधाविसम्पादकः “सम्पादिन्यर्थे ष्यञ् छान्दसः” (ऋभुः) आयुष्प्रकाशकस्तेजः-प्रकाशकः “ऋभुः-आयुष्प्रकाशकः” [ऋ० १।११०।७ दयानन्दः] (दास्वते वज्रः) “दसु उपक्षये” णिजन्तात् क्विप् दास् तद्वते रोगाय वज्रो वर्जयिता नाशकोऽस्ति (अयम्) एष हि (ऊर्ध्वकृशनं मदं बिभर्ति) ऊर्ध्वरूपं “कृशनं रूपनाम” [निघ० ३।७] हर्षं धारयति (ऋभुः-न कृत्व्यं मदम्) ऋभोः “सुपां सु...” [अष्टा० ७।१।३९] इति षष्ठीस्थाने सुः, मेधाविनो जनस्य यथा कर्त्तव्यो हर्षो भवेत् तथा ते करणयोग्यं हर्षं धारयति ॥२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Here among us it is inspiring and adorable, brilliant, a very thunderbolt of protection for the generous, and scourge of punishment for the destructive. And it bears the exhilaration that elevates like rising flames of fire just as the wise sage bears the passion for creativity.
मराठी (1)
भावार्थ
ब्रह्मचर्य माणसाला मेधावी बनविते, आयू देते, उत्कृष्ट आनंददायक, रोगनाशक आहे, त्याला धारण केले पाहिजे. ॥२॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal