ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 144/ मन्त्र 4
ऋषिः - सुपर्णस्तार्क्ष्यपुत्र ऊर्ध्वकृशनो वा यामायनः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - भुरिग्गायत्री
स्वरः - षड्जः
यं सु॑प॒र्णः प॑रा॒वत॑: श्ये॒नस्य॑ पु॒त्र आभ॑रत् । श॒तच॑क्रं॒ यो॒३॒॑ऽह्यो॑ वर्त॒निः ॥
स्वर सहित पद पाठयम् । सु॒ऽप॒र्णः । प॒रा॒ऽवतः॑ । श्ये॒नस्य॑ । पु॒त्रः । आ । अभ॑रत् । श॒तऽच॑क्रम् । यः । अ॒ह्यः॑ । व॒र्त॒निः ॥
स्वर रहित मन्त्र
यं सुपर्णः परावत: श्येनस्य पुत्र आभरत् । शतचक्रं यो३ऽह्यो वर्तनिः ॥
स्वर रहित पद पाठयम् । सुऽपर्णः । पराऽवतः । श्येनस्य । पुत्रः । आ । अभरत् । शतऽचक्रम् । यः । अह्यः । वर्तनिः ॥ १०.१४४.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 144; मन्त्र » 4
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यं शतचक्रम्) जिस सौ वर्ष आयु करनेवाले (सुपर्णम्) सुष्ठुपालक वीर्य पदार्थ को (परावतः) प्रेरित किए हुए (श्येनस्य) प्रशंसनीय आत्मा का (पुत्रः) पुत्रसमान शिवसंकल्प (आ अभरत्) धारण करता है (यः) जो (अह्यः) न हीन करने योग्य-अत्याज्य-ग्राह्य धारण करने योग्य (वर्तनिः) जीवन का मार्ग है ॥४॥
भावार्थ
ब्रह्मचर्य मानव की सौ वर्ष आयु पूर्णायु करनेवाला है, इसे परमात्मा से प्रेरित आत्मा का शिवसंकल्प धारण करता है-शिवसंकल्प से धारण किया जाता है, यह जीवन में धारण करने योग्य है, जीवन का सच्चा मार्ग बनाता है ॥४॥
विषय
सुपर्णः, श्येनस्य पुत्रः
पदार्थ
[१] (यम्) = जिस सोम को (सुपर्ण:) = उत्तमता से अपना पालन व पूरण करनेवाला, (श्येनस्य पुत्रः) = [श्यैङ्गतौ] गतिशील का पुत्र, अर्थात् खूब क्रियाशील जीवनवाला व्यक्ति (परावतः) = सुदूर देश से (आभरत्) = शरीर में चारों ओर धारण करता है। यह सोम अन्न में निवास करता है। उस अन्न को जब हम खाते हैं, तो पहले रस उत्पन्न होता है। रस से रुधिर, रुधिर से मांस, मांस से मेदस्, मेदस् से अस्थि, अस्थि से मज्जा तथा मज्जा से इस वीर्य शक्ति की उत्पत्ति होती है । एवं सुदूर देश से सातवीं मंजिल में इसका लाभ होता है। [२] यह सोम सुरक्षित होने पर (शतचक्रम्) = सौ वर्ष के आयुष्य को करनेवाला है तथा यह वह है (यः) = जो कि (अह्यः) = [अहे:- आहन्तुः-सर्पस्य= कुटिलताया] कुटिलता का (वर्जनिः) = मुख मोड़ देनेवाला है, अर्थात् कुटिलता की वृत्ति को हमारे से दूर करनेवाला है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम का रक्षण क्रियाशील पुरुष ही कर पाता है। सुरक्षित सोम सौ वर्ष के 'आयुष्य को देनेवाला व कुटिल वृत्ति को दूर करनेवाला है ।
विषय
जितेन्द्रिय दीर्घजीवी साधक
भावार्थ
(श्येनस्य पुत्रः) उत्तम, का अपने इन्द्रिय-सामर्थ्यों की रक्षा करनेवाला, जितेन्द्रिय शिष्य (शत-चक्रं) सौ वर्ष की आयु करने वाले वीर्य रूप (यं) जिस सोम को (आभरत्) धारण करता है और (यः) जो (अह्यः) कभी नाश न होने वाला, (वर्त्तनिः) मार्ग के तुल्य आचरणीय है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः सुपर्णस्तार्क्ष्यपुत्र ऊर्ध्वकृशनो वा यामायनः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः— १, ३ निचृद्गायत्री। ४ भुरिग्गायत्री। २ आर्ची स्वराड् बृहती। ५ सतोबृहती। ६ निचृत् पंक्तिः॥ षडृचं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यं शतचक्रं सुपर्णम्) यं शतवर्षायुष्करं सुष्ठु पालकं वीर्यपदार्थम् “वीर्यं वै सुपर्णः” [श० ६।७।२।६] (परावतः श्येनस्य पुत्रः) प्रेरितवतः “परावतः प्रेरितवतः” [निरु० ७।२६] प्रशंसनीयगतिकस्यात्मनः पुत्रवद्वर्तमानः शिवसङ्कल्पः (आ अभरत्) समन्ताद् धारयति (यः-अह्यः-वर्तनिः) योऽहेयोऽत्याज्यो ग्राह्य एव जीवनमार्गः ॥४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, which Vayu, cosmic energy, child of all pervasive space, bears and carries from far off solar regions, is performer of a hundred divine acts of nature and it is the very life of the cloud and indestructible vitality of life.
मराठी (1)
भावार्थ
ब्रह्मचर्यामुळे मानव शंभर वर्षे पूर्ण जगू शकतो. परमेश्वराकडून प्रेरित आत्मा शिवसंकल्प धारण करतो. ब्रह्मचर्य जीवनात धारण करण्यायोग्य आहे. जीवनाचा खरा मार्ग दाखविणारे आहे. ॥४॥
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