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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 157 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 157/ मन्त्र 3
    ऋषिः - भुवन आप्त्यः साधनो वा भौवनः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - द्विपदात्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ॒दि॒त्यैरिन्द्र॒: सग॑णो म॒रुद्भि॑र॒स्माकं॑ भूत्ववि॒ता त॒नूना॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒दि॒त्यैः । इन्द्रः॑ । सऽग॑णः । म॒रुत्ऽभिः॑ । अ॒स्माक॑म् । भू॒तु॒ । अ॒वि॒ता । त॒नू॑नाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आदित्यैरिन्द्र: सगणो मरुद्भिरस्माकं भूत्वविता तनूनाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आदित्यैः । इन्द्रः । सऽगणः । मरुत्ऽभिः । अस्माकम् । भूतु । अविता । तनूनाम् ॥ १०.१५७.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 157; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्द्र सगणः) राजा को अपने सभागण के साथ (आदित्यैः) अखण्डित न्यायाधीशों के साथ (मरुद्भिः) सैनिकों के साथ (अस्माकं तनूनाम्) हमारे जैसे जीवों के (अविता भूतु) रक्षक हो ॥३॥

    भावार्थ

    राजा अपने सभ्यगण न्यायाधीशों और सैनिकों सहित प्रजाजनों की रक्षा किया करें ॥३॥

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    विषय

    सर्वदेवानुकूल्य व स्वास्थ्य

    पदार्थ

    [१] प्रभु हमारे जीवनों में पञ्चभूतों के प्रथम गण का स्थापन करते हैं 'पृथिवी, जल, तेज, वायु व आकाश' 'प्राण, अपान, व्यान, समान, उदान' नाम का प्राण पञ्चक है। तीसरा कर्मेन्द्रिय पञ्चक, चौथा ज्ञानेन्द्रिय पञ्चक और पाँचवाँ अन्तकरण पञ्चक 'मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार और हृदय'। वह (इन्द्रः) = परमैश्वर्यशाली प्रभु (सगणः) = इन गणों के साथ तथा (आदित्यैः) अदिति के पुत्रों सूर्य, चन्द्र, नक्षत्रादि के साथ तथा (मरुद्भिः) = [ मरुतः प्राणाः] प्राणों के साथ (अस्माकम्) = हमारे (तनूनाम्) = शरीरों के (अविता भूतु) = रक्षक हों । [२] वस्तुतः प्रभु प्राणपञ्चक आदि गणों के द्वारा हमारे शरीरों का कल्याण करते हैं। इस प्राणसाधना के साथ सूर्यादि सब देवों की भी हमें अनुकूलता प्राप्त होती है । इस अनुकूलता में ही स्वास्थ्य है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सर्वदेवानुकूल्य के प्राप्त करके हम स्वस्थ शरीर बनें।

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    विषय

    आदित्यों की शासकों से तुलना। उनका शरीरों आदि की रक्षा करने का गुण।

    भावार्थ

    (आदित्यैः) अदिति, भूमि के हितकारक किरणों, तेजों से और (मरुद्भिः) वायुओं से सूर्य के तुल्य (इन्द्रः) शत्रुहन्ता और ऐश्वर्यवान्, अन्न जलादि का स्वामी राजा भी (स-गण:) अपने गण अर्थात् सैन्य दलों सहित, (आदित्यैः मरुद्भिः) तेजस्वी विद्वानों और बलवान् पुरुषों द्वारा (अस्माकं तनूनां अविता भूतु) हमारे शरीरों वा हमारे पुत्र अजादिकों का रक्षक हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्भुवन आप्त्यः साधनो वा भौवनः। विश्वेदेवा देवताः॥ द्विपदा त्रिष्टुप् पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्द्रः सगणः) राजा सभ्यगणेन सह (आदित्यैः) अखण्डित-न्यायाधीशैः सह, तथा (मरुद्भिः) सैनिकैः सह च “असौ या सेना मरुतः परेषामस्मानेत्यभ्योजसा स्पर्धमानाः तां विध्यत तमसापवृतेन यथैषामन्योऽन्यं न जानात्” (अस्माकं तनूनाम्-अविता भूतु) अस्मादृशानां जीवानां रक्षको भवतु ॥३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May Indra, ruling power of the world with all its natural and human forces, winds and stormy troops across the sun’s phases over the year, be the protector and promoter of our health of body and social organisations.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजाने आपले सभ्य लोक, न्यायाधीश व सैनिकांसह प्रजेचे रक्षण करावे. ॥३॥

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