ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 160/ मन्त्र 2
ऋषिः - पूरणो वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
तुभ्यं॑ सु॒तास्तुभ्य॑मु॒ सोत्वा॑स॒स्त्वां गिर॒: श्वात्र्या॒ आ ह्व॑यन्ति । इन्द्रे॒दम॒द्य सव॑नं जुषा॒णो विश्व॑स्य वि॒द्वाँ इ॒ह पा॑हि॒ सोम॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठतुभ्य॑म् । सु॒ताः । तुभ्य॑म् । ऊँ॒ इति॑ । सोत्वा॑सः । त्वाम् । गिरः॑ । श्वात्र्याः॑ । आ । ह्व॒य॒न्ति॒ । इन्द्र॑ । इ॒दम् । अ॒द्य । सव॑नम् । जु॒षा॒णः । विश्व॑स्य । वि॒द्वान् । इ॒ह । पा॒हि॒ । सोम॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तुभ्यं सुतास्तुभ्यमु सोत्वासस्त्वां गिर: श्वात्र्या आ ह्वयन्ति । इन्द्रेदमद्य सवनं जुषाणो विश्वस्य विद्वाँ इह पाहि सोमम् ॥
स्वर रहित पद पाठतुभ्यम् । सुताः । तुभ्यम् । ऊँ इति । सोत्वासः । त्वाम् । गिरः । श्वात्र्याः । आ । ह्वयन्ति । इन्द्र । इदम् । अद्य । सवनम् । जुषाणः । विश्वस्य । विद्वान् । इह । पाहि । सोमम् ॥ १०.१६०.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 160; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्र) हे राजन् ! (तुभ्यम्) तेरे लिए (सुताः) उत्पन्न प्रजाजन (तुभ्यम्) तेरे लिए (सोत्वासः) उत्पन्न होनेवाले प्रजाजन शासन करने योग्य और सहायक हैं (त्वाम्) तुझे (गिरः) स्तुतियों से प्रशंसावचनों से (श्वात्र्याः) शीघ्र या पुनः-पुनः आज्ञाकारी (आह्वयन्ति) आमन्त्रित करते हैं (अद्य) इस अवसर पर (इदं सवनम्) इस राष्ट्र को (जुषाणः) सेवन करता हुआ (विश्वस्य) सारे (सोमम्) सम्पन्न राष्ट्र को (विद्वान्) जानता हुआ अपनाता हुआ सुरक्षित रख ॥२॥
भावार्थ
राष्ट्र के प्रजाजन उत्पन्न हुए और उत्पन्न होनेवाले राजा के शासन में रहनेवाले और सहायक होते हैं और उन्हें राजा के स्तुतिवचनों द्वारा आमन्त्रण करना चाहिए कि राजा राष्ट्र की भलीभाँति रक्षा करे ॥२॥
विषय
वेदवाणी का आह्वान
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष ! (तुभ्यं सुताः) = तेरे लिये इन सोमों का उत्पादन हुआ है (उ तुभ्यम्) = और तेरे लिये ही (सोत्वासः) = उत्पन्न किये जायेंगे। (ये श्वात्र्याः) = [शु अतन्ति] शीघ्रता से गतिवाली, अर्थात् कर्मों में प्रेरित करनेवाली (गिरः) = वेदवाणियाँ (त्वां आह्वयन्ति) = तुझे पुकारती हैं। तूने इनका अध्ययन करना है और इनमें निर्दिष्ट कर्मों में प्रवृत्त होना है । [२] हे जितेन्द्रिय पुरुष (अद्य) = आज (इदं सवनम्) = इस जीवनयज्ञ को (जुषाण:) = प्रीतिपूर्वक सेवन करता हुआ (विश्वस्य विद्वान्) = अपने सब कर्त्तव्य कर्मों को जानता हुआ (सोमम्) = सोम को [वीर्य को] (इह) = रस शरीर में (पाहि) = सुरक्षित कर । इस सोमरक्षण से ही तू सब कर्त्तव्य कर्मों को पूर्ण कर पायेगा । सोमरक्षण ही तुझे तीव्र बुद्धि बना करके वेद को समझने के योग्य बनायेगा ।
भावार्थ
भावार्थ- हम सोम का रक्षण करें, वेदवाणी को पढ़ें। वेदवाणी को समझते हुए हम तदुपदिष्ट कर्त्तव्यों का पालन करें।
विषय
सेनापति के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! शत्रुहन्तः ! (तुभ्यम् सुताः) ये समस्त ऐश्वर्य तेरे ही लिये हैं। (तुभ्यम् उ सोत्वासः) ये ऐश्वर्य उत्पन्न करने वाले भी तेरे ही लिये हैं। (त्वां) तुझको (श्वात्र्याः) सुखकारिणी, शुद्ध (गिरः) वाणियां (आह्वयन्ति) सब ओर से बुला रही हैं। (अद्य इदं सवनं जुषाणः) आज इस सवन, अभिषेक को प्रेम से स्वीकार करता हुआ (विश्वस्य विद्वान्) सबको जानता हुआ (सोमम् पाहि) इस ऐश्वर्य युक्त राष्ट्र को पालन कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः पूरणो वैश्वामित्रः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः- १, ३ त्रिष्टुप्। २ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४, ५ विराट् त्रिष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्र) हे राजन् ! (तुभ्यं सुताः) त्वदर्थमुत्पन्नाः प्रजाजनाः (तुभ्यं सोत्वासः) त्वदर्थमुत्पत्स्यमानाश्च शासनीयाः सहायभूताश्च सन्ति (त्वां गिरः श्वात्र्याः-आह्वयन्ति) त्वां गीर्भिः प्रशंसावचनैः “तृतीयार्थे द्वितीया व्यत्ययेन” क्षिप्रं पुनः पुनर्वाऽऽज्ञाकारिणः आमन्त्रयन्ते (अद्य) अस्मिन्नवसरे (इदं सवनं जुषाणः) इदं राष्ट्रं सेवमानः प्रीयमाणो वा (विश्वस्य सोम विद्वान्) सर्वम् “द्वितीयास्थाने षष्ठी व्यत्ययेन” सम्पन्नराष्ट्रं प्राणिमात्रं रक्ष ॥२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
To you are these resources dedicated, those that are ripe and ready and those that are being prepared.$Voices of sincere devotion call on you. Indra, knowing well, loving and fully dedicated to this world programme of development, take it on here and now, protect, promote and raise the world to the heights of attainment.
मराठी (1)
भावार्थ
राष्ट्राचे प्रजाजन राजाच्या शासनात राहून सहायकही असतात. त्यांना राजाने स्तुती वचन व प्रशंसावचनाद्वारे आमंत्रित करावे. राजाने राष्ट्राचे चांगल्या प्रकारे रक्षण करावे. ॥२॥
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