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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 164 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 164/ मन्त्र 4
    ऋषिः - प्रचेताः देवता - दुःस्वप्नघ्नम् छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    यदि॑न्द्र ब्रह्मणस्पतेऽभिद्रो॒हं चरा॑मसि । प्रचे॑ता न आङ्गिर॒सो द्वि॑ष॒तां पा॒त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । इ॒न्द्र॒ । ब्र॒ह्म॒णः॒ । प॒ते॒ । अ॒भि॒ऽद्रो॒हम् । चरा॑मसि । प्रऽचे॑ताः । नः॒ । आ॒ङ्गि॒र॒सः । द्वि॒ष॒ताम् । पा॒तु॒ । अंह॑सः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदिन्द्र ब्रह्मणस्पतेऽभिद्रोहं चरामसि । प्रचेता न आङ्गिरसो द्विषतां पात्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । इन्द्र । ब्रह्मणः । पते । अभिऽद्रोहम् । चरामसि । प्रऽचेताः । नः । आङ्गिरसः । द्विषताम् । पातु । अंहसः ॥ १०.१६४.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 164; मन्त्र » 4
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्द्र ब्रह्मणस्पते) हे ऐश्वर्यवन् वेदस्वामी परमात्मन् ! (यत्) जो (अभिद्रोहम्) वैर हिंसाभाव (चरामसि) हम सेवन करते हैं (आङ्गिरसः) अङ्गोंवाले आत्मा में रमण करनेवाला या उसको रसीला बनानेवाला सर्वज्ञ परमात्मा (द्विषताम्) द्वेष करनेवालों के सम्बन्धी (अंहसः) पाप से (नः) हमारी (पातु) रक्षा करे ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य के अन्दर विरोधी जन के प्रति द्रोहभाव या हिंसाभाव उत्पन्न हो जाता है, उसे अन्तर्यामी सर्वज्ञ परमात्मा ही जानता है तथा विरोधी द्वेष करनेवाले हमारे प्रति जो पाप भाव रखते हैं, वह सर्वज्ञ परमात्मा उनसे रक्षा करे। न हमारे अन्दर द्रोह हो और न विरोधी के अन्दर द्रोह हो ॥४॥

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    विषय

    प्रचेता आंगिरस

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = सर्वशक्तिमान्, शत्रुओं के विद्रावण को करनेवाले प्रभो! हे (ब्रह्मणस्पते) = ज्ञान के स्वामि ! (यत्) = जो भी (अभिद्रोहम्) = आपके विषय में हम द्रोह (चरामसि) = करते हैं । इन्द्र व ब्रह्मणस्पति के विषय में द्रोह का स्वरूप यही है कि- [क] जितेन्द्रियता को छोड़कर शक्ति को क्षीण कर लेना तथा [ख] स्वाध्याय के व्रत का पालन न करते हुए ज्ञान को न प्राप्त करना । (प्रचेताः) = प्रकृष्ट ज्ञानवाला (आंगिरसः) = अंग-प्रत्यंग में रस का संचार करनेवाला प्रभु (द्विषताम्) = द्वेष करनेवाले के (अंहसः) = पाप से (नः) = हमें (पातु) = बचाये। [२] 'प्रचेताः' बनकर हम ब्रह्मणस्पति के प्रति द्रोह से दूर होते हैं तथा 'आंगिरस' बनकर हम 'इन्द्र' के प्रति द्रोह नहीं करते । वस्तुतः आदर्श मनुष्य बनने के लिये इन्हीं दो बातों की आवश्यकता है कि हम 'ज्ञानी बनें, शक्तिशाली बनें'। इन दोनों ही बातों के लिये आवश्यक है कि हम द्वेष करनेवाले न हों। द्वेष से शरीर भी विकृत होता है, मस्तिष्क भी मलिन होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम द्वेष से ऊपर उठकर 'प्रचेता आंगिरस' बनें। यही 'ब्रह्मणस्पति व इन्द्र' का पूजन है ।

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    विषय

    पारस्परिक द्रोह भाव को दूर करने की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् प्रभो ! हे (ब्रह्मणः पते) महान् ज्ञान और ब्रह्माण्ड के पालक, स्वामिन् प्रभो ! (यत् अभिद्रोहं चरामसि) हम जो सब से द्रोह का आचरण करें तो (आंगिरसः) प्रत्येक अंग २ में विराजने वाला, वा ज्ञानी पुरुषों में श्रेष्ठ (प्र-चेताः) सबके चित्तों का स्वामी, सबसे उत्कृष्ट ज्ञान वाला, प्रभु वा विद्वान् पुरुष (द्विषतां अंहसः) अन्तः और बाह्य शत्रुओं के पाप से (नः पातु) हमें बचावे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः प्रचेताः॥ देवता—दुःस्वप्नघ्नम्॥ छन्दः–१ निचृदनुष्टुप्। २ अनुष्टुप्। ४ विराडनुष्टुप्। ३ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। ५ पंक्तिः॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्द्र ब्रह्मणस्पते) हे ऐश्वर्यवन् वेदज्ञानस्य स्वामिन् परमात्मन् ! (यत्-अभिद्रोहं चरामसि) यत्खलु कमभिद्रोहं हिंसाभावं वयं चरामः अतः परोक्षेणोच्यते (आङ्गिरसः प्रचेताः) अङ्गिषु-आत्मसु रममाणो रसयिता वा सर्वज्ञः स परमात्मा (द्विषताम्-अहंसः नः पातु) द्विषतां सम्बन्धिनः पापात् खल्वस्मान् रक्षतु ॥४॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O lord omnipotent, Indra, O lord omniscient, giver of enlightenment, Brahmanaspati, whatever hateful or malicious we might be facing or entertaining in thought and behaviour, may the divine spirit of knowledge, wisdom and love ever awake protect and save us from the sin and wrath of the enemies.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांमध्ये विरोधी लोकांबद्दल द्रोहभाव किंवा हिंसाभाव उत्पन्न होतो त्याला अंतर्यामी सर्वज्ञ परमात्माच जाणतो. तसेच विरोधी द्वेष करणारे आमच्याबद्दल पापभाव ठेवतात तेव्हा सर्वज्ञ परमात्म्याने त्यांच्यापासून रक्षण करावे. आमच्यामध्ये द्रोह नसावा व विरोधी लोकांमध्येही द्रोह नसावा. ॥४॥

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