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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 19/ मन्त्र 3
    ऋषिः - मथितो यामायनो भृगुर्वा वारुणिश्च्यवनों वा भार्गवः देवता - आपो गावो वा छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    पुन॑रे॒ता नि व॑र्तन्ताम॒स्मिन्पु॑ष्यन्तु॒ गोप॑तौ । इ॒हैवाग्ने॒ नि धा॑रये॒ह ति॑ष्ठतु॒ या र॒यिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पुनः॑ । ए॒ताः । नि । व॒र्त॒न्ता॒म् । अ॒स्मिन् । पु॒ष्य॒न्तु॒ । गोऽप॑तौ । इ॒ह । ए॒व । अ॒ग्ने॒ । नि । धा॒र॒य॒ । इ॒ह । ति॒ष्ठ॒तु॒ । या । र॒यिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुनरेता नि वर्तन्तामस्मिन्पुष्यन्तु गोपतौ । इहैवाग्ने नि धारयेह तिष्ठतु या रयिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुनः । एताः । नि । वर्तन्ताम् । अस्मिन् । पुष्यन्तु । गोऽपतौ । इह । एव । अग्ने । नि । धारय । इह । तिष्ठतु । या । रयिः ॥ १०.१९.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (एताः पुनः-निवर्तन्ताम्) ये गौवें प्रजाएँ और इन्द्रियवृत्तियाँ अपना-अपना उचित व्यापार करके लौट आवें (अस्मिन् गोपतौ पुष्यन्तु) इस गोस्वामी, प्रजापालक और इन्द्रियस्वामी आत्मा के आधार पर पुष्ट होवें (अग्ने) अग्रणायक परमात्मन् ! (इह-एव निधारय) यहाँ मेरे अधीन नियत करे (इह) मेरे अधीन (या रयिः-तिष्ठतु) जो पुष्टि, सम्पत्ति हो, वह स्थिर होवे ॥३॥

    भावार्थ

    गौ आदि पशु, प्रजाएँ तथा इन्द्रियाँ पुनः-पुनः व्यापार करके लौट आएँ और मुझ स्वामी के अधीन पुष्ट होवें। परमात्मा पुष्टि व सम्पत्ति को मेरे अधीन स्थिर रखे ॥३॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (एताः पुनः-निवर्तन्ताम्) पूर्वोक्ताः गावः, प्रजाः, इन्द्रियशक्तयः स्वव्यापारं विधाय पुनः प्रत्यागच्छन्तु (अस्मिन् गोपतौ पुष्यन्तु) अस्मिन् गोस्वामिनि, प्रजास्वामिनि, इन्द्रियस्वामिनि-आत्मनि मयि पुष्टीभवन्तु (अग्ने) अग्रणायक परमात्मन् ! (इह एव निधारय) अत्र मयि हि निरोधय (इह) अत्र मयि (या रयिः-तिष्ठतु) या पुष्टिः पोषणसम्पत्तिः सा स्थिरीभवतु ॥३॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Let these dynamic forces in circulation come back again, grow and rise in this social system governed by the ruling power. Here itself, O Agni, keep their reins on hold, and let the wealth centre here in the soul of the system.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    गायी इत्यादी पशू, प्रजा व इंद्रिये पुन्हा पुन्हा आपले कार्य करून परत यावेत व (माझ्या) स्वामींच्या अधीन पुष्ट व्हावेत. परमेश्वराने पुष्टी व संपत्ती माझ्या अधीन करून स्थिर करावे. ॥३॥

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