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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 190 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 190/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अघमर्षणो माधुच्छन्दसः देवता - भाववृत्तम् छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    स॒मु॒द्राद॑र्ण॒वादधि॑ संवत्स॒रो अ॑जायत । अ॒हो॒रा॒त्राणि॑ वि॒दध॒द्विश्व॑स्य मिष॒तो व॒शी ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒मु॒द्रात् । अ॒र्ण॒वात् । अधि॑ । स॒व्वँ॒त्स॒रः । अ॒जा॒य॒त॒ । अ॒हो॒रा॒त्राणि॑ । वि॒ऽदध॑त् । विश्व॑स्य । मि॒ष॒तः । व॒शी ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत । अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    समुद्रात् । अर्णवात् । अधि । सव्वँत्सरः । अजायत । अहोरात्राणि । विऽदधत् । विश्वस्य । मिषतः । वशी ॥ १०.१९०.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 190; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 48; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अर्णवात्) गतिमान् (समुद्रात्-अधि) परमाणुसमुद्र के ऊपर-उसके अनन्तर (संवत्सरः) संसार भर का काल (अजायत) प्रसिद्ध होता है (मिषतः-विश्वस्य) गति करते हुए विश्व-पृथिवी आदि पिण्ड के (अहोरात्राणि) दिन और रातों को-अहर्गणों को किसके कितने हों (विदधत्) यह विधान करता हुआ (वशी) परमात्मा स्वामी होता है ॥२॥

    भावार्थ

    गतिमान् परमाणुसमुद्र के पश्चात् विश्व का काल नियत होता है, फिर गति करते हुए प्रत्येक पिण्ड के दिन-रात परमात्मा नियत करता है ॥२॥

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    विषय

    वशी प्रभु द्वारा काल की उत्पत्ति

    पदार्थ

    [१] क्रिया के साथ ही काल का आविर्भाव होता है, वस्तुतः काल में ही प्रत्येक क्रिया हुआ करती है ‘जन्यानां जनकः कालः ' । सो कहते हैं कि (समुद्राद् अर्णवात् अधि) = प्रकृति के अणु समुद्र के गतिवाले होने के साथ ही [अधि-at] (संवत्सरः) = काल (अजायत) = प्रादुर्भूत हुआ । [२] अब वह प्रभु इस काल की मापक इकाई के रूप में (अहोरात्राणि विदधत्) = दिन व रात्रि को बनाता है । वह (मिषतः) = गति करते हुए (विश्वस्य) = सम्पूर्ण अणु समुद्र का (वशी) = वश में करनेवाला होता है। इस वशीभूत अणु समुद्र से ही वह सब पदार्थों को बनायेगा । देते हैं और दिन व रात्रि का भी निर्माण करते

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु प्रकृति के अणु समुद्र को गति हैं।

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    विषय

    भाववृत्त। अघमर्षण सूक्त। तप से ऋत, सत्य की उत्पत्ति। उससे जगत् का प्रादुर्भाव। प्रभु का अनादि प्रवाहयुक्त जगत्सर्ग

    भावार्थ

    (अर्णवात् समुद्राद् अधि) अर्णव समुद्र से, संवत्सर, (अजायत) प्रकट हुआ। (विश्वस्य मिषतः) प्रकट होते हुए समस्त जगत् के (वशी) स्वामी (अहः-रात्राणि विदधत्) दिन और रात्रियों को भी बनाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिरघमर्षणो माधुच्छन्दसः। देवता—भाववृत्तम्॥ छन्दः– १ विराडनुष्टुप्। २ अनुष्टुप्। ३ पादनिचृदनुष्टुप्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अर्णवात् समुद्रात्-अधि) गतिमतः परमाणुसमुद्रादुपरि तदनन्तरम् (संवत्सरः-अजायत) समस्त संसारस्य कालः प्रसिद्धो जातः (मिषतः-विश्वस्य-अहोरात्राणि-विदधत्-वशी) गतिं कुर्वतो विश्वस्य पृथिवीप्रभृतेः पिण्डस्याहोरात्राणि कियन्ती कस्य स्युरिति विधानं कुर्वन् वशी स्वामी भवति ॥२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    From the spatial ocean arose the time parameter of existence, and from there the master creator of the universe with his will created the conceptual days and nights.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    गतिमान परमाणू समुद्रानंतर विश्वाचा काल निश्चित होतो. नंतर गती करत दिवस-रात्र परमात्मा निश्चित करतो. ॥२॥

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