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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 191/ मन्त्र 4
स॒मा॒नी व॒ आकू॑तिः समा॒ना हृद॑यानि वः । स॒मा॒नम॑स्तु वो॒ मनो॒ यथा॑ व॒: सुस॒हास॑ति ॥
स्वर सहित पद पाठस॒मा॒नी । वः॒ । आऽकू॑तिः । स॒मा॒ना । हृद॑यानि । वः॒ । स॒मा॒नम् । अ॒स्तु॒ । वः॒ । मनः॑ । यथा॑ । वः॒ । सुऽस॑ह । अस॑ति ॥
स्वर रहित मन्त्र
समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः । समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति ॥
स्वर रहित पद पाठसमानी । वः । आऽकूतिः । समाना । हृदयानि । वः । समानम् । अस्तु । वः । मनः । यथा । वः । सुऽसह । असति ॥ १०.१९१.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 191; मन्त्र » 4
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 49; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 49; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (5)
पदार्थ
(वः) हे मनुष्यो ! तुम्हारी (आकूतिः) अहम्भावना (समानी) समान हो (वः-हृदयानि) तुम्हारे हृदय-सङ्कल्पित वृत्त (समाना) समान हों (वः-मनः) तुम्हारा मन (समानम्-अस्तु) समान हो, कदाचित् एक दूसरे के प्रति वैमनस्य न हो (वः) तुम्हारा (यथा) जैसे भी हो (सुसह-असति) अच्छा सहयोग हो सके, वैसा वर्तें ॥४॥
भावार्थ
मनुष्यों की अहम्मन्यता एक जैसी हो, हृदय में संकल्पित व्यवहार एक जैसे हों, मन समान होना चाहिये, यह परस्पर सहयोग में आवश्यक है, मनुष्यों का परस्पर सहयोग में रहना ही मानवता है, यह जानना चाहिए ॥४॥ ॥इति॥
Bhajan
आज का वैदिक भजन 🙏 1073
भाग 3/3
ओ३म् स॒मा॒नी व॒ आकू॑तिः समा॒ना हृद॑यानि वः ।
स॒मा॒नम॑स्तु वो॒ मनो॒ यथा॑ व॒: सुस॒हास॑ति ॥
ऋग्वेद 10/191/4
ऐ प्यारे मनुष्य लोगों!,
जितना है सामर्थ्य तुम्हारा,
मिल के धर्म के सङ्ग सुख बाँटो,
तुम जीवों के सुख के हेतु,
सदा करो पुरुषार्थ हृदय से,
त्याग ना करना कभी,
धर्म का प्यारो!,
रहे तुम्हारे मन-हृदय भी,
बिना विरोध के प्रेमासक्त,
मन को प्रेम संयम से बांधों
ऐ प्यारे मनुष्य लोगों!,
जितना है सामर्थ्य तुम्हारा,
मिल के धर्म के सङ्ग सुख बाँटो
काम:
पहली सोच मन में रखना,
आचरण को शुद्ध करना,
रखना निस्वार्थ भावना
संकल्प
सुख समृद्धि विद्या आदि,
विविध गुणों के लिए ही,
निज पुरुषार्थ को राधना
विचिकित्सा
जो जो है कार्य संकित,
यथावत् निश्चित करके,
विचिकित्सा के बल पे
ही निर्णय बुद्धि को करके,
तीनों स्तंभ धर्म के हैं
ठीक से धार लो
ऐ प्यारे मनुष्य लोगों!,
जितना है सामर्थ्य तुम्हारा,
मिल के धर्म के सङ्ग सुख बाँटो
श्रद्धा
सत्य धर्म ईश्वर आदि,
शुभ गुणों के सार्थक साथी,
रखना है इनमें ही विश्वास,
अविद्या कुतर्क में रहना,
ईश्वर पर शंका करना,
और श्रद्धा अन्याय है निपात
धृति
सुख-दु:ख हानि या लाभ,
इन सब में रखना धीरज,
विचलित कभी ना होना,
यही मानव की है सीरत,
कष्ट संकट विपत दु:ख में,
हिम्मत ना हारो
ऐ प्यारे मनुष्य लोगों!,
जितना है सामर्थ्य तुम्हारा,
मिल के धर्म के सङ्ग सुख बाँटो
धी:
आचरण असत्य का करना,
पवित-पुण्य काम से बचना,
दुरित मन का ही है असर,
श्रेष्ठ गुणों को धारण
करने वाली श्रेष्ठ बुद्धि को,
धी: कहते धार लो सत्वर
भी:
जो आज्ञा है ईश्वर की,
ऋत-सत्य का पालन करना,
और पापाचरण के पतित,
विचारों से नित डरना,
रख के साक्षी ईश को,
जन्म को तार लो
ऐ प्यारे मनुष्य लोगों!,
जितना है सामर्थ्य तुम्हारा,
मिल के धर्म के सङ्ग सुख बाँटो
मन्त्र का सार
इस प्रकार धर्म का सेवन,
करके पा लो अनुपम ज्योति,
अन्यों का करते रहो भला,
इक से दूजे का सुख बढे़,
ऐसे कर्म करो बड़े,
होवे परहित में जी लगा,
सुख को दे मन हर्षा लो,
ना वैमनस्य ईर्ष्या लो,
कर कर के सब की सेवा,
बहे मन में प्रेम का रेला,
आओ मिलजुल के नित,
सबका हित तो साध लो
ऐ प्यारे मनुष्य लोगों!,
जितना है सामर्थ्य तुम्हारा,
मिल के धर्म के सङ्ग सुख बाँटो
तुम जीवों के सुख के हेतु,
सदा करो पुरुषार्थ हृदय से,
त्याग ना करना कभी,
धर्म का प्यारो!,
रहे तुम्हारे मन-हृदय भी,
बिना विरोध के प्रेमासक्त,
मन को प्रेम संयम से बांधों
ऐ प्यारे मनुष्य लोगों!,
जितना है सामर्थ्य तुम्हारा,
मिल के धर्म के सङ्ग सुख बाँटो
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :-
राग :- देस
राग का गायन समय रात्रि 8:00 के बाद, ताल कहरवा ८ मात्रा
शीर्षक :- धर्म के लक्षण
*तर्ज :- *
0098-698
विचिकित्सा = सन्देह, शक
राधना = पूरा करना
निपात = गिरा हुआ (विचार)
सत्वर = शीघ्र, जल्दी
सीरत = स्वभाव, आदत
ऋत = सृष्टि के सनातन नियम
पतित = गिरा हुआ, नीच,
रेला = बहाव
भी: = निश्चित
ही = स्वीकृति, निश्चय
विषय
परस्पर एकता
पदार्थ
[१] (वः) = तुम्हारा (आकूतिः) = संकल्प व अध्यवसाय (समानी) = समान हो । (वः) = आपके (हृदयानि:) = हृदय समाना समान हों। [२] (वः) = तुम्हारा (मनः) = मन [ = इच्छायें] (समानम्) = समान हों । सब को इस प्रकार हो कि (यथा) = जिससे (वः) = तुम्हारा (सुसह) = शोभन साहित्य = उत्तम मेल (असति) = किसी भी प्रकार का तुम्हारा विरोध न हो। यह अविरोध ही तुम्हें देव बनायेगा, यही तुम्हें विजयी करेगा।
भावार्थ
भावार्थ- हमारे संकल्प हृदय मन सब परस्पर समान हों। हमारा परस्पर मेल अत्यन्त दृढ़ हो । यह सम्पूर्ण सूक्त मेल का उपदेश दे रहा है। ऋग्वेद विज्ञान वेद है। परस्पर मेल होने पर यह विज्ञान कल्याण ही कल्याण करेगा। विरोध के होने पर यह विज्ञान ही विनाश का कारण बन जायेगा। इसी दृष्टि से ऋग्वेद की समाप्ति इस संज्ञान सूक्त पर हुई है। हम नश्वरता का स्मरण करते हुए परस्पर मेल से ही चलने का प्रयत्न करें।
विषय
सबके विचार, संगति, ज्ञान, संकल्प, मन के और बैठना आदि सब एक समान रहने का उपदेश।
भावार्थ
(वः आकूतिः समानी अस्तु) आप लोगों का संकल्प, निश्चय और भाव, अभिप्राय एक समान रहे। (वः हृदयानि समाना) आप लोगों के हृदय एक समान हों। (वः मनः समानम् अस्तु) आप लोगो के मन समान हों, (यथा) जिससे (वः) आप लोगों का (सह सु असति) परस्पर का कार्य सर्वत्र एक साथ अच्छी प्रकार होसके। इत्येकोनपञ्चाशो वर्गः। इत्यष्टमोऽध्यायः॥ इति द्वादशोऽनुवाकः।॥ इत्यष्टमोऽष्टकः समाप्तः ॥
टिप्पणी
॥ इति दशमं मण्डलं समाप्तम् ॥ । इति ऋग्वेदः सम्पूर्णः। इति श्रीविद्यालंकार-मीमांसातीर्थ-विरुदोपशोभितेन श्रीमत्पण्डित जयदेवशर्मणा-विरचित ऋग्वेदालोकभाष्ये अष्टमोऽष्टकः दशमञ्च मण्डलम्, ऋग्वेदालोकभाष्यं च समाप्यते॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः संवननः॥ देवता—१ अग्निः। २-४ संज्ञानम् ॥ छन्दः-१ विराडनुष्टुप्। १ अनुष्टुप्। ४ निचृदनुष्टुप्॥ ३ त्रिष्टुप्॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्।
मन्त्रार्थ
(वः-आकृतिः समानी) तुम्हारा अहम्भाव एक हो (वः-हृदयानि समाना) तुम्हारे हृदय-हृदयगत विचारचित्त के कार्य एक हों (वः-मनः समानम्-अस्तु) तुम्हारा मन एक हो (वः-यथा सुसह असति) तुम्हारे जिस प्रकार अच्छे साथ सहयोग निश्त्रय बुद्धि के कार्य हो सकें ॥४॥
विशेष
ऋषिः- संवनन: (सहमति कराने वाला-मिलाने वाला) देवता- अग्निः, संज्ञानम् (सहमति)
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वः-आकूतिः समानी) युष्माकमहङ्कृतिः-अहम्भावना समानी भवतु (वः-हृदयानि समाना) युष्माकं हृद्गतसङ्कल्पितानि वृत्तानि समानानि भवन्तु (वः-मनः समानम्-अस्तु) युष्माकं मनः समानं भवतु न कदाचिद्वैमनस्यं स्यात् (वः-यथा सुसह-असति) युष्माकं यथा हि सुष्ठु सहयोगो भवेत् ॥४॥ ग्वेदान्तर्गतदशममण्डलस्य संस्कृतार्यभाषयोः स्वामिब्रह्ममुनिपरिव्राजकेन विद्यामार्तण्डेन कृतं भाष्यं समाप्तिमगात् ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Let your discussion and resolve be equal and common, your heart, feelings and passions equal and common. Let your thought and will be equal and common so that you may realise and enjoy a common wealth of peace, progress and all round well being for all in commonalty.
मराठी (1)
भावार्थ
माणसाची भावना एकसारखी असावी. हृदयाचे संकल्पित व्यवहार एकसारखे असावेत. मन समान असावे. परस्पर सहकार्यासाठी हे आवश्यक आहे. माणसांनी परस्पर सहकार्य करावे, हीच मानवता आहे, हे जाणले पाहिजे. ॥४॥
हिंगलिश (1)
Subject
पारस्परिक सहयोग संगठन
Word Meaning
तुम सब का संकल्प एक समान हों ,हृदय एक समान हों, मन एक समान हों , इस प्रकार के व्यवहार से सब मनुष्य, समाज , राष्ट्र सब सुरक्षित और सदैव सुखी जीवन पाते हैं |
Tika / Tippani
(यह ऋग्वेद ऋ10.191का मानव को अंतिम उपदेश है )
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