Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 10 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 10/ मन्त्र 8
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - विराडुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    स नः॑ पावक दीदिहि द्यु॒मद॒स्मे सु॒वीर्य॑म्। भवा॑ स्तो॒तृभ्यो॒ अन्त॑मः स्व॒स्तये॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । नः॒ । पा॒व॒क॒ । दी॒दि॒हि॒ । द्यु॒ऽमत् । अ॒स्मे इति॑ । सु॒ऽवीर्य॑म् । भव॑ । स्तो॒तृऽभ्यः॑ । अन्त॑मः । स्व॒स्तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नः पावक दीदिहि द्युमदस्मे सुवीर्यम्। भवा स्तोतृभ्यो अन्तमः स्वस्तये॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। नः। पावक। दीदिहि। द्युऽमत्। अस्मे इति। सुऽवीर्यम्। भव। स्तोतृऽभ्यः। अन्तमः। स्वस्तये॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 10; मन्त्र » 8
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे पावक विद्वन् ! त्वं स्तोतृभ्योऽस्मे द्युमत्सुवीर्य्यं देहि स त्वं नो दीदिहि स्वस्तयेऽन्तमो भव ॥८॥

    पदार्थः

    (सः) (नः) अस्मान् (पावक) वह्निवत्पवित्रकारक (दीदिहि) प्रकाशय (द्युमत्) प्रशस्तविज्ञानयुक्तम् (अस्मे) अस्मभ्यम् (सुवीर्य्यम्) शोभनधनम् (भव)। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (स्तोतृभ्यः) विद्याप्रचारकेभ्यः (अन्तमः) समीपस्थः (स्वस्तये) सुखप्राप्तये ॥८॥

    भावार्थः

    विद्वद्भिः स्वयं पवित्रैरन्ये विद्यासुशिक्षाभ्यां पवित्राः सम्पादनीया यतः सर्वे सखायः सन्तः सुखाय प्रभवेयुः ॥८॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (पावक) अग्नि के तुल्य पवित्रकारक विद्वान् पुरुष ! आप (स्तोतृभ्यः) विद्याओं के प्रचार करनेवाले (अस्मे) हम लोगों को (द्युमत्) प्रशंसा करने योग्य सद्विद्या के विज्ञान से युक्त (सुवीर्य्यम्) श्रेष्ठ धन दीजिये (सः) वह आप (नः) हम लोगों को (दीदिहि) प्रकाशित करो (स्वस्तये) सुख प्राप्ति के लिये (अन्तमः) समीप में वर्त्तमान (भव) हूजिये ॥८॥

    भावार्थ

    विद्वज्जन जो कि स्वयं पवित्र हैं, उनको चाहिये कि औरों को भी विद्या और उत्तम शिक्षा से पवित्र करें, जिससे सम्पूर्ण पुरुष मित्र होकर सुख करने के लिये समर्थ हों ॥८॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अन्तिकतम [अ+न्तम] प्रभु

    पदार्थ

    [१] (सः) = वे आप ही (नः पावकः) = हमारे लिए पवित्रता करनेवाले प्रभो ! (अस्मे) = हमारे लिये (द्युमत्) = ज्योतिर्मय (सुवीर्यम्) = उत्तम शक्ति (दीदिहि) = दीजिए। प्रभु ही हमें पवित्र करते हैं और ज्योति तथा शक्ति प्राप्त कराते हैं । [२] हे प्रभो! आप (स्तोतृभ्यः) = हम स्तोताओं के लिए (अन्तमः) = अन्तिकतम मित्र (भवा) = होइए । (स्वस्तये) = आप ही हमारे कल्याण के लिये होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ– प्रभु ज्योति व शक्ति प्राप्त कराते हैं। वे ही हमारे अन्तिकतम मित्र हैं - वे ही हमारे कल्याण को सिद्ध करते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे विद्वान लोक स्वतः पवित्र आहेत, त्यांनी इतरांनाही विद्या व सुशिक्षणाने पवित्र करावे. ज्यामुळे सर्वजण मित्र बनून सुख देण्यास समर्थ व्हावेत. ॥ ८ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, fire of yajna, such as you are, give us the light and make us shine. Bring us valour and lustrous energy with the light of wisdom and knowledge. For the celebrants, be at the closest for the sake of well being and the bliss of life.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of the enlightened are emphasized.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O purifier like the fire! we are propagators true of knowledge and therefore bestow upon us good wealth endowed with admirable scientific knowledge. Enlighten us and be ever nigh to those who praise you for their well-being.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    It is the duty of the enlightened persons to be pure and purify all with wisdom and good education, so that all are friendly to one another and finally may enjoy happiness.

    Foot Notes

    (दीदिहि ) प्रकाशय | दीदयति ज्वलति कर्मा ( N.G. 1, 16) = Enlighten or illuminate. (स्तोतृभ्य:) विद्याप्रचारकेभ्यः। = Propagators or communicators of true knowledge.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top