Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 3 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 3/ मन्त्र 8
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - वैश्वानरोऽग्निः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    वि॒श्पतिं॑ य॒ह्वमति॑थिं॒ नरः॒ सदा॑ य॒न्तारं॑ धी॒नामु॒शिजं॑ च वा॒घता॑म्। अ॒ध्व॒राणां॒ चेत॑नं जा॒तवे॑दसं॒ प्र शं॑सन्ति॒ नम॑सा जू॒तिभि॑र्वृ॒धे॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒श्पति॑म् । य॒ह्वम् । अति॑थिम् । नरः॑ । सदा॑ । य॒न्तार॑म् । धी॒नाम् । उ॒शिज॑म् । च॒ । वा॒घता॑म् । अ॒ध्व॒राणा॑म् । चेत॑नम् । जा॒तऽवे॑दस॑म् । प्र । शं॒स॒न्ति॒ । नम॑सा । जू॒तिऽभिः॑ । वृ॒धे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्पतिं यह्वमतिथिं नरः सदा यन्तारं धीनामुशिजं च वाघताम्। अध्वराणां चेतनं जातवेदसं प्र शंसन्ति नमसा जूतिभिर्वृधे॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्पतिम्। यह्वम्। अतिथिम्। नरः। सदा। यन्तारम्। धीनाम्। उशिजम्। च। वाघताम्। अध्वराणाम्। चेतनम्। जातऽवेदसम्। प्र। शंसन्ति। नमसा। जूतिऽभिः। वृधे॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वद्विषयमाह।

    अन्वयः

    ये नरो वृधे जूतिभिर्विश्पतिं यह्वं यन्तारमतिथिं धीनां वाघतामध्वराणां चोशिजं जातवेदसं चेतनं परमात्मानं नमसा सदा प्रशंसन्ति ते ब्रह्मविदो भवन्ति ॥८॥

    पदार्थः

    (विश्पतिम्) विशः सर्वस्याः प्रजायाः पालकं स्वामिनम् (यह्वम्) महान्तम् (अतिथिम्) अतिथिवत् सत्कर्तव्यम् (नरः) स्वात्मेन्द्रियशरीराणि धर्मं प्रति नेतारः (सदा) (यन्तारम्) नियन्तारमुपरतम् (धीनाम्) सत्कर्मणां प्रज्ञानाम् च (उशिजम्) कामयमानम् (च) (वाघताम्) मेधाविनाम् (अध्वराणाम्) अहिंसनीयानाम् (चेतनम्) सम्यग् ज्ञानस्वरूपम् (जातवेदसम्) यो जातेषु सर्वेषु स्वव्याप्त्या विद्यतेऽथवा जातान् सर्वान् पदार्थान् वेत्ति तम् (प्रशंसन्ति) स्तुवन्ति (नमसा) सत्कारेण (जूतिभिः) वेगादिभिर्गुणैः (वृधे) वर्धनाय ॥८॥

    भावार्थः

    मनुष्यैराप्तैर्विद्वद्भिः स्तुतो महान् प्रजापालको ज्ञानस्वरूपः परमेश्वरः स्तोतव्योऽस्ति नैतदुपासनेन विना कञ्चित्पूर्णो लाभः प्राप्नोति ॥८॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    जो (नरः) अपने आत्मा, इन्द्रियाँ और शरीरों को धर्म की ओर पहुँचानेवाले जन (वृधे) वृद्धि के लिये (जूतिभिः) वेगादि गुणों से (विश्पतिम्) समस्त प्रजा के पालनेवाले (यह्वम्) बड़े (यन्तारम्) नियन्ता अर्थात् सब कामों को यथानियम पहुँचानेवाले (अतिथिम्) अतिथि के समान सत्कार करने योग्य (धीनाम्) उत्तम कर्म और बुद्धियों वा (वाघताम्) बुद्धिमान् (च) और (अध्वराणाम्) अहिंसनीय व्यवहारों के बीच (उशिजम्) कामना की ओर (जातवेदसम्) उत्पन्न हुए सब पदार्थों में अपनी व्याप्ति से विद्यमान अथवा उत्पन्न हुए समस्त पदार्थों को जाननेवाले (चेतनम्) अच्छे प्रकार ज्ञानस्वरूप परमात्मा की (नमसा) सत्कार से (सदा) सदैव (प्र, शंसन्ति) प्रशंसा करते हैं, वे ब्रह्मवेत्ता होते हैं ॥८॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को आप्त विद्वानों ने =से स्तुति किया हुआ महान् प्रजापालक ज्ञानस्वरूप परमेश्वर स्तुति करने योग्य है, इसकी उपासना के विना किसी को पूरा लाभ प्राप्त नहीं होता ॥८॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    बुद्धि + यज्ञ + धन

    पदार्थ

    [१] (नरः) = उन्नतिपथ पर चलनेवाले व्यक्ति वृधे वृद्धि के लिये जीवन में उत्कर्ष के लिये (नमसा) = नमन द्वारा तथा (जूतिभिः) = क्रियाशीलताओं द्वारा उस प्रभु का (प्रशंसन्ति) = शंसन करते हैं, जो प्रभु (विश्पतिम्) = प्रजाओं के पालक व रक्षक हैं, (यह्वाम्) = महान् हैं, (अतिथिम्) = जीवहित के लिये सदा गतिशील हैं 'स्वाभाविकी ज्ञान बल क्रिया च' । सदा हमेशा (धीनाम्) = बुद्धियों को (यन्तारम्) = देनेवाले हैं। [२] उस प्रभु का शंसन करते हैं जो कि (वाघताम्) = यज्ञादि कार्यभारों का वहन करनेवालों के (उशिजम्) = प्रिय हैं, उनको चाहनेवाले हैं। ये यज्ञशीलपुरुष प्रभु को सदा प्रिय होते हैं। (अध्वराणां चेतनं) [यज्ञस्य केतुं] = यज्ञों के ये प्रज्ञापक हैं, हृदयस्थरूपेण सदा यज्ञों की प्रेरणा देनेवाले हैं। वेदों में सब यज्ञों का प्रतिपादन करनेवाले हैं। जातवेदसम्-यज्ञों की सिद्धि के लिये सब ऐश्वर्यों को देनेवाले हैं (जातं वेदः = धनं यस्मात्)

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु प्रजाओं के रक्षक हैं। वे बुद्धि देते हैं, यज्ञों की प्रेरणा देते हैं। यज्ञों की सिद्धि के लिये धनों को प्राप्त कराते हैं ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    Bhajan

    आज का वैदिक भजन 🙏 1147
    ओ३म् वि॒श्पतिं॑ य॒ह्वमति॑थिं॒ नर॒: सदा॑ य॒न्तारं॑ धी॒नामु॒शिजं॑ च वा॒घता॑म् ।
    अ॒ध्व॒राणां॒ चेत॑नं जा॒तवे॑दसं॒ प्र शं॑सन्ति॒ नम॑सा जू॒तिभि॑र्वृ॒धे ॥
    ऋग्वेद 3/3/8

    आओ प्रभु से पा लें 
    हम सात्विक उभय निधि 
    हमें वैश्वानर बना देवें 
    भौतिक अध्यात्मिक धनी
    आओ प्रभु से पा लें  

    हे मन्द्र! आनन्ददाता 
    दे दो फुहार आनन्द की 
    बनें दिव्य गुणों से सत्य 
    शिव सुन्दर हम सुधी
    आओ प्रभु से पा लें 

    बिन लक्ष्य ना तो चाहें 
    धन-वस्त्र सोना-चाँदी  
    ना महल ना हीरे-मोती 
    क्या मिलेगा पाके इनको 
    जो हटेगी सुख व शान्ति
    आओ प्रभु से पा लें  
    हम सात्विक उभय निधि 
    हमें वैश्वानर बना देवें 
    भौतिक अध्यात्मिक धनी
    आओ प्रभु से पा लें  

    धन से विहीन निर्धन 
    भी पा सकता है विभाती 
    पाना जो चाहे कान्ति 
    जिनमें संयम सन्तोष है 
    होती है सुख की प्राप्ति
    आओ प्रभु से पा लें  
    हम सात्विक उभय निधि 
    हमें वैश्वानर बना देवें 
    भौतिक अध्यात्मिक धनी
    आओ प्रभु से पा लें  

    जिन्हें तीन ऐषणाएँ  
    जीवन में ना सतातीं 
    पापों में ना ले जातीं 
    उन्हें लोकहित की ऐषणा 
    लग जाती है सर्वोपरि
    आओ प्रभु से पा लें  
    हम सात्विक उभय निधि 
    हमें वैश्वानर बना देवें 
    भौतिक अध्यात्मिक धनी
    आओ प्रभु से पा लें  

    ऐसे यह सन्यासीजन 
    बन जाते हैं याज्ञिक अग्नि 
    सद्गुणों की होती वृद्धि 
    ज्ञान कर्म से प्रकाशित जन
    पाते हैं ईश की शरणी 
    आओ प्रभु से पा लें 
    हम सात्विक उभय निधि 
    हमें वैश्वानर बना देवें 
    भौतिक अध्यात्मिक धनी
    हे मन्द्र! आनन्ददाता 
    दे दो फुहार आनन्द की 
    बनें दिव्य गुणों से सत्य 
    शिव सुन्दर हम सुधी
    आओ प्रभु से पा लें 

    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    रचना दिनाँक :-- ४.८.२०१० २१.५०रात्रि, नवीनतम संस्करण २६.९.२०२१ २०.१०रात्रि

    राग :- भैरवी
    गायन समय प्रातः काल, ताल कहरवा 8 मात्रा

    शीर्षक :- उसकी सब प्रशंसा करते हैं 🎧723वां वैदिक भजन👏🏽 भजन ७२३वां

    *तर्ज :- *
    00136-736

    मन्द्र = शान्त, प्रसन्न 
    उभय-निधि = दोनों प्रकार के ऐश्वर्य --भौतिक  व अध्यात्मिक 
    वैश्वानर = सब नरों को आगे ले जाने वाला (हितकर्ता परमेश्वर )
    विभाती = शोभा, सुन्दरता 
    कान्ति = सौन्दर्य,आभा,चमक
    ऐष्णाएं = तरह-तरह की लालसाएं- इच्छाएं
     

      वैदिक मन्त्र
    विश्पति यह्वमतिथिं नर : सदा यन्तारं धीनामुशिजं च वाघताम्।
    अध्वराणा चेतनं जातवेदसं प्र शंसन्ति
    नमसा जूतिभिर्वृधे ।।  ऋ•३.३.८

             वैदिक भजन १०९३ वां
                   राग कलावती
       गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर 
        ताल रूपक ७ मात्रा (दुगुन लय)
                       भाग १
    चलो मिल के हित करता के गीत गाएं
    वह है (प्रभु) 'वैश्वानर'जो उन्नत कराए
    चलो मिल के.........
    वह है जातवेदा, वह सर्वंतर्यामी
    वह सर्वज्ञ है सबका एकमात्र स्वामी
    श्रद्धा प्रणति के भाव मन में जगाएं।।
    वो हैं........
    स्तुति गान के संग क्रिया भी आवश्यक
    धरे हाथ पर हाथ तो जीवन अकारथ
    गतिशीलता का संकल्प बनाएं।।
    वो है........
    वह ' विश्वापति ' है प्रजाओं का स्वामी
    अधिश्वर है वो ही जगत का विधानी
    भक्तों को सन्मार्ग पे विधिवत चलाए।।
    वो है........ 
                 शब्दार्थ अन्त में
                        भाग २
    चलो मिल के हितकर्ता के गीत गाएं
    वो है (प्रभु) 'वैश्वानर 'जो उन्नत कराए।।
    चलो मिल के.........
    दिशा-बुद्धि कर्म की जिनकी सही है
    तो अवरोध जीवन में उनके नहीं है
    जगत में वो मानवता शान्ति फैलाए।।
    चलो मिलके..........
    जो मानव-सेवा यज्ञ का बने ऋत्विज
    अहिंसा के भाव जगे जिसमें सात्विक
    हिंसा--प्रभु प्रीत,मेल ना खाएं।
    वो है.......
    है आपसी प्रेम, प्रभु- प्रेम द्योतक
    यह सब प्रेमी पहुंचेंगे प्रभु प्रेम लौ तक
    इन्हीं सद्गुणों से विभूषित हो जाएं।।
    वो है.........
    चलो मिलके........   
                     २७.७.२००१

                      ९.४० रात्रि
                        शब्दार्थ:-
    वैश्वानर=सब नरों को आगे ले जाने वाला
    जातवेदा=उत्पन्न पदार्थों में विद्यमान और जानने हारा
    सर्वज्ञ=सब कुछ जानने वाला
    अकारथ=व्यर्थ
    विश्पति=राजाओं का स्वामी
    विधानी=व्यवस्था करने वाला
    ऋत्विज =नेता
    द्योतक= बतलाने वाला, प्रकाशक
    विभूषित= अलंकृत, सजाया हुआ
    लौ=दीपक की बाती से उठती आग
    अवरोध= रुकावट

    द्वितीय वैदिक भजन श्रंखला का ८3 वां वैदिक भजन
    तथा कबतक का क्रमशः १०९० वां वैदिक भजन। 

    🕉️👏🧎‍♂️सभी प्रिय श्रोताओ को हार्दिक धन्यवाद एवं शुभकामनाएं! 🎧

     

    Vyakhya

    प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
    उसकी सब प्रशंसा करते हैं

    आओ सब मिलकर प्रभु के गीत गाएं। वह प्रभु वैश्वानर है, सब जनों को आगे ले जाने वाला एवं सब लोगों का हित कर्ता है। वह 'जातवेदा:'है, सर्वांतर्यामी एवं सर्वज्ञ है। यदि हम अपनी वृद्धि एवं समुन्नति चाहते हैं, तो श्रद्धा और नमन के साथ उसकी प्रशंसा करें, उसकी गुणावली का गान करें‌। पर श्रद्धा और नमन के साथ'जूति' 'अर्थात् वेगमयी क्रिया भी आवश्यक है। हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और प्रभु स्तुति करते रहें, तो हमारी वृद्धि नहीं हो सकती। प्रभु प्रेरणा पाकर हम वृद्धि के लिए सक्रिय हो जाएंगे, तभी हम वृद्धि एवं उत्कर्ष पा सकेंगे।
    वह प्रभु 'विश्वपति' है, सब प्रजाओ का स्वामी है, अधीश्वर है, राजा है। वह 'यह्व' है, महानों में महान है, सब जड़- चेतन जगत उसी की महत्ता का गुणगान कर रहा है। वह उपासकों की बुद्धियों का एवं उनके कर्मों का नियन्ता है, उनकी बुद्धियों एवं कर्मों को सही दिशा में चलाने वाला है। जिनके बुद्धि और कर्म गलत दिशा में चलते हैं, वे संसार में उत्पात, उपद्रव और विनाश लीला ही मचाते हैं। पर जिनके बुद्धि और कर्म प्रभुकृपा से सही दिशा में अग्रसर होते हैं, वे सर्वजन उपयोगी नाना आविष्कार करके मानवता की सेवा करते हैं और विश्व में शान्ति स्थापित करते हैं। जो मानव सेवा-रूप यज्ञ के ऋत्विज् या नेता बनते हैं, अथवा जो प्रभु में लौ लगाते हैं, उनका वह सच्चा प्रेमी बन जाता है, पूरे जी-जान से चाहने लगता है। वह हमारे मनों में अहिंसा के भावों को जगाने वाला है। प्रभु -प्रीति और हिंसा यह दोनों वस्तुएं एक साथ नहीं रह सकतीं। प्रभु प्रेम का निश्चित परिणाम है मानवता से प्रेम।
    आओ उक्त गुणगणों से विभूषित महानीय प्रभु का कीर्तिगान करके हम भी कीर्तिमान बनें।

    🕉🧘‍♂️ईश- भक्ति- भजन
    भगवान् ग्रुप द्वारा🌹🙏
    वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएँ🙏💕
     

    उसकी सब प्रशंसा करते हैं

    आओ सब मिलकर प्रभु के गीत गाएं।
    वह प्रभु ' वैश्वानर ' है, सब नारों को आगे ले जाने वाला एवं सब नरों का हितकर्ता है। बहुत ' जातवेदा: ' है, सर्वांतर्यामी एवं सर्वज्ञ है। यदि हम अपनी  वृद्धि और सम्मुन्नति चाहते हैं, तो श्रद्धा और नमन के साथ उसकी प्रशंसा करें उसकी गुणावली का गान करें। पर श्रद्धा और नमन के साथ     'जूति 'अर्थात वेगमयी क्रिया भी आवश्यक है। हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और प्रभु- स्तुति करते रहें, तो हमारी वृद्धि नहीं हो सकती। प्रभु से प्रेरणा पाकर हम वृद्धि के लिए सक्रिय हो जाएंगे, तभी हम वृद्धि एवं उत्कर्ष पा सकेंगे।
    वह प्रभु 'विश्पति ' है, सब पर आ जाओ का स्वामी है, अधीश्वर है, राजा है। वह 'यह्व ' है, महानों में महान है, सब जड़ चेतन जगत उसी की महत्ता का गुणगान कर रहा है। वह उपासक को की बुद्धियों का एवं उनके कर्मों का नियन्ता है, उनकी बुद्धियों एवं कर्मों को सही दिशा में चलाने वाला है। जिनके बुद्धि और कर्म गलत दिशा में चलते हैं, वे संसार में उत्पात, उपद्रव और विनाश लीला ही मचाते हैं। पर जिनके बुद्धि और कर्म प्रभु कृपा से सही दिशा में अग्रसर होते हैं, वे 
    सर्वजनोपयोगी नाना अविष्कार करके मानवता की सेवा करते हैं और विश्व में शान्ति स्थापित करते हैं। जो मानव सेवा रूप यज्ञ के ऋत्विज् या नेता बनते हैं, अथवा जो प्रभु में लौ लगाते हैं, उनका वह सच्चा प्रेमी बन जाता है, उन्हें जी-जान से चाहने लगता है। वह हमारे मनों में अहिंसा के भावों को जगाने वाला है। प्रभु-प्रीति और हिंसा यह दोनों वस्तुएं एक साथ नहीं रह सकतीं। प्रभु प्रेम का निश्चित परिणाम है मानवता से प्रेम।
    आओ उक्त गुणगणों से विभूषित महनीय प्रभु का कीर्तिगान करके हम भी कीर्तिमान बनें।

     

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    आप्त विद्वानांनी स्तुती केलेला, महान प्रजापालक, ज्ञानस्वरूप परमेश्वर स्तुती करण्यायोग्य आहे. माणसांनी त्याची उपासना केल्याशिवाय पूर्ण लाभ मिळू शकत नाही. ॥ ८ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    For the sake of elevation and exaltation, with food and homage, abandon and ecstasy, people praise, admire and worship Agni, lord of the common wealth of humanity, great, honourable and welcome like a learned visitor, guide and leader, inspirer of the wise and worshipful performers of the yajna of love and non violence, eminent among the learned and the lord who knows all that is born and exists.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of the learned persons are continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Those leading persons know God who glorify Him with reverence for the sake of their quick development. Indeed, He is the Mighty Lord of the People, Controller of all' Venerable like a guest, and always desirous of good knowledge and actions on behalf of His devotees, who are inviolable and extremely wise. He is Omnipresent and Omniscient and conscious Supreme Being.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    God is glorified by absolutely truthful and enlightened persons and He alone is the Protector of the people and Omniscient and is worthy of glorification and adoration. Without having communion with Him, none can enjoy perfect peace and Bliss.

    Foot Notes

    (नरः) स्वात्मेन्द्रियशरीराणि धर्मं प्रति नेतारः = Leaders who lead their soul, senses and body towards the Path of Dharma (righteousness ). ( जातवेदसम् ) यो जातेषु सर्वेषु स्वव्याप्त्या विद्यतेऽथवा जातान् सर्वान् पदार्थान् वेत्ति | जातानि वैनं विदुः । जाते जाते विद्यते इति वा (Nkt. 7, 5, 19) = He who is Omnipresent and Omniscient. (जूतिभिः) वेगादिभिर्गुणै: = With speed and other virtues, quickly.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top