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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 11/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - अग्निः छन्दः - स्वराड्बृहती स्वरः - मध्यमः

    त्वद॑ग्ने॒ काव्या॒ त्वन्म॑नी॒षास्त्वदु॒क्था जा॑यन्ते॒ राध्या॑नि। त्वदे॑ति॒ द्रवि॑णं वी॒रपे॑शा इ॒त्थाधि॑ये दा॒शुषे॒ मर्त्या॑य ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वत् । अ॒ग्ने॒ । काव्या॑ । त्वम् । म॒नी॒षाः । त्वत् । उ॒क्था । जा॒य॒न्ते॒ । राध्या॑नि । त्वत् । ए॒ति॒ । द्रवि॑णम् । वी॒रऽपे॑शाः । इ॒त्थाऽधि॑ये । दा॒शुषे॑ । मर्त्या॑य ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वदग्ने काव्या त्वन्मनीषास्त्वदुक्था जायन्ते राध्यानि। त्वदेति द्रविणं वीरपेशा इत्थाधिये दाशुषे मर्त्याय ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वत्। अग्ने। काव्या। त्वत्। मनीषाः। त्वत्। उक्था। जायन्ते। राध्यानि। त्वत्। एति। द्रविणम्। वीरऽपेशाः। इत्थाऽधिये। दाशुषे। मर्त्याय ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
    अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे अग्ने ! वीरपेशा वयमित्थाधिये दाशुषे मर्त्याय त्वत् काव्या त्वन्मनीषास्त्वदुक्था राध्यानि जायन्ते त्वद् द्रविणमेति तस्मात् त्वां वयं भजेम ॥३॥

    पदार्थः

    (त्वत्) तव सकाशात् (अग्ने) विद्वन् (काव्या) कविभिर्विद्वद्भिर्निर्मितानि (त्वत्) (मनीषाः) प्रमाः (त्वत्) (उक्था) प्रशंसनीयानि (जायन्ते) (राध्यानि) संसाधनीयानि (त्वत्) (एति) प्राप्नोति (द्रविणम्) (वीरपेशाः) वीराणां पेशो रूपमिव रूपं येषान्ते (इत्थाधिये) अनेकप्रकारेण धीर्यस्य तस्मै (दाशुषे) दात्रे (मर्त्याय) मनुष्याय ॥३॥

    भावार्थः

    हे राजन् ! यदि त्वं विद्वाञ्जितेन्द्रियो न्यायकारी भवेस्तर्हि त्वदनुकरणेन सर्वे मनुष्याः सत्याचारे प्रवर्त्यैश्वर्य्यं प्राप्य सर्वस्याः प्रजाया हितं साद्धुं शक्नुयुः ॥३॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्वन् ! आप (वीरपेशाः) वीर पुरुषों के रूप के सदृश रूपवाले हम लोग (इत्थाधिये) इस प्रकार (त्वत्) आपके समीप से बुद्धियुक्त (दाशुषे) देनेवाले (मर्त्याय) मनुष्य के लिये (काव्या) कवि विद्वानों के निर्मित किये काव्य (त्वत्) आपके समीप से (मनीषाः) यथार्थज्ञान (त्वत्) आपके समीप से (उक्था) प्रशंसा करने (राध्यानि) और सिद्ध करने योग्य द्रव्य (जायन्ते) प्रसिद्ध होते हैं (त्वत्) आपके समीप से (द्रविणम्) धन (एति) प्राप्त होता है, इससे हम लोग आपकी सेवा करें ॥३॥

    भावार्थ

    हे राजन् ! जो आप विद्वान्, जितेन्द्रिय और न्यायकारी होवें तो आपके अनुकरण से सम्पूर्ण मनुष्य सत्य आचरण में प्रवृत्त हो और ऐश्वर्य्य को प्राप्त होकर सम्पूर्ण प्रजा का हित साध सकें ॥३॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा ! जर तू विद्वान जितेन्द्रिय व न्यायकारी बनलास तर तुझ्या अनुकरणाने संपूर्ण माणसे सत्याचरणात प्रवृत्त होऊन ऐश्वर्य प्राप्त करून संपूर्ण प्रजेचे हित साधू शकतात. ॥ ३ ॥

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, lord of light, energy and intelligence, by you are great poems inspired. From you flows genius and intelligence. By you are revealed hymns of celebration and holy action. From you arise the resources of life for development. O lord of valour and beauteous form, from you flow the wealths of existence in circulation for the mortal man of versatile intelligence and generosity.

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