ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 43/ मन्त्र 3
ऋषिः - पुरुमीळहाजमीळहौ सौहोत्रौ
देवता - अश्विनौ
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
म॒क्षू हि ष्मा॒ गच्छ॑थ॒ ईव॑तो॒ द्यूनिन्द्रो॒ न श॒क्तिं परि॑तक्म्यायाम्। दि॒व आजा॑ता दि॒व्या सु॑प॒र्णा कया॒ शची॑नां भवथः॒ शचि॑ष्ठा ॥३॥
स्वर सहित पद पाठम॒क्षु । हि । स्म॒ । गच्छ॑थः । ईव॑तः । द्यून् । इन्द्रः॑ । न । श॒क्तिम् । परि॑ऽतक्म्यायाम् । दि॒वः । आऽजा॑ता । दि॒व्या । सु॒ऽप॒र्णा । कया॑ । शची॑नाम् । भ॒व॒थः॒ । शचि॑ष्ठा ॥
स्वर रहित मन्त्र
मक्षू हि ष्मा गच्छथ ईवतो द्यूनिन्द्रो न शक्तिं परितक्म्यायाम्। दिव आजाता दिव्या सुपर्णा कया शचीनां भवथः शचिष्ठा ॥३॥
स्वर रहित पद पाठमक्षु। हि। स्म। गच्छथः। ईवतः। द्यून्। इन्द्रः। न। शक्तिम्। परिऽतक्म्यायाम्। दिवः। आऽजाता। दिव्या। सुऽपर्णा। कया। शचीनाम्। भवथः। शचिष्ठा ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 43; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे अध्यापकोपदेशकौ दिव्या सुपर्णा दिव आजाता शचिष्ठा ! भवन्ताविन्द्र ईवतो द्यून्न परितक्म्यायां शक्तिं गच्छथो हि कया स्मा शचीनां शचिष्ठा मक्षु भवथः ॥३॥
पदार्थः
(मक्षु) सद्यः (हि) (स्मा) एव। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (गच्छथः) (ईवतः) बहुगतिमतः (द्यून्) प्रकाशान् (इन्द्रः) विद्युत् (न) इव (शक्तिम्) सामर्थ्यम् (परितक्म्यायाम्) परितः सर्वतस्तकन्ति हसन्ति यस्यां सृष्टौ तस्याम् (दिवः) विद्याप्रकाशात् (आजाता) समन्ताज्जातौ (दिव्या) दिवि शुद्धे व्यवहारे भवौ (सुपर्णा) सुष्ठु पर्णानि पालनानि ययोस्तौ (कया) (शचीनाम्) प्रज्ञानां वाचां वा (भवथः) (शचिष्ठा) अतिशयेन प्राज्ञौ ॥३॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । ये विद्युद्वत्सामर्थ्यं वर्द्धयन्ति ते धीमन्तो भूत्वाऽतुलां श्रियं जगति लभन्ते ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे अध्यापकोपदेशको (दिव्या) शुद्ध व्यवहार में उत्पन्न (सुपर्णा) उत्तम पालनों से युक्त (दिवः) विद्या के प्रकाश से (आजाता) सब प्रकार उत्पन्न हुए (शचिष्ठा) अत्यन्त बुद्धिमानो ! आप (इन्द्रः) बिजुली (ईवतः) बहुत गतिवाले (द्यून्) प्रकाशों को जैसे (न) वैसे (परितक्म्यायाम्) सब प्रकार हंसनेवालों से युक्त सृष्टि में (शक्तिम्) सामर्थ्य को (गच्छथः) प्राप्त होते हैं (हि) ही हो और (कया, स्मा) किसी से (शचीनाम्) बुद्धियों वा वाणियों के अत्यन्त जाननेवाले (मक्षु) शीघ्र (भवथः) होते हो ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो बिजुली के सदृश सामर्थ्य को बढ़ाते हैं, वे बुद्धिमान् होकर अतुल लक्ष्मी को संसार में प्राप्त होते हैं ॥३॥
विषय
अन्धकार में भी प्रकाश
पदार्थ
[१] हे प्राणापानो! आप (हि स्म) = निश्चय से (ईवतः द्यून्) = आगामी दिनों में (मक्षू) = शीघ्र ही (गच्छथः) = हमें प्राप्त होते हो । (न) = जैसे (इन्द्रः) = एक जितेन्द्रिय पुरुष (परितक्म्यायाम्) = रात्रि में अन्धकार में भी (शक्तिम्) = शक्ति को प्राप्त करता है। जीवनयात्रा में घने अन्धकार के भी दिन आते हैं। उन दिनों में एक जितेन्द्रिय पुरुष घबराता नहीं। जैसे यह इन्द्र शक्ति को प्राप्त करता है, इसी प्रकार आगामी दिवसों में हम प्राणापान को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। प्राणापान की आराधना ही हमें जीवनयात्रा में अन्धकारमय दिनों में भी व्याकुलता से बचाएगी। [२] (दिव: आजाता) = ये प्राणापान प्रकाश के हेतु से प्रादुर्भूत किये गये हैं इनकी साधना से अशुद्धि का क्षय होकर ज्ञान चमक उठता है। (दिव्या) = ये प्राणापान हमारे जीवन में दिव्य गुणों को जन्म देनेवाले हैं। (सुपर्णा) = उत्तमता से हमारा पालन व पूरण करनेवाले हैं और ये प्राणापान (कया) = अपनी आनन्दप्रद शक्ति से (शचीनां शचिष्ठा भवथः) = अतिशयेन शक्तिवाले होते हैं। प्राणसाधना से हमें अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है ।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणायाम द्वारा प्राणापान की साधना हमारे जीवन में शक्ति का संचार करती है और अन्धकारमय दिनों में भी प्रकाश को प्राप्त कराती है।
विषय
स्त्री पुरुषों के उत्तम गुणों का वर्णन।
भावार्थ
(परितक्म्यायाम्) रात्रि के व्यतीत हो जाने पर जिस प्रकार (इन्द्रः) सूर्य (ईवतः द्यून्) गुज़रते हुए गतिशील प्रकाशों को प्राप्त होता और (शक्तिं न) उत्तरोत्तर शक्तिवान् (शक्तिं गच्छति) अधिक सामर्थ्य को भी प्राप्त करता है । उसी प्रकार हे वर, वधू ! हे स्त्री पुरुषो ! आप दोनों भी (ईवतः द्यून्) आगामी दिवसों में (परितक्म्यायाम्) सब तरफ़ से कष्ट वा उपहास वाली सृष्टि में या वेला में (मक्षू हि) शीघ्र ही (शक्तिं गच्छथः स्म) अधिकाधिक शक्ति को प्राप्त करो। कितनी ही संकट दशा हो वा लोक-हंसाई हो तो भी आप दोनों उत्तरोत्तर शक्ति प्राप्त करते जाओ । आप दोनों (दिव्या सुपर्णा) सूर्य से उत्पन्न दिव्य दो रश्मियों के तुल्य (दिवः आ जाता) एक दूसरे की कामना से आदरपूर्वक एक दूसरे के आश्रय पर रहते हुए । (दिव्या सुपर्णा) दिव्य कान्तियुक्त शुभ, सुखकारी पालन शक्ति से युक्त होकर (शचीनां) उत्तम शक्तियों, वाणियों और बुद्धियों के बीच में भी (कया) अति सुखमयी मति या वाणी से (शचिष्ठा) अतिशय शक्ति और वाणी से युक्त, सबसे श्रेष्ठ (भवथः) होकर रहो । शक्ति युक्त होने से स्त्री पुरुष दोनों ‘शची’ हैं, वे उत्तम वाणी, मति होने से सब स्त्री पुरुषों में उत्तम होवें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पुरुमीळ्हाजमीळ्हौ सौहोत्रावृषी। अश्विनौ देवते ॥ छन्द:– १, त्रिष्टुप। २, ३, ५, ६, ७ निचृत् त्रिष्टुप । ४ स्वराट् पंक्तिः ॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे विद्युतप्रमाणे सामर्थ्य वाढवितात ते बुद्धिमान बनून या जगात अतुल लक्ष्मी प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Ashvins, complementary powers of nature and humanity, magnificent on the move, you come instantly at the call of time like rays of the sun displaying his power over the smiling earth at the end of night. Coming from the heavens, divine with wings of light, by which one of nature’s immaculate forces do you become the most powerful and eloquent?
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
More inquisitiveness is described.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O teachers and preachers! you are of pure nature, good protectors, and are born of the light of knowledge from all sides. Moreover, you are the wisest among the knowers of intellects or speeches quickly, and go to attain energy in this world. The electricity similarly also brings light endowed with various movements. How do you become the most wise?
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those who increase their powers like electricity become wise and attain unmatched glory and prosperity in the world.
Foot Notes
(ईवतः) बहुगतिमत:। = Endowed with various movements. (धून्) प्रकाशान् । = Lights. (परितक्म्यायाम् ) परितः सर्वतस्तकन्ति हसन्ति यस्यां सुष्टौ तस्याम् | = In the world where people laugh from all sides. (सुपर्णा) सुष्ठु पर्णानि पालनानि ययोस्तौ। = Good protectors.
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