ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 48/ मन्त्र 5
वायो॑ श॒तं हरी॑णां यु॒वस्व॒ पोष्या॑णाम्। उ॒त वा॑ ते सह॒स्रिणो॒ रथ॒ आ या॑तु॒ पाज॑सा ॥५॥
स्वर सहित पद पाठवायो॒ इति॑ । श॒तम् । हरी॑णाम् । यु॒वस्व॑ । पोष्या॑णाम् । उ॒त । वा॒ । ते॒ । स॒ह॒स्रिणः॑ । रथः॑ । आ । या॒तु॒ । पाज॑सा ॥
स्वर रहित मन्त्र
वायो शतं हरीणां युवस्व पोष्याणाम्। उत वा ते सहस्रिणो रथ आ यातु पाजसा ॥५॥
स्वर रहित पद पाठवायो इति शतम्। हरीणाम्। युवस्व। पोष्याणाम्। उत। वा। ते। सहस्रिणः। रथः। आ। यातु। पाजसा ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 48; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 24; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 24; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे वायो राजंस्त्वं पोष्याणां हरीणां शतं युवस्वोत वा सहस्रिणस्ते पाजसा रथ आयातु ॥५॥
पदार्थः
(वायो) (राजन्) (शतम्) असङ्ख्यम् (हरीणाम्) मनुष्याणाम् (युवस्व) कर्मसु प्रेर्स्व (पोष्याणाम्) पोषितुं योग्यानाम् (उत) (वा) (ते) तव (सहस्रिणः) असङ्ख्यपुरुषधनयुक्तस्य (रथः) (आ) (यातु) समन्तात्प्राप्नोतु (पाजसा) बलेन ॥५॥
भावार्थः
हे राजन् ! यदि राज्यं कर्त्तुमिच्छेस्तर्हि सुसहायान् गृहाणेति ॥५॥ अत्र राजगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥५॥ इत्यष्टचत्वारिंशत्तमं सूक्तं चतुर्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (वायो) राजन् ! आप (पोष्याणाम्) पोषण करने योग्य (हरीणाम्) मनुष्यों के (शतम्) असङ्ख्य को (युवस्व) कर्मों के बीच प्रेरणा देओ (उत, वा) अथवा (सहस्रिणः) असंख्य पुरुष और धन से युक्त (ते) आपके (पाजसा) बल से (रथः) वाहन (आ, यातु) सब ओर से प्राप्त हो ॥५॥
भावार्थ
हे राजन् ! जो राज्य करने की इच्छा करो तो उत्तम सहायों का ग्रहण करो ॥५॥ इस सूक्त में राजगुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥५॥ यह अड़तालीसवाँ सूक्त और चौबीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
शतवर्षपर्यन्त क्रियाशील जीवन
पदार्थ
[१] हे (वायो) = क्रियाशील जीव! (पोष्याणाम्) = जिनका उत्तमता से पोषण किया गया है, ऐसे (हरीणाम्) = इन्द्रियाश्वों को (शतम्) = शतवर्षपर्यन्त (युवस्व) = तू शरीर-रथ में जोतनेवाला हो । अन्त तक तेरी इन्द्रियाँ शक्तिशाली हों और तू क्रियाशील जीवनवाला हो। [२] (उत वा) = और निश्चय से (ते) = तेरा (सहस्त्रिण: रथः) = [स हस्] सदा प्रसन्नता से युक्त यह शरीर रथ (पाजसा) = शक्ति से युक्त हुआ हुआ (आयातु) = सदा क्रिया में प्रवृत्त रहे और लक्ष्य स्थान पर पहुँचनेवाला हो।
भावार्थ
भावार्थ- हम शतवर्षपर्यन्त शक्ति-सम्पन्न होते हुए [पाजसा], प्रसन्नतापूर्वक [सहस्त्रिण:] क्रियाओं में प्रवृत्त रहें-सदा कर्त्तव्यकर्मों के करने में लगे रहें । हम अपने जीवन का लक्ष्य 'इन्द्राबृहस्पती' को बनाएँ। 'सर्वाणि बलकर्माणि इन्द्रस्य' शक्तिशाली हों तथा बृहस्पति-ब्रह्मणस्पति-ज्ञान के स्वामी बनें। इन्हीं का उल्लेख अगले सूक्त में है—
विषय
शत्रु उच्छेदक सेनापति का वर्णन ।
भावार्थ
पूर्वोक्त कथन को विशद करते हैं। हे (वायो) वायुवत् शत्रूच्छेदक राजन् ! तू (पोष्याणां) पोषण करने योग्य वेतन-बद्ध भृत्य (हरीणां) मनुष्यों के (शतं) सौ के दल को (युवस्व) मिलाकर रख और उनपर शासन कर । (उत वा) और (सहस्रिणः) हज़ारों के स्वामी (ते) तेरा (रथः) रथ वा रथ-सैन्य (पाजसा) बलपूर्वक (आया तु) आवे । इति चतुर्विंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः॥ वायुदेवता॥ छन्दः- १ निचृदनुष्टुप्। २ अनुष्टुप। ३, ४, ५ भुरिगनुष्टुप। पञ्चर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा ! जर राज्य करण्याची इच्छा असेल तर उत्तम साह्य प्राप्त कर. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Vayu, vibrant ruler of power, force and yajnic development, use a hundred of the best of force and people in your project of development, and let your chariot of a thousandfold wealth and power come to us for our yajna.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject of rulers 'duties are emphasized.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king! you are mighty like the wind, and engage in works hundreds of men, whom you support. May your powerful car come here, as you are endowed with infinite wealth and have thousands of men as your helpers.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O king, if you want to be an able ruler, take good helpers.
Foot Notes
(हरीणाम् ) मनुष्याणाम् । हरय इति मनुष्यनाम (NG 2, 3)। = Of men. (युवस्व ) कर्मसु प्रोरस्व । = Engage in works. (सहस्रिण:) असङ्ख्यपुरुषधनयुक्तस्य । यु मिश्रणामिश्रणयोः (अदा० ) अत्र मिश्रणार्थ: । सहस्र-मिति बहुनाम (NG 3, 1) = Endowed with infinite wealth and having thousands of men as helpers.
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