ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 55/ मन्त्र 2
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
प्र ये धामा॑नि पू॒र्व्याण्यर्चा॒न्वि यदु॒च्छान्वि॑यो॒तारो॒ अमू॑राः। वि॒धा॒तारो॒ वि ते द॑धु॒रज॑स्रा ऋ॒तधी॑तयो रुरुचन्त द॒स्माः ॥२॥
स्वर सहित पद पाठप्र । ये । धामा॑नि । पू॒र्व्याणि॑ । अर्चा॑न् । वि । यत् । उ॒च्छान् । वि॒ऽयो॒तारः॑ । अमू॑राः । वि॒ऽधा॒तारः॑ । वि । ते । द॒धुः॒ । अज॑स्राः । ऋ॒तऽधी॑तयः । रु॒रु॒च॒न्त॒ । द॒स्माः ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र ये धामानि पूर्व्याण्यर्चान्वि यदुच्छान्वियोतारो अमूराः। विधातारो वि ते दधुरजस्रा ऋतधीतयो रुरुचन्त दस्माः ॥२॥
स्वर रहित पद पाठप्र। ये। धामानि। पूर्व्याणि। अर्चान्। वि। यत्। उच्छान्। विऽयोतारः। अमूराः। विऽधातारः। वि। ते। दधुः। अजस्राः। ऋतऽधीतयः। रुरुचन्त। दस्माः ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 55; मन्त्र » 2
अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! ये पूर्व्याणि धामानि प्रार्चान् यद्येऽमूरा वियोतारः पूर्व्याणि धामानि व्युच्छान् येऽजस्रा ऋतधीतयो विधातारो दस्मा रुरुचन्त ते सततं वि दधुः ॥२॥
पदार्थः
(प्र) (ये) (धामानि) जन्मनामस्थानानि (पूर्व्याणि) पूर्वैः साक्षात्कृतानि (अर्चान्) सत्कुर्य्युः (वि) (यत्) ये (उच्छान्) विवासयेयुः (वियोतारः) विभाजकाः (अमूराः) अमूढाः (विधातारः) निर्मातारः (वि) (ते) (दधुः) दध्युः (अजस्राः) अहिंसकाः (ऋतधीतयः) ऋतस्य धीतिर्धारणं येषान्ते (रुरुचन्त) सुशोभन्ते (दस्माः) दुःखानां विनाशकाः ॥२॥
भावार्थः
ये आप्ताः सर्वेषां सुखमिच्छुका विद्वांसस्स्युस्त एव सर्वेषां सर्वाणि सुखानि कर्त्तुमर्हेयुः ॥२॥
हिन्दी (2)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (ये) जो (पूर्व्याणि) प्राचीन जनों से प्रत्यक्ष किये गये (धामानि) जन्म, नाम, स्थानों का (प्र, अर्चान्) उत्तम सत्कार करें और (यत्) जो (अमूराः) नहीं मूर्ख (वियोतारः) विभाग करनेवाले जन प्राचीन जनों से प्रत्यक्ष किये गये जन्म, नाम, स्थानों का (वि, उच्छान्) विवास करावें और जो (अजस्राः) नहीं हिंसा करने और (ऋतधीतयः) सत्य के धारण करनेवाले (विधातारः) निर्माणकर्त्ता (दस्माः) दुःखों के विनाशक जन (रुरुचन्त) उत्तम प्रकार शोभित होते हैं (ते) वे निरन्तर (वि, दधुः) विधान करें ॥२॥
भावार्थ
जो यथार्थवक्ता सब के सुख की इच्छा करनेवाले विद्वान् जन हों, वे ही सब के सब सुखों के करने योग्य होवें ॥२॥
विषय
ब्रह्मचर्य में व गृहस्थ में
पदार्थ
[१] (ये) = जो लोग पूर्व्याणि पालन व पूरण करनेवालों में उत्तम (धामानि) = तेजों का (प्र अर्चान्) = प्रकर्षेण अर्चन करते हैं, अथवा पूर्व आश्रम में [ब्रह्मचर्याश्रम में] सम्पादनीय वीर्यरूप तेज का अर्चन करते हैं और (यत्) = जब इस तेज के अर्चन द्वारा, ज्ञानाग्नि को दीप्त करके (वि उच्छान्) = अन्धकार को दूर करते हैं। (वियोतार:) = जो अज्ञानान्धकार को दूर करके बुराइयों को अपने से पृथक् करनेवाले हैं। ये लोग (अमूरा:) = अमूढ़ हैं-समझदार हैं। संसार में चलने का तरीका यही है कि पूर्व्य धाम वीर्य का समादर करें, अज्ञानान्धकार को दूर करें और बुराइयों से अपने को बचाएँ यही ब्रह्मचारी का कर्त्तव्य है। [२] अब गृहस्थ में आकर (विधातार:) = हम विशेषरूप से धारण करनेवाले बनें । (ते) = वे धारण करनेवाले लोग (अजस्त्रा:) = कार्यों को बीच में ही न छोड़ते हुए [जसु मोक्षणे] (विदधुः) = विशेषरूप से कार्यों को करते हैं। ये गृहस्थ (ऋत धीतयः) = सत्यकर्मा होते हुए-असत्य कर्मों से दूर हटते हुए (दस्मा:) = औरों के दुःखों को दूर करनेवाले होकर अथवा दर्शनीय जीवनवाले होकर (रुरुचन्त) = संसार में चमकते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- ब्रह्मचर्य में हम तेज का धारण करें, अविद्यान्धकार को दूर करें और बुराइयों से अपने को अलग करें। गृहस्थ में धारणात्मक कर्मों में प्रवृत्त हों, निरन्तर क्रियाशील रहें, सत्यकर्मा व दर्शनीय जीवनवाले हों।
मराठी (1)
भावार्थ
जे आप्त सर्वांच्या सुखाची इच्छा करणारे विद्वान असतात तेच सर्वांचे सुख पाहू शकतात. ॥ २ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Those who love and respect and have realised the primal seats and sources of divine bliss, who dispel the darkness and illuminate them, wise destroyers of suffering, creators and sustainers of boons of divine bliss, bear and bring immortal bliss without relent, they are the destroyers of want and misery, and they abide by and sustain the laws of truth and shine in glory.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal