ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 55/ मन्त्र 9
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
उषो॑ मघो॒न्या व॑ह॒ सूनृ॑ते॒ वार्या॑ पु॒रु। अ॒स्मभ्यं॑ वाजिनीवति ॥९॥
स्वर सहित पद पाठउषः॑ । म॒घो॒नि॒ । आ । व॒ह॒ । सूनृ॑ते । वार्या॑ । पु॒रु । अ॒स्मभ्य॑म् । वा॒जि॒नी॒ऽव॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उषो मघोन्या वह सूनृते वार्या पुरु। अस्मभ्यं वाजिनीवति ॥९॥
स्वर रहित पद पाठउषः। मघोनि। आ। वह। सूनृते। वार्या। पुरु। अस्मभ्यम्। वाजिनीऽवति ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 55; मन्त्र » 9
अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे उषर्वद्वर्त्तमाने सूनृते मघोनि वाजिनीवति ! पत्नी त्वमस्मभ्यं पुरु वार्याऽऽवह ॥९॥
पदार्थः
(उषः) उषर्वद्वर्त्तमाने (मघोनि) प्रशंसितधनकारिके (आ) (वह) समन्तात् प्रापय (सूनृते) सत्यवाक् (वार्या) वर्त्तुमर्हाणि वस्तूनि (पुरु) (अस्मभ्यम्) (वाजिनीवति) उत्तमविद्यायुक्ते ॥९॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथोषाः सर्वजीवानां प्रियकारिणी वर्त्तते तथैव विदुषी स्त्री सर्वप्रिया जायते ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (उषः) प्रातःकाल के सदृश वर्त्तमान (सूनृते) सत्यवाणीयुक्त (मघोनि) प्रशंसित धन को करनेवाली (वाजिनीवति) उत्तम विद्या से युक्त पत्नी ! तू (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (पुरु) बहुत (वार्या) वर्त्ताव में लाने योग्य वस्तुओं को (आ, वह) सब प्रकार से प्राप्त कराओ ॥९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्रभातवेला सब जीवों की प्रिय करनेवाली है, वैसे ही विद्यायुक्त स्त्री सब को प्रिय होती है ॥९॥
विषय
'मघोनी-सूनृता-वाजिनीवती' उषा
पदार्थ
[१] हे (उषः) = उषा की देवी ! तू (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (पुरुवार्या) = पालक व पूरक वरणीय धनों को (आवह) = प्राप्त करा । हम उषा में प्रबुद्ध होकर स्वकार्य तत्पर होते हुए वरणीय धनों को प्राप्त करनेवाले बनें। [२] हे उष: ! तू [क] (मघोनि) = सब ऐश्वर्योंवाली है अथवा [मघः मखः यज्ञ] सब यज्ञोंवाली है। हम ऐश्वर्यों को प्राप्त करें और यज्ञों में उनका विनियोग करें। [ख] (सूनृते) = हे उषः ! तू प्रिय सत्यवाणीवाली है। तेरे में प्रबुद्ध होते हुए हम सदा प्रिय सत्यवाणी को ही बोलें। [ग] (वाजिनीवति) = तू प्रशस्त अन्नोंवाली है। उषा के उपासक हम सदा सात्त्विक अन्नों का ही सेवन करें।
भावार्थ
भावार्थ- हम उषाकाल में जाएँ। यज्ञों में प्रवृत्त हों, प्रिय सत्यवाणी को ही बोलें और सात्त्विक अन्न का सेवन करें। यह उषा हमें सब वरणीय धनों को प्राप्त कराएगी।
विषय
सर्व देवमय पति ।
भावार्थ
हे (उषः) उषावत् कमनीय कान्ति से युक्त विदुषि ! हे (मघोनि) उत्तम धन समृद्धि से सम्पन्न ! हे (सूनृते) उत्तम ज्ञान और वाणी बोलने और उत्तम अन्न उपयोग करने हारी ! हे (वाजिनीवति) बलशालिनी शक्ति वा क्रिया तथा ज्ञान युक्त विद्या से युक्त तू (अस्मभ्यम्) हमें (पुरु) बहुत से (वार्या) वरण करने योग्य ऐश्वर्य (आ वह) प्राप्त करा ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवता॥ छन्दः– १ त्रिष्टुप् । २, ४ निचृत् त्रिष्टुप्। ३, ५ भुरिक् पंक्तिः। ६,७ स्वराट् पंक्तिः। ८,९ विराड् गायत्री। १० गायत्री॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी उषा सर्व जीवांना प्रिय असते तशीच विद्यायुक्त स्त्री सर्वांना प्रिय असते. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Usha, O lady of morning light, beauty of the home, blest with holy speech of inspiration, commanding wealth and honour, mistress of intelligence and speed of progress in action and endeavour, bring us manifold wealth and honour of our cherished desire.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of learned person's attributes is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O wife ! behaving like the dawn, and endowed with absolutely true and sweet speech, you cause to attain admirable wealth, and possession of good knowledge. Let you lead us to many desirable objects.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As the dawn does good to all souls, so a highly learned wife attains popularity everywhere.
Foot Notes
(मघोनि ) प्रशंसितधनकारिके । मघमिति धननाम (NG 2, 10) मह पूजायाम् । = Causing admirable wealth. (वाजिनीवति) उत्तम विद्यायुक्त । वाज:-वज गतौ । गते स्त्रिष्वथषु ज्ञानार्थग्रहणमन | = Possessor of good knowledge.
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