साइडबार
ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 23/ मन्त्र 3
ऋषिः - द्युम्नो विश्वचर्षणिः
देवता - अग्निः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
विश्वे॒ हि त्वा॑ स॒जोष॑सो॒ जना॑सो वृ॒क्तब॑र्हिषः। होता॑रं॒ सद्म॑सु प्रि॒यं व्यन्ति॒ वार्या॑ पु॒रु ॥३॥
स्वर सहित पद पाठविश्वे॑ । हि । त्वा॒ । स॒ऽजोष॑सः । जना॑सः । वृ॒क्तऽब॑र्हिषः । होता॑रम् । सद्म॑ऽसु । प्रि॒यम् । व्यन्ति॑ । वार्या॑ । पु॒रु ॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वे हि त्वा सजोषसो जनासो वृक्तबर्हिषः। होतारं सद्मसु प्रियं व्यन्ति वार्या पुरु ॥३॥
स्वर रहित पद पाठविश्वे। हि। त्वा। सऽजोषसः। जनासः। वृक्तऽबर्हिषः। होतारम्। सद्मऽसु। प्रियम्। व्यन्ति। वार्या। पुरु ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 23; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्वीरगुणानाह ॥
अन्वयः
हे राजन् ! ये विश्वे सजोषसो जनासो वृक्तबर्हिषो इव हि सद्मसु होतारं प्रियं त्वाश्रयन्ति ते पुरु वार्य्या व्यन्ति ॥३॥
पदार्थः
(विश्वे) सर्वे (हि) (त्वा) त्वाम् राजानम् (सजोषसः) समानप्रीतिसेवनाः (जनासः) प्रसिद्धशुभाचरणाः (वृक्तबर्हिषः) श्रोत्रिया ऋत्विज इव सर्वविद्यासु कुशलाः (होतारम्) दातारम् (सद्मसु) राजगृहेषु (प्रियम्) कमनीयम् (व्यन्ति) प्राप्नुवन्ति (वार्य्या) वर्त्तुमर्हाणि धनादीनि (पुरु) बहूनि ॥३॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । हे राजन् ! ये राज्योन्नतिप्रिया धर्म्मिष्ठा भृत्यास्त्वां प्राप्नुयुस्तान् सर्वान् सत्कृत्य सततं रक्षेः ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वीर गुणों को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजन् ! जो (विश्वे) सम्पूर्ण (सजोषसः) तुल्य प्रीति के सेवनेवाले (जनासः) प्रसिद्ध उत्तम आचरणों से युक्त (वृक्तबर्हिषः) अग्निहोत्र करनेवाले और यज्ञ करनेवाले के सदृश सम्पूर्ण विद्याओं में कुशल जन (हि) ही (सद्मसु) राजगृहों अर्थात् राजदर्बारों में (होतारम्) दाता और (प्रियम्) सुन्दर (त्वा) आपका आश्रय करते हैं, वे (पुरु) बहुत (वार्य्या) स्वीकार करने योग्य धन आदिकों को (व्यन्ति) प्राप्त होते हैं ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे राजन् ! जो राज्य की उन्नति में प्रीति करनेवाले और धर्म्मिष्ठ भृत्य आपको प्राप्त होवें, उन सबका सत्कार करके निरन्तर रक्षा करो ॥३॥
विषय
अग्रणी नायक के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
भा०-हे राजन् ! हे अग्रणी नायक ! (विश्वे ) समस्त (स-जोषसः ) समान प्रीति एवं सेवा करने वाले ( वृक्त-बर्हिषः ) वृद्धिशील राष्ट्र का संविभाग करने में कुशल ( जनासः ) पुरुष ( होतारं ) दानशील, ( प्रियं ) सर्वप्रिय ( त्वां ) तुझको (व्यन्ति ) प्राप्त होते और (सद्मसु ) राजभवनों में (पुरु) बहुत प्रकार के ( वार्या ) उत्तम धनों को भी ( व्यन्ति ) प्राप्त करते, भोगते और सुरक्षित रखते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
द्युम्नो विश्वचर्षणिर्ऋषि: ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः - १, २ निचृदनुष्टुप् । ३ विराडनुष्टुप् । ४ निचृत्पंक्तिः ॥ चतुर्ऋचं सूक्तम् ॥
विषय
सजोषस:वृक्तबर्हिषः
पदार्थ
[१] (विश्वे) = सब (हि) = ही (सजोषसः) = मिलकर प्रीतिपूर्वक कार्यों को करनेवाले, (वृक्तबर्हिषः) = [वृक्तं बर्हिः यैः] हृदयों से वासनारूप घास-फूस को उखाड़ देनेवाले (जनासः) = लोग, हे प्रभो ! (त्वा) = आप से ही वार्यावरणीय वस्तुओं की पुरु खूब व्यन्ति याचना करते हैं [व्यन्ति: याचन्ते सा०] (२) उन आपसे याचना करते हैं, जो आप (सद्मसु) = हमारे गृहों में (होतारम्) = सब वरणीय वस्तुओं के देनेवाले हैं, तथा (प्रियम्) = प्रीति व तृप्ति को प्राप्त करानेवाले हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु का प्रिय बनने के लिये आवश्यक है कि हम मिलकर प्रीतिपूर्वक कार्य करें, - तथा वासनाओं का उद्बर्हण करनेवाले हों। प्रभु होता हैं, प्रिय हैं। वे ही सब वरणीय वस्तुओं को प्राप्त कराते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा ! राज्याची उन्नती करणारे धार्मिक सेवक तुला प्राप्त झाले तर सर्वांचा सत्कार करून निरंतर रक्षण कर. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Agni, all people, all friendly and allied forces ready in arms for the call, come and make choice offers of things required, without reservation, to you, host and yajaka, dear most welcome in homes and seats of government.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of a hero are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king ! all the highly learned persons take shelter under you, who are a liberal donor at your palace to all. Loving and serving one another, famous for their good character and conduct, proficient in all sciences like the priests well-versed in the Vedas, such brave persons acquire much wealth.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O king ! you must always protect and honor those staff who love to take the state on the path of progress and are righteous.
Foot Notes
(वृक्तबर्हिषः) श्रोत्रिया ऋत्विज इव सर्वविद्यासु । कुशलाः । वृक्तबर्हिषः इति ऋत्विनाम (NG 3, 18 ) । = Proficient in all sciences, like the priests well versed in the Vedas. (जनासः ) प्रसिद्धशुभाचरणाः । जनी-प्रादुर्भावे । = Famous for their good character and conduct.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal