ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 28/ मन्त्र 4
ऋषिः - विश्वावारात्रेयी
देवता - अग्निः
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
समि॑द्धस्य॒ प्रम॑ह॒सोऽग्ने॒ वन्दे॒ तव॒ श्रिय॑म्। वृ॒ष॒भो द्यु॒म्नवाँ॑ असि॒ सम॑ध्व॒रेष्वि॑ध्यसे ॥४॥
स्वर सहित पद पाठसम्ऽइ॑द्धस्य । प्रऽम॑हसः । अ॒ग्ने॒ । वन्दे॑ । तव॑ । श्रिय॑म् । वृ॒ष॒भः । द्यु॒म्नऽवा॑न् । अ॒सि॒ । सम् । अ॒ध्व॒रेषु॑ । इ॒ध्य॒से॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
समिद्धस्य प्रमहसोऽग्ने वन्दे तव श्रियम्। वृषभो द्युम्नवाँ असि समध्वरेष्विध्यसे ॥४॥
स्वर रहित पद पाठसम्ऽइद्धस्य। प्रऽमहसः। अग्ने। वन्दे। तव। श्रियम्। वृषभः। द्युम्नऽवान्। असि। सम्। अध्वरेषु। इध्यसे ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 28; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 22; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वद्विषये राज्यप्रकारमाह ॥
अन्वयः
हे अग्ने राजन् ! यस्त्वं वृषभो द्युम्नवानस्यध्वरेषु समिध्यसे तस्य समिद्धस्य प्रमहसस्तव श्रियमहं वन्दे ॥४॥
पदार्थः
(समिद्धस्य) प्रकाशमानस्य (प्रमहसः) प्रकृष्टस्य महतः (अग्ने) राजन् (वन्दे) प्रशंसामि सत्करोमि वा (तव) (श्रियम्) धनम् (वृषभः) बलिष्ठ उत्तमो वा (द्युम्नवान्) यशस्वी (असि) (सम्) (अध्वरेषु) राज्यपालनादिषु व्यवहारेषु (इध्यसे) प्रदीप्यसे ॥४॥
भावार्थः
यो राजा अग्न्यादिगुणयुक्तः सन्न्यायं यथावत्करोति स यज्ञेषु पावक इव सर्वत्र प्रकाशितकीर्त्तिर्भवति ॥४॥
हिन्दी (2)
विषय
अब विद्वद्विषय में राज्यप्रकार को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) राजन् ! जो तुम (वृषभः) बलिष्ठ वा उत्तम और (द्युम्नवान्) यशस्वी (असि) हो और (अध्वरेषु) राज्य के पालन आदि व्यवहारों में (सम्, इध्यसे) प्रकाशित किये जाते हो उन (समिद्धस्य) प्रकाशमान और (प्रमहसः) और प्रकृष्ट बड़े (तव) आपके (श्रियम्) धन की मैं (वन्दे) प्रशंसा वा सत्कार करता हँ ॥४॥
भावार्थ
जो राजा अग्नि आदि के गुणों से युक्त हुआ अच्छे न्याय को यथावत् करता है, वह यज्ञों में अग्नि के सदृश सर्वत्र प्रकट यशवाला होता है ॥४॥
विषय
यज्ञाग्निवत् राजा की दीप्ति, तेज ।
भावार्थ
भा०-हे (अग्ने) अग्निवत् तेजस्विन् ! ( प्र-महसः ) बड़े भारी तेजस्वी ( समिद्धस्य ) खूब देदीप्यमान ( तव ) तेरी ( श्रियम् ) शोभा या सम्पदा की मैं ( वन्दे ) प्रशंसा करता हूं । तू ( वृषभः ) बलवान्, प्रजा के प्रति सुखों को मेघवत् वर्षाने हारा और ( द्युम्नवान् असि ) तेज और ऐश्वर्य का स्वामी है । तू (अध्वरेषु) यज्ञों में अग्निवत् हिंसारहित प्रजापालन, न्यायशासन आदि कार्यों में ( इध्यसे ) खूब प्रकाशित, प्रसिद्ध तेजस्वी बन ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्ववारात्रेयी ऋषिः ॥ अग्निदेवता ॥ छन्दः – १ त्रिष्टुप । २, ४, ५,६ विराट् त्रिष्टुप् । ३ निचृत्रिष्टुप् ॥ धैवतः स्वरः ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जो राजा अग्नी इत्यादींच्या गुणांप्रमाणे यथायोग्य चांगला न्याय करतो. तो यज्ञातील अग्नीप्रमाणे सर्वत्र प्रकाशित होऊन कीर्तिमान बनतो. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, mighty ruling power of the world, burning bright and great, I honour and adore your wealth and splendour. Valorous and generous, prosperous and majestic, you shine glorious in the yajnic projects of the world.
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