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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 49/ मन्त्र 3
    ऋषिः - प्रतिप्रभ आत्रेयः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒द॒त्र॒या द॑यते॒ वार्या॑णि पू॒षा भगो॒ अदि॑ति॒र्वस्त॑ उ॒स्रः। इन्द्रो॒ विष्णु॒र्वरु॑णो मि॒त्रो अ॒ग्निरहा॑नि भ॒द्रा ज॑नयन्त द॒स्माः ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒द॒त्र॒ऽया । द॒य॒ते॒ । वार्या॑णि । पू॒षा । भगः॑ । अदि॑तिः । वस्ते॑ । उ॒स्रः । इन्द्रः॑ । विष्णुः॑ । वरु॑णः । मि॒त्रः । अ॒ग्निः । अहा॑नि । भ॒द्रा । ज॒न॒य॒न्त॒ । द॒स्माः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अदत्रया दयते वार्याणि पूषा भगो अदितिर्वस्त उस्रः। इन्द्रो विष्णुर्वरुणो मित्रो अग्निरहानि भद्रा जनयन्त दस्माः ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अदत्रऽया। दयते। वार्याणि। पूषा। भगः। अदितिः। वस्ते। उस्रः। इन्द्रः। विष्णुः। वरुणः। मित्रः। अग्निः। अहानि। भद्रा। जनयन्त। दस्माः ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 49; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किं वेदितव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! विद्वानदत्रया वार्य्याणि दयते पूषा भगोऽदितिरुस्रो वस्त इन्द्रो विष्णुर्वरुणो मित्रोऽग्निर्दस्मा भद्राऽहानि जनयन्त तानि व्यर्थानि मा नयत ॥३॥

    पदार्थः

    (अदत्रया) अत्तुं योग्यान्यन्नादीनि (दयते) ददाति (वार्य्याणि) वरितुमर्हाणि (पूषा) पुष्टिकर्त्ता (भगः) भजनीयः (अदितिः) माता (वस्ते) आच्छादयति (उस्रः) किरणान्। उस्रा इति रश्मिनामसु पठितम्। (निघं०१।५) (इन्द्रः) सूर्य्यः (विष्णुः) व्यापिका विद्युत् (वरुणः उदानः (मित्रः) प्राणः (अग्निः) प्रसिद्धो वह्निः (अहानि) दिनानि (भद्रा) भद्राणि (जनयन्त) जनयन्ति (दस्मा) दुःखोपक्षयितारः ॥३॥

    भावार्थः

    यथा माता कृपयान्नपानादिदानेनाऽपत्यानि पालयति तथैव सूर्य्यादयोऽहोरात्रिभ्यां सर्वान् रक्षन्ति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या जानना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! विद्वान् (अदत्रया, वार्य्याणि) खाने और स्वीकार करने योग्य अन्नादिकों को (दयते) देता है और (पूषा) पुष्टिकर्त्ता (भगः) सेवन करने योग्य तथा (अदितिः) माता (उस्रः) किरणों का (वस्ते) आच्छादन करती है और (इन्द्रः) सूर्य्य (विष्णुः) व्यापक बिजुली (वरुणः) उदान (मित्रः) प्राण (अग्निः) प्रसिद्ध अग्नि (दस्माः) और दुःख के नाश करनेवाले (भद्रा) कल्याणकारक (अहानि) दिनों को (जनयन्त) उत्पन्न करते हैं, उनको व्यर्थ मत व्यतीत करिये ॥३॥

    भावार्थ

    जैसे माता अनुग्रह से अन्न-पान आदि के दान से सन्तानों का पालन करती है, वैसे ही सूर्य्य आदि पदार्थ दिन और रात्रि से सब की रक्षा करते हैं ॥३॥

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    विषय

    सर्वपोषक की दानशीलता का कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०- (पूषा ) सबका पोषक ( भगः ) ऐश्वर्यवान् ! ( अदितिः) अखण्ड शासनकर्त्ता पुरुष सूर्य के समान तेजस्वी होकर, ( अदत्रया वार्याणि ) खाने योग्य अन्नों को और धनों को ( दयते) दान करे, और रक्षा भी करे । वह (उस्रः) किरणों के तुल्य सहायकों को (वस्ते) अपने अधीन सुरक्षित रक्खे । (इन्द्र) ऐश्वर्यं पुरुष, ( विष्णुः ) व्यापक सामर्थ्य वाला (वरुणः) उदानवत् उत्तम वरण योग्य और (अग्निः ) अग्निवत् तेजस्वी पुरुष, ( दस्माः ) ये सब दुःखों का नाश करने हारे होकर ( भद्रा अहानि ) सुखकारी दिनों को ( जनयन्त ) उत्पन्न करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रतिप्रभ आत्रेय ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:- १, २, ४ भुरिक् त्रिष्टुप् । ३ निचृत् त्रिष्टुप् । ५ स्वराट् पंक्तिः ॥

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    विषय

    सब दिनों की भद्रता

    पदार्थ

    [१] (पूषा) = वह सबका पोषण करनेवाला, (भगः) = ऐश्वर्यशाली (अदितिः) = स्वास्थ्य को नष्ट न होने देनेवाला प्रभु (अदत्रया) = [अदनीदाति] खाने के योग्य (वार्याणि) = वरणीय वस्तुओं को दयते देता है। इन वरणीय वस्तुओं को देकर ही वे प्रभु हमारा पोषण करते हैं और हमें स्वस्थ बनाते हैं। (उस्त्रः) = प्रकाश की किरणों के पुञ्ज वे प्रभु (वस्ते) = हमें इन प्रकाश की किरणों से आच्छादित करते हैं। यह प्रकाश की किरणें ही हमारे कवच के रूप में होती हैं और हमें वासनाओं के आक्रमण से बचाती हैं । [२] (इन्द्रः) = जितेन्द्रियता, (विष्णुः) = व्यापकता, (मित्रः) = स्नेह, (वरुणः) = निर्दोषता [द्वेष का निवारण] (अग्निः) = प्रगतिशीलता व प्रकाश ये सब दिव्य भाव (दस्माः) = दर्शनीय हैं व हमारे कष्टों का उपक्षय करनेवाले हैं। ये (अहानि) = हमारे जीवन के दिनों को (भद्रा) = कल्याणकर व उत्तम (जनयन्त) = बनाते हैं। 'जितेन्द्रियता' से शरीर की शक्ति स्थिर रहती है, 'उदारता, स्नेह व निर्देषता' मन को पवित्र रखती हैं। 'प्रकाश' मस्तिष्क को दीप्त बनाता है। एवं 'शरीर, मन व बुद्धि' का स्वास्थ्य हमारे सब दिनों को शुभ बना देता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु हमें पोषण के लिये आवश्यक वरणीय धनों को देते हैं। हमें प्रकाश का वस्त्र धारण कराते हैं। जितेन्द्रियता आदि के द्वारा हमारे सब दिनों को शुभ बना देते हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जशी माता अन्न इत्यादींनी संतानाचे पालन करते तसेच सूर्य इत्यादी पदार्थ दिवस व रात्रीद्वारे सर्वांचे रक्षण करतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Aditi, eternal and infinite creative power of lord Savita’s Nature, Prakrti, wears the mantle of the morning. Pusha, nature’s nourishing power, and Bhaga, inexhaustible generosity, produce, promote and give the choicest gifts of food for consumption and creation of energy. Indra, catalytic radiation, Vishnu, all pervasive energy, Varuna, udana energy for evolution, Mitra, pranic energy of life, Agni, heat and light for life, all these creative and generative powers give rise to the days of light and bliss for us.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men know Is told further.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O man ! a highly learned man gives away most acceptable food grains and other articles to others. God is sustainer of all, adorable and mother-like and covers the rays of the sun. The sun, electricity, Udana and Prana which are destroyers of miseries. generate good ( comfortable ). days. Don't waste them?

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As a mother nourishes her children by giving them food grains and water etc. in the same manner, the sun and other objects created by God protect all the beings by day and night.

    Foot Notes

    (इन्द्र) सूर्य्य: । अथ यः स इन्द्रोऽसौ स आदित्यः । (Stph. 12, 1, 3, 15 ) = The sun. ( विष्णुः ) व्यापिका विद्युत् । विष्लु व्याप्ती (जुही ० ) । = Pervading electricity. (वरुणः) उदान: । = Udāna. (मित्रः) प्राणः । प्राणो मित्रम् (जैमिनीयोपनिषद् ब्राह्मणे 3, 1, 3, 6) प्राणो वे मित्रः ( त्तत्तिरीय संहिता 5, 3, 4, 2, 11 Stph 6, 5, 1, 8) प्राणोदानौ वै मित्रावरुणौ (Stph. 1, 8, 3, 12, 3, 6, 1, 16) तस्माग् वरुणः उदान: । = Prana (vital energy).

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