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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 75 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 75/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अमहीयुः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    आ वां॑ नरा मनो॒युजोऽश्वा॑सः प्रुषि॒तप्स॑वः। वयो॑ वहन्तु पी॒तये॑ स॒ह सु॒म्नेभि॑रश्विना॒ माध्वी॒ मम॑ श्रुतं॒ हव॑म् ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । वा॒म् । न॒रा॒ । म॒नः॒ऽयुजः॑ । अश्वा॑सः । प्रु॒षि॒तऽप्स॑वः । वयः॑ । व॒ह॒न्तु॒ । पी॒तये॑ । स॒ह । सु॒म्नेभिः॑ । अ॒श्वि॒ना॒ । माध्वी॒ इति॑ । मम॑ । श्रुत॑म् । हव॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ वां नरा मनोयुजोऽश्वासः प्रुषितप्सवः। वयो वहन्तु पीतये सह सुम्नेभिरश्विना माध्वी मम श्रुतं हवम् ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। वाम्। नरा। मनःऽयुजः। अश्वासः। प्रुषितऽप्सवः। वयः। वहन्तु। पीतये। सह। सुम्नेभिः। अश्विना। माध्वी इति। मम। श्रुतम्। हवम् ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 75; मन्त्र » 6
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्यैः शिल्पविद्या कार्य्याणि साधनीयानीत्याह ॥

    अन्वयः

    हे माध्वी नराऽश्विना ! युवां सुम्नेभिः सह पीतये ये वां मनोयुजः प्रुषितप्सवो वयोऽश्वासः सन्ति ते यानान्या वहन्तु तदर्थं मम हवं श्रुतम् ॥६॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (वाम्) युवयोः (नरा) नेतारौ (मनोयुजः) ये मन इव युञ्जन्ते ते वेगवत्तराः (अश्वासः) वेगादयो गुणाः (प्रुषितप्स्वः) प्रुषितं दग्धं प्सु इन्धनान्नादिकं यैस्ते (वयः) व्याप्तिशीलाः (वहन्तु) (पीतये) पानाय (सह) (सुम्नेभिः) सुखैः (अश्विना) शिल्पविद्याविदौ (माध्वी) (मम) (श्रुतम्) (हवम्) ॥६॥

    भावार्थः

    यदि मनुष्याः पदार्थविद्यया शिल्पसिद्धानि कार्य्याणि साध्नुवन्तु तर्हि धनवत्तरा भवन्तु ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यों को शिल्पविद्या से कार्य्य सिद्ध करने चाहियें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (माध्वी) मधुर स्वभावयुक्त (नरा) नायक (अश्विना) शिल्पविद्या के जाननेवालो ! आप लोगो आप दोनों (सुम्नेभिः) सुखों के (सह) साथ (पीतये) पान के लिये जो (वाम्) आप दोनों के (मनोयुजः) मन के सदृश युक्त होनेवाले अत्यन्त वेगवान् (प्रुषितप्सवः) जलाया ईंधन आदि जिन्होंने ऐसे (वयः) व्याप्तिशील (अश्वासः) वेग आदि गुण हैं वे वाहनों को (आ) सब प्रकार से (वहन्तु) पहुँचावें उनके लिये (मम) मेरे (हवम्) आह्वान को (श्रुतम्) सुनिये ॥६॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य पदार्थविद्या से शिल्पसिद्ध कार्य्यों को सिद्ध करें तो अधिक धनी होवें ॥६॥

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    विषय

    दो अश्वी । विद्वान् जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०-हे ( नरा ) स्त्री पुरुषो ! ( अश्वासः प्रुषित-प्सवः वयः सुम्नेभिः वां वहन्ति) जिस प्रकार अन्नादि खाने वाले, नाना रूप एवं इन्धन, तैल, जल, कोयला आदि को दग्ध करने वाले, वेगवान् अश्व, रथ यन्त्रादि वेगवान् होकर सुखों सहित तुम दोनों को दूर देश तक पहुंचा देते हैं उसी प्रकार ( मनः-युजः ) मन रूप रासों से जुते (अश्वासः) ये इन्द्रिय, प्राण गण (वय: ) स्वयं कान्ति वा दीप्ति से युक्त होकर ( वां ) आप दोनों को ( वीतये ) सुख भोगने के निमित्त ( सुम्नेभिः ) सुखों सहित ( वहन्तु ) धारण करें अथवा, ( वां वयः पीतये सुम्नेभिः वहन्तु ) आप दोनों के जीवन को सुखों सहित उपभोग करने के लिये धारण करें । ( माध्वी ) अन्न, मधु आदिवत् ज्ञान संग्रही आप दोनों ( मम हवं श्रुतम् ) मेरा उपदेश श्रवण करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अवस्युरात्रेय ऋषि: ।। अश्विनौ देवते ॥ छन्द: – १, ३ पंक्ति: । २, ४, ६, ७, ८ निचृत्पंक्तिः । ५ स्वराट् पंक्तिः । ९ विराट् पंक्तिः ।। नवर्चं सुक्तम् ।।

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    विषय

    'संयत-दीप्त व शीघ्रगतिवाले' इन्द्रियाश्व

    पदार्थ

    [१] हे (नरा) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले (अश्विना) = प्राणापानो ! (वाम्) = आपको (अश्वासः) = ये इन्द्रियाश्व (पीतये) = सोम के पान के लिये (आवहन्तु) = प्राप्त करायें। जो इन्द्रियाश्व (मनोयुजः) = मन रूप लगाम से युक्त हैं, (प्रुषितप्सवः) = [प्रुषित = burning] दीप्तरूपवाले हैं तथा (वयः) = शीघ्र गतिवाले हैं। वस्तुतः प्राणसाधना ही इन इन्द्रियाश्वों को ऐसा बनाती है। प्राणसाधना से ये इन्द्रियाश्व 'संयत दीप्त व शीघ्र गतिवाले' बनते हैं। ऐसा होने पर ही शरीर में सोम का रक्षण होता है। [२] इस प्रकार हे प्राणापानो! आप सुम्नेभिः सह प्रभु-स्तवनों के साथ (माध्वी) = मेरे जीवन को मधुर बनानेवाले हो। आप (मम हवं श्रुतम्) = मेरी पुकार को सुनो। मैं प्राणसाधना करता हुआ प्रभु का स्तोता व मधुर जीवनवाला बनूँ ।

    भावार्थ

    भावार्थ – प्राणसाधना से इन्द्रियाँ 'संयत, दीप्त व शीघ्र गतिवाली' बनती हैं। प्राणसाधक प्रभु का स्तोता व मधुर जीवनवाला बनता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जर माणसांनी पदार्थविद्येने शिल्प पूर्ण करणारे कार्य केले तर ते अधिक श्रीमंत होतील. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Ashvins, leaders and pioneers of adventurous men, may your horses, flying birds, controlled by thought, consuming burnt fuel, bring you hither with gifts of peace and well being for a drink of the soma of success and splendour. O creators and harbingers of honey sweets, listen to my prayer.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Men should accomplish works with application of technology is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O leading men of sweet temperament ! let your pervading speed and other qualities which are very rapid like the mind and which can burn fuel and other things, carry your cars with ease for (in order to enable. Ed.) you to drink Soma (juice of the invigorating herbs). For that hear (listen to. Ed.) my call.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    If men accomplish their technological works with physics and other sciences, they can become wealthy.

    Foot Notes

    (अश्वासः) वेगादयो गुणा: । अशूङ्-व्याप्तौ ( स्वा० ) | = Speed and other properties. (प्र.षितप्सवः ) प्रुषित दग्धं सु इन्धनान्नादिकं यैस्ते । प्रुष् दाहे (भ्वा० ) प्सा - भक्षणे (अदा० ) | = Which can burn fuel and food grains etc. (वयः ) व्याप्तिशीलाः । वी- व्याप्ति प्रजनकान्त्यसन-खादनेषु (अदा०) | = Pervading.

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