ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 33/ मन्त्र 4
स त्वं न॑ इ॒न्द्राक॑वाभिरू॒ती सखा॑ वि॒श्वायु॑रवि॒ता वृ॒धे भूः॑। स्व॑र्षाता॒ यद्ध्वया॑मसि त्वा॒ युध्य॑न्तो ने॒मधि॑ता पृ॒त्सु शू॑र ॥४॥
स्वर सहित पद पाठसः । त्वम् । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । अक॑वाभिः । ऊ॒ती । सखा॑ । वि॒श्वऽआ॑युः । अ॒वि॒ता । वृ॒धे । भूः॒ । स्वः॑ऽसाता । यत् । ह्वया॑मसि । त्वा॒ । युध्य॑न्तः । ने॒मऽधि॑ता । पृ॒त्ऽसु । शू॒र॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स त्वं न इन्द्राकवाभिरूती सखा विश्वायुरविता वृधे भूः। स्वर्षाता यद्ध्वयामसि त्वा युध्यन्तो नेमधिता पृत्सु शूर ॥४॥
स्वर रहित पद पाठसः। त्वम्। नः। इन्द्र। अकवाभिः। ऊती। सखा। विश्वऽआयुः। अविता। वृधे। भूः। स्वःऽसाता। यत्। ह्वयामसि। त्वा। युध्यन्तः। नेमऽधिता। पृत्ऽसु। शूर ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 33; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृशः स्यादित्याह ॥
अन्वयः
हे शूरेन्द्र ! यद्यस्त्वमकवाभिरूती नः सखा विश्वायुरविता वृधे भूः स त्वं स्वर्षाता सन् विजेता भूस्तं त्वा नेमधिता पृत्सु युध्यन्तो वयं ह्वयामसि ॥४॥
पदार्थः
(सः) राजा (त्वम्) (नः) अस्माकम् (इन्द्र) सुखप्रद (अकवाभिः) अनिन्दितृभिः (ऊती) रक्षाभिः (सखा) सुहृद् (विश्वायुः) सर्वायुः (अविता) रक्षकः (वृधे) वृद्धये (भूः) भवेः (स्वर्षाता) सुखस्य दाता (यत्) यः (ह्वयामसि) आह्वयेम (त्वा) (युध्यन्तः) (नेमधिता) धार्मिकाऽधार्मिकयोर्मध्ये धार्मिकाणां ग्रहीतारः (पृत्सु) सङ्ग्रामेषु सेनासु वा (शूर) शत्रूणां हिंसक ॥४॥
भावार्थः
हे राजन् ! यथा सखा सख्ये प्रियमाचरति तथैव प्रजायै हितमाचर यत्र यत्र प्रजास्त्वामाह्वयेयुस्तत्र तत्रोपस्थितो भव शत्रुविजये च प्रयतस्व ॥४॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर वह राजा कैसा हो, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (शूर) शूरवीर शत्रुजनों के नाश करने और (इन्द्र) सुख के देनेवाले ! (यत्) जो (त्वम्) आप (अकवाभिः) नहीं निन्दा करनेवालों और (ऊती) रक्षाओं से (नः) हमारे (सखा) मित्र (विश्वायुः) सम्पूर्ण अवस्था से युक्त (अविता) रक्षक (वृधे) वृद्धि के लिये (भूः) होवें (सः) वह आप (स्वर्षाता) सुख के देनेवाले हुए जीतनेवाले हूजिये उन (त्वा) आपको (नेमधिता) धार्मिक और अधार्मिक के मध्य में धार्मिकों के ग्रहण करनेवाले (पृत्सु) सङ्ग्रामों वा सेनाओं से (युध्यन्तः) युद्ध करते हुए हम लोग (ह्वयामसि) पुकारें ॥४॥
भावार्थ
हे राजन् ! जैसे मित्र मित्रके लिये प्रिय आचरण करता है, वैसे ही प्रजा के लिये हित धारण करिये और जहाँ-जहाँ प्रजायें पुकारें, वहाँ-वहाँ उपस्थित हूजिये और शत्रुओं के जीतने में प्रयत्न करिये ॥४॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा ! जसा मित्र आपल्या मित्राशी प्रेमाने वागतो तसे तू प्रजेच्या हिताचे आचरण कर. जेव्हा जेव्हा व जेथे जेथे प्रजा तुला हाक मारील तेव्हा तेव्हा व तेथे तेथे तू ताबडतोब जा व शत्रूंना जिंकण्याचा प्रयत्न कर. ॥ ४ ॥
English (1)
Meaning
Indra, lord ruler of the world, life of life and giver of showers of bliss, be our friend and protector with all your modes of defence and protection for our advancement without reserve or restriction. Fighting our battles of life, O brave and generous hero, defender of good against evil, we invoke and call upon you to come and help us with love and grace.
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