ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 36/ मन्त्र 4
स रा॒यस्खामुप॑ सृजा गृणा॒नः पु॑रुश्च॒न्द्रस्य॒ त्वमि॑न्द्र॒ वस्वः॑। पति॑र्बभू॒थास॑मो॒ जना॑ना॒मेको॒ विश्व॑स्य॒ भुव॑नस्य॒ राजा॑ ॥४॥
स्वर सहित पद पाठसः । रा॒यः । खाम् । उप॑ । सृ॒ज॒ । गृ॒णा॒नः । पु॒रु॒ऽच॒न्द्रस्य॑ । त्वम् । इ॒न्द्र॒ । वस्वः॑ । पतिः॑ । ब॒भू॒थ॒ । अस॑मः । जना॑नाम् । एकः॑ । विश्व॑स्य । भुव॑नस्य । राजा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स रायस्खामुप सृजा गृणानः पुरुश्चन्द्रस्य त्वमिन्द्र वस्वः। पतिर्बभूथासमो जनानामेको विश्वस्य भुवनस्य राजा ॥४॥
स्वर रहित पद पाठसः। रायः। खाम्। उप। सृज। गृणानः। पुरुऽचन्द्रस्य। त्वम्। इन्द्र। वस्वः। पतिः। बभूथ। असमः। जनानाम्। एकः। विश्वस्य। भुवनस्य। राजा ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 36; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुना राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र राजन् ! यथा विश्वस्य भुवनस्येश्वरोऽसमः स एको राजास्ति तथा त्वं जनानां पुरुश्चन्द्रस्य रायो वस्वः पतिर्बभूथ गृणानस्त्वं खामिव धनस्य कोशमुप सृजा ॥४॥
पदार्थः
(सः) (रायः) श्रियः (खाम्) । खेति नदीनाम। (निघं०१.१३) (उप) (सृजा) निर्मिमीहि। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (गृणानः) स्तुवन् (पुरुश्चन्द्रस्य) बहु चन्द्रं सुवर्णं यस्मिंस्तस्य (त्वम्) (इन्द्र) धनेश (वस्वः) धनस्य (पतिः) स्वामी (बभूथ) भव (असमः) नान्यः समः सदृशो यस्य (जनानाम्) धार्मिकाणां मनुष्याणाम् (एकः) असहायः (विश्वस्य) सम्पूर्णस्य (भुवनस्य) संसारस्य (राजा) प्रकाशमानः ॥४॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजानो ! यथेश्वरः पक्षपातं विहाय सर्वस्य न्यायेन पालकोऽस्ति तथैव भूत्वा यूयं धनस्वामिनो भवत ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर राजा कैसा होवे, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) धन के स्वामिन् राजन् ! जैसे (विश्वस्य) सम्पूर्ण (भुवनस्य) संसार का स्वामी (असमः) जिसके समान और नहीं (सः) वह (एकः) सहायरहित (राजा) प्रकाशमान राजा है, वैसे आप (जनानाम्) धार्मिक मनुष्यों और (पुरुश्चन्द्रस्य) बहुत सुवर्ण जिसमें उसके (रायः) लक्ष्मी के (वस्वः) धन के (पतिः) स्वामी (बभूथ) हूजिये और (गृणानः) स्तुति करते हुए (त्वम्) आप (खाम्) नदी के समान धन के कोश को (उपसृजा) बनाइये ॥४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजा लोगो ! जैसे ईश्वर पक्षपात का त्याग करके सब का न्याय से पालन करनेवाला है, वैसे ही होकर आप लोग धन के स्वामी हूजिये ॥४॥
विषय
उसको दान का उपदेश ।
भावार्थ
( सः ) वह हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् प्रभो ! ( त्वम् ) तू ( गृणानः ) हमें उपदेश करता हुआ और हम से स्तुति प्राप्त करता हुआ, ( पुरु-चन्द्रस्य ) बहुतों को सुखी करने वाले ( वस्वः ) धनों और (रायः) देने लेने योग्य ऐश्वर्य की ( खाम् ) खुदी नहर के समान ( उप सृज ) बनाकर बहा दे । तू ( जनानां ) मनुष्यों के बीच में ( असमः ) अनुपम, ( एक: ) अद्वितीय ( पतिः ) पालक और (विश्वस्य भुवनस्य राजा) समस्त संसार का राजा ( बभूव ) हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नर ऋषिः । इन्द्रो देवता ।। छन्दः – १ निचृत् त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ५ भुरिक् पंक्तिः । स्वराट् पंक्ति: ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ।।
विषय
'यज्ञों में विनियुक्त होनेवाले वसु के दाता' प्रभु
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (सः त्वम्) = वे आप (गृणानः) = स्तुति किये जाते हुए (रायः खाम्) = धन की नदी को नदीधारा के समान प्रवाहित होनेवाले धन को (उपसृजा) = हमारे साथ संयुक्त करिये। उस धन की धारा को जो (पुरुश्चन्द्रस्य) = बहुतों का आह्लादक है, अर्थात् केवल अपने लिये विनियुक्त न होकर बहुतों के लिये प्रयुक्त होता है तथा (वस्वः) = उत्तम निवास का कारण बनता है। [२] हे प्रभो! आप (जनानाम्) = सब लोगों के (असमः पतिः) = अनुपम रक्षक बभूथ हैं। (एक:) = आप अद्वितीय हैं। (विश्वस्य भुवनस्य राजा) = सम्पूर्ण संसार के शासक हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु ही सम्पूर्ण संसार के शासक हैं। वे प्रभु हमें बहुतों के आह्लादक तथा निवास को उत्तम बनानेवाले धन को देते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजानो ! जसा ईश्वर भेदभाव सोडून सर्वांचे न्यायाने पालन करतो, तसेच वागून तुम्ही धनाचे स्वामी व्हा. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, sole ruler of the whole world, be the one unequalled master and protector of the people and of the golden wealth of the land, and, adored and glorified by them, release the streams of wealth, honour and excellence of the world for us.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should a king be-is further told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king! as God is the only unequalled sovereign of the whole world, so you should be the lord of wealth of the all righteous men, consisting of much gold. Glorifying God, you create like a river the treasure of wealth.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men! as God is the protector and nourisher of all with justice and without any partiality, so following Him you should be masters of wealth.
Foot Notes
(खाम्) नदीम् । खेति नदीनाम (NG 1, 13 )। =Like the river. (गुणानः) स्तुवन् । गु-शब्दे (क्रया०) अत्र स्तुति शब्दार्थः । = Praising or glorifying God.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal