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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 60/ मन्त्र 15
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    इन्द्रा॑ग्नी शृणु॒तं हवं॒ यज॑मानस्य सुन्व॒तः। वी॒तं ह॒व्यान्या ग॑तं॒ पिब॑तं सो॒म्यं मधु॑ ॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । शृ॒णु॒तम् । हव॑म् । यज॑मानस्य । सु॒न्व॒तः । वी॒तम् । ह॒व्यानि॑ । आ । ग॒त॒म् । पिब॑तम् । सो॒म्यम् । मधु॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्राग्नी शृणुतं हवं यजमानस्य सुन्वतः। वीतं हव्यान्या गतं पिबतं सोम्यं मधु ॥१५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राग्नी इति। शृणुतम्। हवम्। यजमानस्य। सुन्वतः। वीतम्। हव्यानि। आ। गतम्। पिबतम्। सोम्यम्। मधु ॥१५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 60; मन्त्र » 15
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 29; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तौ किं कुर्य्यातामित्याह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्राग्नी ! युवां सुन्वतो यजमानस्य हवं शृणुतं हव्यानि वीतं तत्सान्निध्यमा गतं सोम्यं मधु पिबतम् ॥१५॥

    पदार्थः

    (इन्द्राग्नी) वायुविद्युताविव वर्त्तमानावध्यापकोपदेशकौ (शृणुतम्) (हवम्) ममाऽधीतविषयम् (यजमानस्य) शुभगुणादातुः (सुन्वतः) पदार्थविद्यया बहून् पदार्थान्निष्पादयतः (वीतम्) प्राप्नुतं व्याप्नुतं वा (हव्यानि) (आ) (गतम्) आगच्छतम् (पिबतम्) (सोम्यम्) सोममर्हम् (मधु) मधुरादियुक्तं रसम् ॥१५॥

    भावार्थः

    सर्वैर्मनुष्यैरामन्त्रणेन विदुषामाह्वानं कृत्वैतान् सत्कृत्यैतेभ्यः स्वविद्यां परीक्षयित्वाऽधिका विद्या ग्रहीतव्येति ॥१५॥ अत्रेन्द्राऽग्निगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति षष्टितमं सूक्तमेकोनत्रिंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वे दोनों क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली के समान वर्त्तमान अध्यापक और उपदेशको ! तुम दोनों (सुन्वतः) पदार्थविद्या से बहुत पदार्थों को उत्पन्न करते हुए (यजमानस्य) शुभ गुण देनेवाले मेरे (हवम्) पढ़े विषय को (शृणुतम्) सुनो और (हव्यानि) पदार्थों को (वीतम्) प्राप्त होओ वा व्याप्त होओ उनके समीप (आ, गतम्) आओ और (सोम्यम्) शान्ति शीतलता के जो योग्य है उस (मधु) मधुरादि युक्त रसको (पिबतम्) पिओ ॥१५॥

    भावार्थ

    सब मनुष्यों को चाहिये कि आमन्त्रण से विद्वानों को बुलाकर इनका सत्कार कर इनसे अपनी विद्या की परीक्षा कराय अधिक विद्या ग्रहण करें ॥१५॥ इस सूक्त में इन्द्र और अग्नि के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह साठवाँ सूक्त और उनतीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

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    भावार्थ

    हे ( इन्द्राग्नी ) ऐश्वर्यवन् ! हे तेजस्विन् ! आप दोनों ( सुन्वतः यजमानस्य ) नाना पदार्थों को उत्पन्न करने वाले दानशील पुरुष के ( हवं ) वचन को ( शृणुतं ) श्रवण करो । ( हव्यानि वीतं ) उत्तम अन्नों का भोजन करो। ( सोम्यं मधु ) बलदायक, ओषधिरस से युक्त मधुर पदार्थ का (पिबतं ) पान करो । इत्येकोनविंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः - १, ३ निचृत्त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ६, ७ विराड् गायत्री । ५, ९ , ११ निचृद्गायत्री । १०,१२ गायत्री । १३ स्वराट् पंक्ति: १४ निचृदनुष्टुप् । १५ विराडनुष्टुप् ।। पञ्चदशर्चं सूक्तम् ।।

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    विषय

    'सुन्वन् यजमान'

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्राग्नी) = बल व प्रकाश के देवो! (सुन्वतः) = सोम का संपादन करनेवाले, अपने जीवन में सोमशक्ति को उत्पन्न करनेवाले, (यजमानस्य) = यज्ञशील पुरुष को (हवम् =) पुकार को (शृणुतम्) = सुनो । [२] इस सुन्वन् यजमान के हव्यानि हव्य पदार्थों की (वीतम्) = कामना करो। यह हव्य पदार्थों का ही सेवन करनेवाला बने । (आगतम्) = आप आवो, और (सोम्यं मधु) = सोम-सम्बन्धी मधु का (पिबतम्) = पान करो । इन्द्र और अग्नि के आराधन से सोम का शरीर में संरक्षण हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम यज्ञशील व सोम शक्ति का सम्पादन करनेवाले बनें। हव्य पदार्थों का सेवन करें। सोम का शरीर में संरक्षण करें। अगले सूक्त में 'भरद्वाज बार्हस्पत्य' सरस्वती का आराधन करता है-

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सर्व माणसांनी विद्वानांना आमंत्रण देऊन बोलवावे व त्यांचा सत्कार करून त्यांच्याकडून आपल्या विद्येची परीक्षा करून घ्यावी व अधिक विद्या ग्रहण करावी. ॥ १५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra and Agni, scholars of fire and electric energy, listen to the invitation and adoration of the yajamana and institutor of the yajnic programme of creative development. Accept the invitation and offers of homage, come, and taste the honey sweets of the pleasure of somaic achievement distilled from natural energy.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should they (Indra and Agni) do--is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    ○ teachers and preachers! you who are benevolent like the air and electricity, you are the giver of good virtues and preparer of many things with the help of the scientific knowledge listen to what, he has read. Accept things offered by him with love, come to him and drink the sweet soma-juice extracted from many invigorating herbs, by him.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    All men should invite the enlightened persons, should honor them and after giving their test should acquire more knowledge from them.

    Foot Notes

    (इन्द्राग्नी) वायुविद्युताविव वर्त्तंमानावध्यापकोपदेशको । यो वे वायुः स इन्द्रो य इन्द्रः स वायुः (S. Br. 4, 1, 3, 19 )। = The teachers and preachers who are benevolent like the air and electricity. (यजमानस्य) शुभगुणदातुः । यज-देव पूजा सङ्गतिकरण धानेषु (भ्वा.) अत्र दानार्थमादाय व्याख्या । = Of the giver of good virtues. (सुन्वतः) पदार्थ विद्यया बहून् पदार्थनिप्पादयतः |= Preparing many things with the scientific knowledge.

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