ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 71/ मन्त्र 3
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - सविता
छन्दः - निचृज्जगती
स्वरः - निषादः
अद॑ब्धेभिः सवितः पा॒युभि॒ष्ट्वं शि॒वेभि॑र॒द्य परि॑ पाहि नो॒ गय॑म्। हिर॑ण्यजिह्वः सुवि॒ताय॒ नव्य॑से॒ रक्षा॒ माकि॑र्नो अ॒घशं॑स ईशत ॥३॥
स्वर सहित पद पाठअद॑ब्धेभिः । स॒वि॒त॒रिति॑ । प॒युऽभिः॑ । त्वम् । शि॒वेभिः॑ । अ॒द्य । परि॑ । पा॒हि॒ । नः॒ । गय॑म् । हिर॑ण्यऽजिह्वः । सु॒वि॒ताय॑ । नव्य॑से । रक्ष॑ । माकिः॑ । नः॒ । अ॒घऽशं॑सः । ई॒श॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अदब्धेभिः सवितः पायुभिष्ट्वं शिवेभिरद्य परि पाहि नो गयम्। हिरण्यजिह्वः सुविताय नव्यसे रक्षा माकिर्नो अघशंस ईशत ॥३॥
स्वर रहित पद पाठअदब्धेभिः। सवितरिति। पायुऽभिः। त्वम्। शिवेभिः। अद्य। परि। पाहि। नः। गयम्। हिरण्यऽजिह्वः। सुविताय। नव्यसे। रक्ष। माकिः। नः। अघऽशंसः। ईशत ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 71; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स राजा कीदृशः केन किं कुर्यादित्याह ॥
अन्वयः
हे सवितस्त्वमद्याऽदब्धेभिः शिवेभिः पायुभिर्नो गयं परि पाहि हिरण्यजिह्वः सन्नव्यसे सुविताय नो गयं रक्षा यथाऽघशंसो नो माकिरीशत तथा विधेहि ॥३॥
पदार्थः
(अदब्धेभिः) अहिंसिकैरहिंसितैर्वा (सवितः) सत्कर्मसु प्रेरक राजन् (पायुभिः) रक्षणैः (त्वम्) (शिवेभिः) सुखकारकैर्मङ्गलविधायकैः (अद्य) इदानीम् (परि) सर्वतः (पाहि) रक्ष (नः) अस्माकम् (गयम्) गमयपत्यं धनं गृहं वा। गय इत्यपत्यनाम। (निघं०२.२) धननाम (निघं०२.१०) गृहनाम च (निघं०३.४)। (हिरण्यजिह्वः) हिरण्यमिव सत्येन सुप्रकाशिता वाणी यस्य सः (सुविताय) ऐश्वर्याय (नव्यसे) अतिशयेन नवीनाय (रक्षा) (माकिः) निषेधे (नः) अस्माकम् (अघशंसः) स्तेनः (ईशत) विघ्नानां ईश्वरो भवेत् ॥३॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो राजा प्रयत्नेन प्रजाः संरक्ष्य दस्य्वादीन् हन्यात् स एव नवीनं नवीनमैश्वर्यं जनयित्वा सततं प्रजाप्रियो धार्मिकः स्यात् ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह राजा कैसा और किससे क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (सवितः) अच्छे कामों में प्रेरणा देनेवाले राजन् ! (त्वम्) आप (अद्य) अब (अदब्धेभिः) न नष्ट करने वा न नष्ट होने और (शिवेभिः) सुख करने वा मङ्गल विधान करनेवाले (पायुभिः) रक्षा के निमित्तों से (नः) हमारे (गयम्) सन्तान, धन और घर की (परि, पाहि) सब ओर से रक्षा करो तथा (हिरण्यजिह्वः) सुवर्ण के समान सत्य से जिसकी वाणी प्रकाशित है ऐसे होते हुए (नव्यसे) अतीव नवीन (सुविताय) ऐश्वर्य्य के लिये हमारे पुत्रादिकों की (रक्षा) रक्षा करो जैसे (अघशंसः) चोर (नः) हम लोगों के प्रति (माकिः) न (ईशत) विघ्नों के करने को समर्थ हो, वैसा करो ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राजा प्रयत्न के साथ प्रजाओं की अच्छे प्रकार रक्षा कर डाकुओं को मारे, वही नवीन-नवीन ऐश्वर्य्य को उत्पन्न कर निरन्तर प्रजाजनों का प्यारा और धार्मिक हो ॥३॥
विषय
सविता । सूर्यवत् उत्तम निपुण राजा के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( सवितः ) सर्वोत्पादक, सत्कर्मों और शुभमार्गों में चलाने हारे प्रभो ! स्वामिन् ! ( अदब्धेभिः ) कभी नाश न होने वाले रक्षासाधनों से और ( शिवेभिः ) कल्याणकारी, सुखजनक उपायों से ( अद्य ) आज ( नः गयम् ) हमारे गृह और प्राणमय जीवन को ( त्वं ) तू ( परि पाहि ) सब प्रकार से पालन कर । तू ( हिरण्य-जिह्वः ) सर्व हितकारी और सब को भली लगने वाली ओर सुवर्णवत् कान्तियुक्त, सत्यप्रकाशक वाणी को बोलने वाला ( नव्यसे ) नये से नये सर्वश्रेष्ठ, अति रमणीय, ( सुविताय) सुखपूर्वक गमनयोग्य-सदाचार पालन तथा ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये ( नः रक्ष ) हमारी रक्षा कर और ( नः ) हम पर ( अध-शंसः ) पापी, दुष्ट, पापमार्ग का उपदेश करने वाला पुरुष ( माकि: ईशत ) कभी प्रभुता न करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ सविता देवता ॥ छन्दः – १ जगती । २, ३ निचृज्जगती । ४ त्रिष्टुप् । ५, ६ निचृत्त्रिष्टुप् । षडृचं सूक्तम् ।।
विषय
प्रभु का 'अदब्ध शिव' रक्षण
पदार्थ
[१] हे (सवितः) = सर्वोत्पादक सर्वप्रेरक प्रभो ! [प्रकृति के दृष्टिकोण से सर्वोत्पादक, जीव के दृष्टिकोण से सर्वप्रेरक] (त्वम्) = आप (अदब्धेभिः) = अहिंसित (शिवेभिः) = कल्याण करनेवाले (पायुभिः) = रक्षणों से (अद्य) = आज (नः) = हमारे (गयम्) = शरीररूप गृह को (परिपाहि सर्वतः) = सुरक्षित करिये । [२](हिरण्यजिह्वः) = हितरमणीय जिह्वावाले आप (नव्यसे) = नवतर, अत्यन्त स्तुत्य (सुविताय =) सुवित के लिये, दुरित को दूर करने के लिये (रक्षा) = हमारा रक्षण करिये। (अघशंस:) = बुराई का शंसन करनेवाला (नः) = हमारा (माकिः) = मत (ईशत) = ईश बने। हम अघशंस के वशीभूत न हो जाएँ ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु के अहिंसित शिव रक्षण हमें प्राप्त हों । प्रभु की हितरमणीय प्रेरणा हमें प्राप्त हो। हम बुराइयों का शंसन करनेवालों के दबाव में न आ जाएँ ।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो राजा प्रयत्नपूर्वक प्रजेचे चांगल्याप्रकारे रक्षण करून दुष्टांना मारतो तोच नवनवीन ऐश्वर्य उत्पन्न करून सतत प्रजेचा प्रिय व धार्मिक होतो. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Savita, ruling lord of inspiration, protect and promote our home, our people and our wealth and honour by benevolent and inviolable modes of defence, peace and development. O lord of golden word and voice, bless us with the latest forms of protection, progress and well being. Let no thief or sinner dare rule or boss over us.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should the king be and what should he do with whom-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king! you who are impeller of good deeds, with your protections, which are inviolable, auspicious and bestowers of happiness, protect our habitation, progeny or wealth today. O ruler ! whose tongue (speech) is well illumined with truth like gold, protect us for the fresh prosperity. Let no thief or dishonest person have us in his power. So you should arrange.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
That (king alone can become popular, who protects his subjects with great labor and destroys all robbers and thieves and other wicked persons. He alone can become popular among his people by creating new wealth or prosperity.
Foot Notes
(अदग्धेभिः) अहिन्सकैरहिसितेर्वा। दम्भोति वधकर्मा (NG 2, 19 ) = Inviolable or non-violent. (गयम्) गयमपत्यं धनं ग्रहं वा । गय इति पत्यनाम (NG 2, 2) गय इति धननाम (NG 2, 10) गय इति ग्रहनाम्- (NG 3, 4) = Wealth, 2 progeny, 3. Home or habitation. (अधशंस) स्तेनः । अभशंसः इति स्तेननाम (NG 3, 24) = Thief or dishonest person.
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