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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 101 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 101/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः कुमारो वाग्नेयः देवता - पर्जन्यः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यो वर्ध॑न॒ ओष॑धीनां॒ यो अ॒पां यो विश्व॑स्य॒ जग॑तो दे॒व ईशे॑ । स त्रि॒धातु॑ शर॒णं शर्म॑ यंसत्त्रि॒वर्तु॒ ज्योति॑: स्वभि॒ष्ट्य१॒॑स्मे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । वर्ध॑नः । ओष॑धीनाम् । यः । अ॒पाम् । यः । विश्व॑स्य । जग॑तः । दे॒वः । ईशे॑ । सः । त्रि॒ऽधातु॑ । श॒र॒णम् । शर्म॑ । यं॒स॒त् । त्रि॒ऽवर्तु॑ । ज्योतिः॑ । सु॒ऽअ॒भि॒ष्टि । अ॒स्मे इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो वर्धन ओषधीनां यो अपां यो विश्वस्य जगतो देव ईशे । स त्रिधातु शरणं शर्म यंसत्त्रिवर्तु ज्योति: स्वभिष्ट्य१स्मे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः । वर्धनः । ओषधीनाम् । यः । अपाम् । यः । विश्वस्य । जगतः । देवः । ईशे । सः । त्रिऽधातु । शरणम् । शर्म । यंसत् । त्रिऽवर्तु । ज्योतिः । सुऽअभिष्टि । अस्मे इति ॥ ७.१०१.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 101; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यः) यः परमात्मा (ओषधीनाम्) सकला ओषधीः (यः) यश्च (अपाम्) जलानि (वर्धनः) वर्धयति (यः, देवः) यश्च दिव्यात्मा (विश्वस्य, जगतः, ईशे) निखिले जगति दिव्यैश्वर्येण व्याप्नोति (सः) स ईश्वरः (त्रिधातु शरणम्) विचित्रागारेषु (शर्म) सुखं (यंसत्) दत्तात्, तथा च (त्रिवर्तु) त्रिविधेष्वपि ऋतुभिन्नकालेषु (अस्मे) अस्मभ्यं (ज्योतिः, सु, अभिष्टि) स्वैश्वर्येण सह मनोरथं ददातु ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यः) जो ईश्वर (ओषधीनाम्) सम्पूर्ण ओषधियों को (यः) और जो (अपाम्) जलों को (वर्धनः) बढ़ाता है (यः, देवः) और जो दिव्य ईश्वर (विश्वस्य, जगतः, ईशे) सकल जगत् को ऐश्वर्य प्राप्त करानेवाला है, (सः) सो ईश्वर (त्रिधातु, शरणम्) विचित्र गृहों में (शर्म) सुख को (अस्मे) हमको (यंसत्) दे। और (त्रिवर्तु) तीनों ऋतुओं में (स्वभिष्टि, ज्योतिः) सुन्दर अभीष्ट ऐश्वर्य को दे ॥२॥

    भावार्थ

    जो परमात्मा उक्त वर्षादि ऋतुओं में ओषधियों को बढ़ाता है और जो सब ओषधियों में रसों का आविष्कार करनेवाला है, वह परमात्मा इस त्रिधातु शरीर में सुख दे और सब प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त कराये ॥२॥

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    विषय

    मेघ सूर्यवत् जगत् के स्वामी से वेदमय ज्ञान और सुखद देह की प्रार्थना । त्रिवर्त्तु ज्योति और त्रिधातु शरण का रहस्य ।

    भावार्थ

    ( ओषधीनां वर्धनः ) ओषधियों को बढ़ाने वाला, ( अपां वर्धनः ) जलों का बढ़ाने वाला, मेघवत् सूर्यवत् ( देव: ) प्रकाश, जल का देने वाला ( विश्वस्य जगतः ईशे ) सब जगत् का स्वामिवत् है । वह ( त्रिवर्तु ज्योतिः यंसत् ) तीनों ऋतुओं में सुखप्रद प्रकाश देता है उसी प्रकार ( यः ) जो ( देवः ) सर्वसुखदाता प्रभु ( ओषधीनां वर्धनः ) उष्णता को धारण करने वाले जीवों को बढ़ाने वाला, ( यः ) जो ( अपां वर्धनः ) जलस्थ, जलचारी जीवों को बढ़ाने वाला और ( यः ) जो ( विश्वस्य जगतः ) समस्त जगत् का ( ईशे ) स्वामी है । ( सः ) वह प्रभु परमेश्वर ( अस्मे ) हमें ( सु-अभिष्टिः ) सुख से चाहने योग्य ( त्रिवर्तु ज्योतिः ) विविध ज्ञान देने वाला वेदमय प्रकाश और ( त्रि-धातु ) तीन धातु सुवर्णादि से बने ( शरणं ) गृह और तीन धातु वात, पित्त कफ से बने शरणयोग्य देह और सुख तथा ( त्रिवर्तु ) तीनों कालों में वर्त्तने वाला, नित्य ( यंसत् ) प्रदान करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठः कुमारो वाग्नेय ऋषिः॥ पर्जन्यो देवता॥ छन्दः—१, ६ त्रिष्टुप्। २, ४, ५ विराट् त्रिष्टुप्। ३ निचृत् त्रिष्टुप्॥

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    विषय

    तीनों ऋतुओं में सुख का वर्धक

    पदार्थ

    पदार्थ- (ओषधीनां वर्धनः) = ओषधियों को बढ़ानेवाला, (अपां वर्धनः) = जलों को बढ़ानेवाला, मेघवत् सूर्यवत् (देव:) = प्रकाश, जल का दाता (विश्वस्य जगतः ईशे) = सब जगत् का स्वामी है। वह (त्रिवर्तु ज्योतिः यंसत्) = तीनों ऋतुओं में सुखप्रद प्रकाश देता है वैसे ही (यः) = जो (देवः) = प्रभु (ओषधीनां वर्धनः) = उष्णता के धारक जीवों को बढ़ानेवाला, (य:) = जो (अपां वर्धनः) = जलचारी जीवों को बढ़ानेवाला और (य:) = जो (विश्वस्य जगतः) = समस्त जगत् का ईशे स्वामी है। (सः) = वह परमेश्वर (अस्मे) = हमें (सु-अभिष्टिः) = सुख से चाहने योग्य (त्रिवर्तु ज्योतिः) = त्रिविध ज्ञानदाता वेदमय प्रकाश और (त्रि-धातु) = तीन धातु सुवर्णादि से बने (शरणं) = गृह और तीन धातु वात, पित्त, कफ से बने शरणयोग्य देह और (त्रिवर्तु) = तीनों कालों में वर्त्तनेवाला सुख (यंसत्) = दे।

    भावार्थ

    भावार्थ- समस्त जगत् का स्वामी परमेश्वर वात, पित्त, कफ इन तीन धातुओं से बने देह प्रदान करके सुख के साधन त्रिवेदमय ऋग्, यजु, साम रूप वाणी देता है। गर्मी, सर्दी, वर्षा इन तीन ऋतुओं में विभिन्न प्रकार के पदार्थ ऋतु के अनुकूल प्रदान करता है तथा जलचर, नभचर, थलचर तीनों प्रकार के जीवों को बढ़ने के साधन भी देता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    He that generates and augments the vegetation and generates the waters and the power that orders and rules over the entire moving universe may, we pray, give us three fold health and peace of body, mind and soul and bless us with threefold shelter against heat, cold and rain, and give us threefold light of earth, heaven and the middle regions for our well being all round.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो परमात्मा वर्षा इत्यादी ऋतूंमध्ये औषधी वाढवितो व जो सर्व औषधींमध्ये रसांचा आविष्कार करतो. त्या परमेश्वराने या त्रिधातू शरीराला सुख द्यावे व सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य प्राप्त करून द्यावे ॥२॥

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