Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 15 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 15/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    क्षप॑ उ॒स्रश्च॑ दीदिहि स्व॒ग्नय॒स्त्वया॑ व॒यम्। सु॒वीर॒स्त्वम॑स्म॒युः ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्षपः॑ । उ॒स्रः । च॒ । दी॒दि॒हि॒ । सु॒ऽअ॒ग्नयः॑ । त्वया॑ । व॒यम् । सु॒ऽवीरः॑ । त्वम् । अ॒स्म॒ऽयुः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्षप उस्रश्च दीदिहि स्वग्नयस्त्वया वयम्। सुवीरस्त्वमस्मयुः ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्षपः। उस्रः। च। दीदिहि। सुऽअग्नयः। त्वया। वयम्। सुऽवीरः। त्वम्। अस्मऽयुः ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 15; मन्त्र » 8
    अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राजप्रजाजनाः कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

    अन्वयः

    हे राजन्नस्मयुः सुवीरस्त्वं क्षप उस्रश्चास्मान् दीदिहि त्वया सह स्वग्नयो वयं त्वामहर्निशं प्रकाशेम ॥८॥

    पदार्थः

    (क्षपः) रात्रीः (उस्रः) किरणयुक्तानि दिनानि। उस्रा इति रश्मिनाम। (निघं०१.५) (च) (दीदिहि) प्रकाशय (स्वग्नयः) शोभना अग्नयो येषान्ते (त्वया) रक्षकेण राज्ञा (वयम्) (सुवीरः) शोभना वीरा यस्य सः (त्वम्) (अस्मयुः) अस्मान् कामयमानः ॥८॥

    भावार्थः

    हे राजराजजना ! यथाऽहर्निशं सूर्यः प्रकाशते तथा यूयं प्रकाशिता भवत ॥८॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर राजा और प्रजाजन परस्पर कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे राजन् ! (अस्मयुः) हमको चाहनेवाले (सुवीरः) सुन्दर वीर पुरुषों से युक्त (त्वम्) आप (क्षपः) रात्रियों (च) और (उस्रः) किरणयुक्त दिनों में (अस्मान्) हम को (दीदिहि) प्रकाशित कीजिये (त्वया) आप के साथ (स्वग्नयः) सुन्दर अग्नियोंवाले (वयम्) हम लोग प्रतिदिन प्रकाशित हों ॥८॥

    भावार्थ

    हे राजा और राजपुरुषो ! जैसे प्रतिदिन सूर्य प्रकाशित होता है, वैसे तुम लोग सदा प्रकाशित होओ ॥८॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ज्ञानी पुरुषों से ज्ञान प्रकाश की याचना ।

    भावार्थ

    हे (अग्ने ) विद्वन् ! तू ( क्षपः उस्त्रः च ) दिन और रात्रि को भी ( दीदिहि) स्वयं प्रकाशित हो और उनको भी सूर्य, दीपकवत् प्रकाशित कर । ( त्वया ) तेरे से ही ( वयम् ) हम लोग ( सु-अग्नयः ) उत्तम अग्नियुक्त, उत्तम नेता वाले हों । और ( त्वम् ) तू (सु-वीरः) उत्तम वीर पुरुषों का स्वामी तथा ( अस्मयुः ) हम लोगों को प्रिय हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ।। अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ३, ७, १०, १२, १४ विराड्गायत्री । २, ४, ५, ६, ९, १३ गायत्री । ८ निचृद्गायत्री । ११ ,१५ आर्च्युष्णिक् ।। पञ्चदशर्चं सूकम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सदा प्रभु के प्रकाश में

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो ! (क्षपः उस्त्रः च) = रात्रियों में व दिनों में सदा ही आप (दीदिहि) = हमारे हृदयों में दीप्त होइये। (वयम्) = हम (त्वया) = आपके द्वारा (स्वग्नयः) = उत्तम यज्ञ की अग्नियोंवाले हों, अर्थात् आपकी प्रेरणा से सदा यज्ञ आदि उत्तम कार्यों में प्रवृत्त रहें। [२] (त्वम्) = आप (सुवीरः) = उत्तम वीर सन्तानों को प्राप्त करानेवाले हैं तथा (अस्मयुः) = सदा हमारे हित की कामनावाले हैं। सदा हृदयस्थरूपेण उत्तम प्रेरणा को देते हुए आप हमारा हित चाहते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमारे हृदयों में सदा प्रभु का प्रकाश हो और हम सदा ही यज्ञ आदि उत्तम कर्मों में प्रवृत्त रहें। प्रभु हमारे हित की कामनावाले हैं और हमें उत्तम वीर सन्तानों को प्राप्त कराते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा व राजजनांनो ! सूर्य जसा अहर्निश प्रकाश देतो तसे तुम्हीही प्रकाशित व्हा. ॥ ८ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Shine forth, beatify the night and brighten up the day with the light of sun rays, and by virtue of your brilliance let us shine too like holy fires. Chief of the youthful brave you are, our own, always for us.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top