ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 24/ मन्त्र 3
आ नो॑ दि॒व आ पृ॑थि॒व्या ऋ॑जीषिन्नि॒दं ब॒र्हिः सो॑म॒पेया॑य याहि। वह॑न्तु त्वा॒ हर॑यो म॒द्र्य॑ञ्चमाङ्गू॒षमच्छा॑ त॒वसं॒ मदा॑य ॥३॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । दि॒वः । आ । पृ॒थि॒व्याः । ऋ॒जी॒षि॒न् । इ॒दम् । ब॒र्हिः । स॒म॒ऽपेया॑य । या॒हि॒ । वह॑न्तु । त्वा॒ । हर॑यः । म॒द्र्य॑ञ्चम् । आ॒ङ्गू॒षम् । अच्छ॑ । त॒वस॑म् । मदा॑य ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो दिव आ पृथिव्या ऋजीषिन्निदं बर्हिः सोमपेयाय याहि। वहन्तु त्वा हरयो मद्र्यञ्चमाङ्गूषमच्छा तवसं मदाय ॥३॥
स्वर रहित पद पाठआ। नः। दिवः। आ। पृथिव्याः। ऋजीषिन्। इदम्। बर्हिः। सोमऽपेयाय। याहि। वहन्तु। त्वा। हरयः। मद्र्यञ्चम्। आङ्गूषम्। अच्छ। तवसम्। मदाय ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 24; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः किं वर्त्तयित्वा किं पेयमित्याह ॥
अन्वयः
हे ऋजीषिंस्त्वं सोमपेयाय दिवः पृथिव्याः न इदं बर्हिरायाहि मदाय मद्र्यञ्चमाङ्गूषं तवसं त्वा सोमपेयाय हरयोऽच्छा वहन्तु ॥३॥
पदार्थः
(आ) समन्तात् (नः) अस्माकम् (दिवः) प्रकाशम् (आ) (पृथिव्याः) भूमेः (ऋजीषिन्) सरलस्वभाव (इदम्) वर्त्तमानम् (बर्हिः) उत्तमं स्थानमवकाशं वा (सोमपेयाय) उत्तमौषधिरसपानाय (याहि) आगच्छ (वहन्तु) प्रापयन्तु (त्वा) त्वाम् (हरयः) (मद्र्यञ्चम्) मामञ्चतम् (आङ्गूषम्) प्राप्नुवन्तम् (अच्छा) सम्यक्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (तवसम्) बलम् (मदाय) आनन्दाय ॥३॥
भावार्थः
त एवारोगाः शिष्टा धार्मिका चिरायुषः परोपकारिणो भवेयुर्ये मद्यबुद्ध्यादिप्रलम्पकं विहाय बलबुद्ध्यादिवर्धकं सोमादिमहौषधिरसं पातुं सज्जनैः सह स्वाप्तस्थानं [वा] गच्छेयुः ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या वर्त्त कर क्या पीना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (ऋजीषिन्) सरल स्वभाववाले ! आप (सोमपेयाय) उत्तम ओषधियों के रस के पीने के लिये (दिवः) प्रकाश और (पृथिव्याः) भूमि से (नः) हमारे (इदम्) इस वर्त्तमान (बर्हिः) उत्तम स्थान वा अवकाश को (आ, याहि) आओ (मदाय) आनन्द के लिये (मद्र्यञ्चम्) मेरा सत्कार करते (आङ्गूषम्) और प्राप्त होते हुए (तवसम्) बलवान् (त्वाम्) आपको उत्तम ओषधियों के रस पीने के लिये (हरयः) हरणशील (अच्छ) अच्छे (आ, वहन्तु) पहुँचावें ॥३॥
भावार्थ
वे ही नीरोग, शिष्ट, धार्मिक, चिरायु और परोपकारी हों, जो मद्यरूप और अच्छे प्रकार बुद्धि के नष्ट करनेवाले पदार्थ को छोड़ बल, बुद्धि आदि को बढ़ानेवाले सोम आदि बड़ी ओषधियों के रस के पीने को अपने वा आप्त के स्थान को जावें ॥३॥
विषय
उसके कर्त्तव्य । पुत्रवत् प्रजापालन ।
भावार्थ
हे (ऋजीषिन्) ऋजु, सरल धार्मिक मार्ग में समस्त प्रजाओं को चलाने हारे ! तू (सोम-पेयाय ) पुत्रवत् प्रजा के पालन करने, तू और ऐश्वर्यों का ओषधिरसवत् उपभोग करने के लिये ( दिवः पृथिव्याः ) उत्तम व्यवहार, विजय-कामना और भूमि के लिये ( नः ) हमारे ( इदं बर्हिः ) इस वृद्धिकारक प्रजावर्ग को ( आ याहि ) प्राप्त हो । ( हरयः ) प्रजास्थ पुरुष ( तवसं ) बलवान् ( मद्र्यञ्चम् ) मेरे प्रति आदरपूर्वक आने वाले ( त्वा ) तुझ को ( मदाय ) तेरी प्रसन्नता के लिये ( आङ्गूषं अच्छ वहन्तु ) उत्तम स्तुतियुक्त वचन प्रदान करें
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः –१, ३ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ५ त्रिष्टुप् । ४ विराट् त्रिष्टुप् । ६ विराट् पंक्तिः ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
विषय
राजा विजयकामी हो
पदार्थ
पदार्थ - हे (ऋजीषिन्) = सरल मार्ग में प्रजा को चलाने हारे! तू (सम-पेयाय) = प्रजा-पालन और ऐश्वर्यों के भोग के लिये (दिवः पृथिव्याः) = उत्तम व्यवहार और भूमि के लिये (न:) = हमारी (इदं बर्हिः) = इस बढ़ती प्रजा को (आ याहि) = प्राप्त हो। (हरय:) = प्रजास्थ पुरुष (तवसं) = बलवान् (मद्र्यञ्चम्) = मेरे प्रति आनेवाले (त्वा) = तुझको (मदाय) = प्रसन्नता के लिये (आङ्गुषं अच्छ वहन्तु) = उत्तम स्तुति वचन प्रदान करें।
भावार्थ
भावार्थ- राजा पुत्रवत् प्रजापालन करे और अपने उत्तम व्यवहार से विजयकामना राष्ट्र को उन्नत करे।
मराठी (1)
भावार्थ
जे मद्य व बुद्धी नष्ट करणाऱ्या पदार्थांचा त्याग करून बल, बुद्धी वाढविणाऱ्या सोम वगैरे औषधींचे प्राशन करतात तेच निरोगी, सभ्य, धार्मिक, दीर्घायु व परोपकारी असतात. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, mighty lord of natural simplicity and grace, lover of joy, come to this holy seat of ours from wherever you are, from the regions of heavenly light or the dark green earth to drink of the soma of celebration for the land. May the leading personalities of the nation well conduct you to receive our felicitations with us here.
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