ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 24/ मन्त्र 5
ए॒ष स्तोमो॑ म॒ह उ॒ग्राय॒ वाहे॑ धु॒री॒३॒॑वात्यो॒ न वा॒जय॑न्नधायि। इन्द्र॑ त्वा॒यम॒र्क ई॑ट्टे॒ वसू॑नां दि॒वी॑व॒ द्यामधि॑ नः॒ श्रोम॑तं धाः ॥५॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । स्तोमः॑ । म॒हे । उ॒ग्राय॑ । वाहे॑ । धु॒रिऽइ॑व । अत्यः॑ । न । वा॒जय॑न् । अ॒धा॒यि॒ । इन्द्र॑ । त्वा॒ । अ॒यम् । अ॒र्कः । ई॒ट्टे॒ । वसू॑नाम् । दि॒विऽइ॑व । द्याम् । अधि॑ । नः॒ । श्रोम॑तम् । धाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष स्तोमो मह उग्राय वाहे धुरी३वात्यो न वाजयन्नधायि। इन्द्र त्वायमर्क ईट्टे वसूनां दिवीव द्यामधि नः श्रोमतं धाः ॥५॥
स्वर रहित पद पाठएषः। स्तोमः। महे। उग्राय। वाहे। धुरिऽइव। अत्यः। न। वाजयन्। अधायि। इन्द्र। त्वा। अयम्। अर्कः। ईट्टे। वसूनाम्। दिविऽइव। द्याम्। अधि। नः। श्रोमतम्। धाः ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 24; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वान् किंवत् किं कुर्यादित्याह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र ! येन त्वया वाहे मह उग्राय धुरीवात्यो न वाजयन्नेष स्तोमोऽधायि योऽयमर्को वसूनां दिवीव त्वेट्टे स त्वं नो द्यां श्रोमतं चाधि धाः ॥५॥
पदार्थः
(एषः) (स्तोमः) श्लाघ्यो व्यवहारः (महे) महते (उग्राय) तेजस्विने (वाहे) सर्वान्सुखं प्रापयित्रे (धुरीव) सर्वे यानावयवा लग्नाः सन्तो गच्छन्ति (अत्यः) अश्वः (न) इव (वाजयन्) वेगं कारयन् (अधायि) ध्रियते (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद (त्वा) त्वाम् (अयम्) विद्वान् (अर्कः) सत्कर्त्तव्यः (ईट्टे) ऐश्वर्यं प्रयच्छति (वसूनाम्) पृथिव्यादीनां मध्ये (दिवीव) सूर्यज्योतिषीव (द्याम्) प्रकाशम् (अधि) (नः) अस्माकम् (श्रोमतम्) श्रोतव्यं विज्ञानमन्नादिकं वा (धाः) धेहि ॥५॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यो विद्वान् तेजस्विभ्यः प्रशंसां धरति स धूर्वत्सर्वसुखाधारो वाजिवद्वेगवान् भूत्वा पुष्कलां श्रियं प्राप्य सूर्य इवात्र भ्राजते ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वान् किसके तुल्य क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) परमैश्वर्य के देनेवाले ! जिन आपने (वाहे) सब को सुख की प्राप्ति करानेवाले (महे) महान् (उग्राय) तेजस्वी के लिये (धुरीव) धुरी में जैसे रथ आदि के अवयव लगे हुए जाते हैं, वैसे (अत्यः) शीघ्र चलनेवाले घोड़े के (न) समान (वाजयन्) वेग कराते हुए (एषः) यह (स्तोमः) श्लाघनीय स्तुति करने योग्य व्यवहार (अधायि) धारण किया जो (अयम्) यह (अर्कः) सत्कार करने योग्य (वसूनाम्) पृथिवी आदि के बीच (दिवीव) वा सूर्य ज्योति के बीच (त्वा) आपको (ईट्टे) ऐश्वर्य देता है, वह आप (नः) हम लोगों को (द्याम्) प्रकाश और (श्रोमतम्) सुनने योग्य को (अधि, धाः) अधिकता से धारण करो ॥५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! जो विद्वान् तेजस्वियों के लिये प्रशंसा धारण करता, वह धुरी के समान सुख का आधार और घोड़े के समान वेगवान् हो बहुत लक्ष्मी पाकर सूर्य के समान इस संसार में प्रकाशित होता है ॥५॥
विषय
अभिषेक का प्रयोजन । सूर्यवत् शासक पद ।
भावार्थ
( वाहे धुरि अत्यः न ) रथ को उठाने वाले धुरा में जिस प्रकार अश्व लगाया जाता है उसी प्रकार ( वाहे धुरि ) राष्ट्र को धारण, पोषण और सञ्चालन करने वाले पद पर ( महे उग्राय ) महानू, बलवान् पुरुष के लिये ( एषः स्तोमः ) यह स्तुत्य व्यवहार, वा अधिकार ( वाजयन् इव ) उसको अधिक बल और ऐश्वर्य देता हुआ (अधायि ) नियत किया जाता है । ( वसूनां मध्ये दिवि अकः ) पृथिव्यादि वस्तुओं के बीच आकाश में सूर्य के समान हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ( वसूनाम् ) बसे प्रजाजनों, विद्वानों, प्रजापालक शासकों के बीच ( अयम् अर्कः ) यह अर्चना योग्य पद या अधिकार, मान आदर सत्कार ( त्वाम् ईट्टे ) तुझे ही ऐश्वर्य प्रदान करता है । तू ( नः ) हमें प्रकाशवत् ( द्याम् ) ज्ञान, उत्तम व्यवहार और ( श्रोमतं ) श्रवण योग्य यश भी ( धाः ) धारण करा ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः –१, ३ निचृत्त्रिष्टुप् । २, ५ त्रिष्टुप् । ४ विराट् त्रिष्टुप् । ६ विराट् पंक्तिः ॥ षडृचं सूक्तम् ॥
विषय
सबको उत्तम व्यवहार करना चाहिए
पदार्थ
पदार्थ-(वाहे धुरि अत्यः न) = रथ को उठानेवाले धुरा में जैसे अश्व लगाया जाता है वैसे ही (वाहे धुरि) = राष्ट्र को धारण के पद पर (महे उग्राय) = महान्, बलवान् पुरुष के लिये (एषः स्तोमः) = यह स्तुत्य व्यवहार (वाजयन् इव) = उसे ऐश्वर्य देता हुआ (अधायि) = नियत किया जाता हे है। (वसूनां मध्ये दिवि अर्कः) = पृथिव्यादि वसुओं के बीच, आकाश में सूर्य के समान, हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यवन्! (वसूनाम्) = प्रयोजनों, शासकों के बीच (अयम् अर्कः) = यह अर्चना योग्य पद (त्वाम् ईट्टे) = तुझे ही ऐश्वर्य देता है। तू (नः) = हमें प्रकाशवत् (द्याम्) = उत्तम व्यवहार और (श्रोमतं) = श्रवणयोग्य यश (धाः) = धारण करा।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्र के निवासी परस्पर शिष्टाचार एवं उत्तम व्यवहार करें, जिससे राष्ट्र की प्रतिष्ठा बढ़े।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जो विद्वान तेजस्वी लोकांची प्रशंसा करतो तो आसाप्रमाणे सुखांचा आधार असतो व घोड्याप्रमाणे वेगवान असून पुष्कळ धन प्राप्त करून सूर्याप्रमाणे या जगात प्रकाशित होतो. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This inspiring song of felicitation and this vibrant institution of governance is created and offered to Indra, great and brilliant lord ruler and sustainer of the world, like the leading power of the nation’s chariot. O lord Indra, this supplicant and celebrant prays to you for the gift of wealth, honour and excellence for the nation. Pray raise our honour and fame to the regions of bliss over the sky and light of the sun.
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