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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 29 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 29/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ब्रह्म॑न्वीर॒ ब्रह्म॑कृतिं जुषा॒णो॑ऽर्वाची॒नो हरि॑भिर्याहि॒ तूय॑म्। अ॒स्मिन्नू॒ षु सव॑ने मादय॒स्वोप॒ ब्रह्मा॑णि शृणव इ॒मा नः॑ ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रह्म॑न् । वी॒र॒ । ब्रह्म॑ऽकृतिम् । जु॒षा॒णः । अ॒र्वा॒ची॒नः । हरि॑ऽभिः । या॒हि॒ । तूय॑म् । अ॒स्मिन् । ऊँ॒ इति॑ । सु । सव॑ने । मा॒द॒य॒स्व॒ । उप॑ । ब्रह्मा॑णि । शृ॒ण॒वः॒ । इ॒मा । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रह्मन्वीर ब्रह्मकृतिं जुषाणोऽर्वाचीनो हरिभिर्याहि तूयम्। अस्मिन्नू षु सवने मादयस्वोप ब्रह्माणि शृणव इमा नः ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रह्मन्। वीर। ब्रह्मऽकृतिम्। जुषाणः। अर्वाचीनः। हरिऽभिः। याहि। तूयम्। अस्मिन्। ऊँ इति। सु। सवने। मादयस्व। उप। ब्रह्माणि। शृणवः। इमा। नः ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 29; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वांसः किं कुर्य्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे ब्रह्मन् वीर ! ब्रह्मकृतिं जुषाणोऽर्वाचीनस्त्वं हरिभिस्सह तूयं याहि अस्मिन् सवनेऽस्मान् नु मादयस्व न इमा ब्रह्माणि सूप शृणवः ॥२॥

    पदार्थः

    (ब्रह्मन्) चतुर्वेदवित् (वीर) सकलशुभगुणव्यापिन् (ब्रह्मकृतिम्) ब्रह्मणः परमेश्वरस्य कृतिं संसारम् (जुषाणः) सेवमानः (अर्वाचीनः) इदानीन्तनः (हरिभिः) सद्गुणकर्षकैर्मनुष्यैस्सह (याहि) (तूयम्) शीघ्रम्। तूयमिति क्षिप्रनाम। (निघं०२.१५)(अस्मिन्) (उ) (सु) (सवने) सुन्वन्ति निष्पादयन्ति येन कर्मणा तस्मिन् (मादयस्व) आनन्दयस्व (उप) (ब्रह्माणि) अधीतानि वेदवचांसि (शृणवः) शृणु (इमा) इमानि (नः) अस्माकम् ॥२॥

    भावार्थः

    हे विद्वन् ! त्वं सृष्टिक्रमं विज्ञायास्मान् प्रबोधयास्मिन्नध्यापनाऽध्ययने कर्मण्यस्माकमधीतं परीक्ष्य विद्याप्रदानेन सर्वान् सद्यः प्रमोदय ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (ब्रह्मन्) चार वेदों के जाननेवाले (वीर) समस्त शुभगुणों में व्याप्त ! (ब्रह्मकृतिम्) परमेश्वर की कृति जो संसार इसको (जुषाणः) सेवते हुए (अर्वाचीनः) वर्त्तमान समय में प्रसिद्ध हुए आप (हरिभिः) अच्छे गुणों के आकर्षण करनेवाले मनुष्यों के साथ (तूयम्) शीघ्र (याहि) जाओ (अस्मिन्) इस (सवने) सवन में अर्थात् जिस कर्म से पदार्थों को सिद्ध करते हैं उसमें हम लोगों को (मादयस्व) आनन्दित कीजिये (नः) हमारे (इमा) इन (ब्रह्माणि) पढ़े हुए वेदवचनों को (सु, उ, उप, शृणवः) उत्तम प्रकार तर्क-वितर्क से समीप में सुनिये ॥२॥

    भावार्थ

    हे विद्वन् ! आप सृष्टि के क्रम को जान कर हमको जतलाओ, इसमें पढ़ाना पढ़ना काम और पढ़े हुए की परीक्षा करो और विद्यादान से शीघ्र प्रमोद देओ ॥२॥

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    विषय

    चतुर्वेदज्ञ शासक पढ़ के योग्य है । वही सुख दे सकता है ।

    भावार्थ

    हे (ब्रह्मन् ) विद्वन् ! चारों वेदों के जानने हारे ! हे (वीर) विविध विद्याओं का उपदेश करने हारे ! हे महान् राष्ट्र के पालक ! हे शूरवीर राजन् ! तू ( ब्रह्मकृतिं ) परमेश्वर के बनाये जगत् को, हे वीर ! तू बड़े राष्ट्र के कार्य को (जुषाणः ) प्रेम से सेवन करता हुआ ( हरिभिः )उत्तम पुरुषों सहित ( अर्वाचीनः ) अब भी ( तूयम् याहि ) शीघ्र प्राप्त हो । ( अस्मिन् सवने ) इस ऐश्वर्यमय यज्ञ, वा राष्ट्र शासन के कार्य में ( नु सु मादयस्व ) शीघ्र ही तू स्वयं प्रसन्न होकर अन्यों को भी सुखी कर । और ( नः ) हमारे ( इमा ) इन ( ब्रह्माणि ) उत्तम वेद-वचनों: को ( उप शृणवः ) श्रवण कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषि: ।। इन्द्रो देवता ।। छन्दः – १ स्वरापंक्तिः । ३ पंक्तिः । २ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ५ निचृत्त्रिष्टुप् ।। पञ्चर्चं सूकम् ॥

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    विषय

    राजा चतुर्वेदज्ञ हो

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (ब्रह्मन्) = विद्वन् ! हे (वीर) = शूर! तू (ब्रह्मकृतिं) = परमेश्वर- निर्मित जगत् को, बड़े राष्ट्र-कार्य को (जुषाण:) = सेवन करता हुआ (हरिभिः) = उत्तम पुरुषों सहित (अर्वाचीन:) = अब भी (तूयम् याहि) = शीघ्र प्राप्त हो । (अस्मिन् सवने) = इस यज्ञ, वा राष्ट्र शासन में (नु सु मादयस्व) = शीघ्र, तू प्रसन्न होकर अन्यों को भी सुखी कर और (नः) = हमारे (इमा) = इन (ब्रह्माणि इमा) = वेद-वचनों को (उप-शृणवः) = सुन ।

    भावार्थ

    भावार्थ - राजा को चारों वेदों का विद्वान् होना चाहिए जिससे वह अपने राज्य में वेद विद्या का प्रसार कर वेद के विद्वानों द्वारा समस्त प्रजा को वेदवित् बना सके तथा वैदिक राष्ट्र की स्थापना कर सके।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे विद्वाना ! तू सृष्टीचा क्रम जाणून आम्हाला प्रबोधन कर. आमच्या अध्ययन, अध्यापनाची परीक्षा कर व विद्यादानाचा आनंद लवकर दे. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O mighty Indra, ruler of the world and master of universal knowledge, lover of the lord’s creation, come here straight to us driven fast by dynamic forces, join this yajnic programme of our life, be happy and rejoice with us, and listen to those celebrative chants and prayers of ours.

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