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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 29 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 29/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    का ते॑ अ॒स्त्यरं॑कृतिः सू॒क्तैः क॒दा नू॒नं ते॑ मघवन्दाशेम। विश्वा॑ म॒तीरा त॑तने त्वा॒याधा॑ म इन्द्र शृणवो॒ हवे॒मा ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    का । ते॒ । अ॒स्ति॒ । अर॑म्ऽकृतिः । सु॒ऽउ॒क्तैः । क॒दा । नू॒नम् । ते॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । दा॒शे॒म॒ । विश्वाः॑ । म॒तीः । आ । त॒त॒ने॒ । त्वा॒ऽया । अध॑ । मे॒ । इ॒न्द्र॒ । शृ॒ण॒वः॒ । हवा॑ । इ॒मा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    का ते अस्त्यरंकृतिः सूक्तैः कदा नूनं ते मघवन्दाशेम। विश्वा मतीरा ततने त्वायाधा म इन्द्र शृणवो हवेमा ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    का। ते। अस्ति। अरम्ऽकृतिः। सुऽउक्तैः। कदा। नूनम्। ते। मघऽवन्। दाशेम। विश्वाः। मतीः। आ। ततने। त्वाऽया। अध। मे। इन्द्र। शृणवः। हवा। इमा ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 29; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    केऽध्यापकाऽध्येतारः परीक्षकाः प्रशंसनीया इत्याह ॥

    अन्वयः

    हे मघवन्निन्द्र ! का तेऽरङ्कृतिरस्ति सूक्तैस्ते नूनं विश्वा मतीर्वयं कदा दाशेम त्वायाऽहमा ततनेऽध त्वं मे ममेमा हवा शृणवः ॥३॥

    पदार्थः

    (का) (ते) तव (अस्ति) (अरङ्कृतिः) अलङ्कारः (सूक्तैः) सुष्ठूक्तार्थैर्वेदवचोभिः (कदा) (नूनम्) निश्चितम् (ते) तुभ्यम् (मघवन्) (दाशेम) दद्याम (विश्वाः) अखिलाः (मतीः) प्रज्ञाः (आ) (ततने) विस्तृणीयाम् (त्वाया) त्वदीयया (अध) अथ। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (मे) मम (इन्द्र) विद्यैश्वर्यसम्पन्न (शृणवः) शृणु (हवा) हवानि श्रुतानि (इमा) इमानि ॥३॥

    भावार्थः

    तेऽध्यापकाः श्रेष्ठा भवन्ति य इमान् स्वकीयान् विद्यार्थिनः कदा विद्वांसः करिष्यामेतीच्छन्ति सर्वेभ्यः सत्यानि प्रज्ञानानि प्रयच्छन्ति त एव विद्यार्थिनः श्रेष्ठाः सन्ति य उत्साहेन स्वाधीतस्योत्तमाम्परीक्षां प्रददति त एव परीक्षकाः श्रेष्ठाः सन्ति ये परीक्षायां कस्यापि पक्षपातं न कुर्वन्ति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    कौन पढ़ाने और पढ़नेवाले प्रशंसा करने योग्य हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मघवन्) बहुधनयुक्त (इन्द्र) विद्या और ऐश्वर्य्य सम्पन्न ! (का) कौन (ते) आपका (अरङ्कृतिः) अलङ्कार (अस्ति) है (सूक्तैः) और अच्छे प्रकार कहा है अर्थ जिनका उन वेद-वचनों से (ते) आपको (नूनम्) निश्चित (विश्वाः) सब (मतीः) बुद्धियों को हम लोग (कदा) कब (दाशेम) देवें (त्वाया) आपकी बुद्धि से मैं (आ, ततने) विस्तार करूँ (अध) इसके अनन्तर आप (मे) मेरे (इमा) इन (हवा) सुने वाक्यों को (शृणवः) सुनो ॥३॥

    भावार्थ

    वे अध्यापक श्रेष्ठ होते हैं जो इन अपने विद्यार्थियों को कब विद्वान् करें ऐसी इच्छा करते हैं और सब के लिये सत्य उत्तम ज्ञानों को देते हैं और वे ही विद्यार्थी श्रेष्ठ हैं जो उत्साह से अपने पढ़े हुए की उत्तम परीक्षा देते हैं तथा वे ही परीक्षा करनेवाले श्रेष्ठ हैं जो परीक्षा में किसी का पक्षपात नहीं करते हैं ॥३॥

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    विषय

    विद्या का अलंकार, विद्वान् से विनय ।

    भावार्थ

    हे ( मघवन् ) उत्तम और दातव्य ज्ञान और ऐश्वर्य के स्वामिन् ! ( ते ) तेरी ( सूक्तैः ) उत्तम वचनों और वेदविद्या के प्रवचनों से (का अरंकृतिः अस्ति) क्या ही, कैसी उत्तम शोभा है। वे उत्तम वचन और विद्या के गुप्त रहस्य तुझे आभूषण के समान सुशोभित करते हैं। हे ऐश्वर्यवन् ! हम शिष्यगण ( ते ) तेरे लिये ( नूनं ) सत्य कहो, आज्ञा करो ( कदा दाशेम ) कब २ उपहार गुरु दक्षिणादि प्रदान करें ( त्वाया ) तुझ से ही हमारी ( विश्वाः मतीः ) सब बुद्धियां (आ ततने ) विस्तृत ज्ञान वाली होती हैं । ( अध) और हे ( इन्द्र ) अखिल ज्ञानप्रद ! ( मे इमा हवा ) मेरे ये ग्राह्य पदार्थ और प्रार्थना के वचन ( शृणवः ) श्रवण करो और (हवा) ग्राह्य ज्ञानोपदेश (मे शृणव:) मुझे श्रवण कराओ ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषि: ।। इन्द्रो देवता ।। छन्दः – १ स्वरापंक्तिः । ३ पंक्तिः । २ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ५ निचृत्त्रिष्टुप् ।। पञ्चर्चं सूकम् ॥

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    विषय

    राजा विद्वान् और विनयशील हो

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (मघवन्) = ऐश्वर्य - स्वामिन् ! (ते) = तेरे (सूक्तैः) = उत्तम वचनों, विद्या प्रवचनों से का (अरंकृतिः अस्ति) = कैसी शोभा है। हे ऐश्वर्यवन्! हम (ते) = तेरे लिये (नूनं) = सत्य कहो, आज्ञा करो (कदा दाशेम) = कब-कब उपहार दें? (त्वाया) = तुझसे ही हमारी (विश्वाः मतीः) = सब बुद्धियाँ (आ ततने) = विस्तृत ज्ञानवाली होती हैं। (अध) = और, हे (इन्द्र) = ज्ञानप्रद ! (मे इमा हवा) = मेरे ग्राह्य पदार्थ और प्रार्थना-वचन (शृणव:) = सुनो और (हवा) = ग्राह्य ज्ञानोपदेश (मे शृणवः) = मुझे सुनाओ।

    भावार्थ

    भावार्थ- विद्वान् राजा वेद के विद्वानों की मण्डली में नित्य बैठा करे तथा उनसे राष्ट्र की समृद्धि के सूत्रों को प्राप्त कर शोध कार्यों द्वारा राष्ट्र में उत्तम ऐश्वर्य की वृद्धि करे। राजा अभिमान को छोड़ विनयशीलता के साथ प्रजा पालन करे।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    आपले विद्यार्थी विद्वान होतील अशी इच्छा जे बाळगतात व सर्वांना सत्य विद्या देतात ते अध्यापक श्रेष्ठ असतात. जे शिकल्यानंतर उत्साहाने परीक्षा देतात तेच विद्यार्थी श्रेष्ठ असतात व जे परीक्षेत भेदभाव करीत नाहीत तेच परीक्षक श्रेष्ठ असतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    What is the honour and pleasure we can do by our songs of adoration to your grace? O lord of glory, what can we offer and when in homage to you? All thoughts, imagination and songs we offer are but an extension of your grace in adoration of your honour. So, O lord, only listen to these songs of adoration and be pleased.

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