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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 51/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - आदित्याः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ॒दि॒त्या विश्वे॑ म॒रुत॑श्च॒ विश्वे॑ दे॒वाश्च॒ विश्व॑ ऋ॒भव॑श्च॒ विश्वे॑। इन्द्रो॑ अ॒ग्निर॒श्विना॑ तुष्टुवा॒ना यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒दि॒त्याः । विश्वे॑ । म॒रुतः॑ । च॒ । विश्वे॑ । दे॒वाः । च॒ । विश्वे॑ । ऋ॒भवः॑ । च॒ । विश्वे॑ । इन्द्रः॑ । अ॒ग्निः । अ॒श्विना॑ । तु॒स्तु॒वा॒नाः । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आदित्या विश्वे मरुतश्च विश्वे देवाश्च विश्व ऋभवश्च विश्वे। इन्द्रो अग्निरश्विना तुष्टुवाना यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आदित्याः। विश्वे। मरुतः। च। विश्वे। देवाः। च। विश्वे। ऋभवः। च। विश्वे। इन्द्रः। अग्निः। अश्विना। तुस्तुवानाः। यूयम्। पात। स्वस्तिऽभिः। सदा। नः ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 51; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः केषां रक्षणेन सर्वं सुखं संभवतीत्याह ॥

    अन्वयः

    हे विश्व आदित्या विश्वे मरुतश्च विश्वे देवाश्च विश्वे ऋभवश्च इन्द्रोऽग्निरश्विना तुष्टुवाना विद्वांसो यूयं स्वस्तिभिर्नस्सदा पात ॥३॥

    पदार्थः

    (आदित्याः) संवत्सरस्य मासा इव विद्यावृद्धाः (विश्वे) सर्वे (मरुतः) मनुष्याः (च) (विश्वे) (देवाः) विद्वांसः (च) (विश्वे) अखिलाः (ऋभवः) मेधाविनः (च) (विश्वे) (इन्द्रः) विद्युत् (अग्निः) (अश्विना) सूर्याचन्द्रमसौ (तुष्टुवानाः) प्रशंसन्तः (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) समग्रैस्सुखैः (सदा) (नः) अस्माकम् ॥३॥

    भावार्थः

    यस्मिन्देशे सर्वे विद्वांसो धीमन्तः चतुरा धार्मिकाश्च रक्षका विद्याप्रदा उपदेशकास्सन्ति तत्र सर्वतो रक्षिता भूत्वा सर्वे सुखिनो भवन्तीति ॥३॥ अत्रादित्यवद् विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकपञ्चाशत्तमं सूक्त्मष्टादशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर किसकी रक्षा से सब सुख होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (विश्वे) सब (आदित्याः) संवत्सर के महीनों के समान विद्यावृद्ध (विश्वे, मरुतः च) और समस्त (विश्वे, देवाः, च) और समस्त विद्वान् (विश्वे, ऋभवः, च) और बुद्धिमान् जन (इन्द्रः) बिजुली (अग्निः) साधारण अग्नि (अश्विना) सूर्य चन्द्रमा (तुष्टुवानाः) प्रशंसा करते हुए विद्वान् जन तथा (यूयम्) तुम (स्वस्तिभिः) सुखों से (नः) हम लोगों की (सदा) सर्वदा (पात) रक्षा करो ॥३॥

    भावार्थ

    जिस देश में सब विद्वान् जन बुद्धिमान् चतुर धार्मिक और रक्षा करने और विद्या देनेवाले उपदेशक हैं, वहाँ सब से रक्षायुक्त होकर सब सुखी होते हैं ॥३॥ इस सूक्त में सूर्य के समान विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह इक्यावनवाँ सूक्त और अठारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    अदिति ईश्वर के उपासकों के ज्ञान का सत्संग उनके कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( विश्वे आदित्याः ) समस्त बारह मासों के समान नाना सुखप्रद विद्वान् (विश्वे मरुतः ) समस्त वायुगण, समस्त मनुष्य, (विश्वे देवाः च ) समस्त विद्वान् पुरुष, और पृथिवी आदि लोक, (विश्वे ऋभवः च ) समस्त सत्य और तेज से प्रकाशित जन (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् (अग्निः) तेजस्वी, ( अश्विना ) उत्तम जितेन्द्रिय स्त्री पुरुष, ये सब ( तुष्टुवानाः ) स्तुति किये जाय । हे स्वजनो ! ( यूयं नः स्वस्तिभिः सदा पात ) आप सब लोग हमें उत्तम कल्याणकारी साधनों से सदा पालन करें । इत्यष्टादशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ आदित्या देवताः ॥ छन्दः – १, २ त्रिष्टुप् । ३ चित्रिष्टुप् ॥ तृचं सूक्तम् ।

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    विषय

    पासक के कर्त्तव्य

    पदार्थ

    पदार्थ - (विश्वे आदित्या:) = समस्त बारह मासों के समान सुखप्रद विद्वान् (विश्वे मरुतः) = समस्त वायुगण, (विश्वे देवाः च) = समस्त पृथिवी आदि लोक, (विश्वे ऋभवः च) = समस्त तेज से प्रकाशित जन (इन्द्रः) = ऐश्वर्यवान् (अग्नि:) = तेजस्वी, (अश्विना) = जितेन्द्रिय स्त्री-पुरुष, ये सब (तुष्टुवाना:) = स्तुति किये जाएँ। हे स्वजनो! (यूयं नः स्वस्तिभिः सदा पात) = आप हमें उत्तम साधनों से सदा पालें।

    भावार्थ

    भावार्थ- सभी मनुष्य विद्वानों के संग से ईश्वर उपासना करते हुए सत्याचारी, तेजस्वी तथा ऐश्वर्यवान् बनें। सभी स्त्री-पुरुष जितेन्द्रिय होकर ईश्वर स्तुति करते हुए परस्पर एक दूसरे की रक्षा करें। अगले सूक्त का ऋषि वसिष्ठ और आदित्य देवता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या देशात सर्व विद्वान लोक बुद्धिमान, चतुर, धार्मिक व रक्षक तसेच विद्यादान करणारे अध्यापक असतात तेथे सर्वांचे रक्षण होऊन सर्व जण सुखी होतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    All the Adityas, refulgent powers of nature and humanity, all the Maruts, winds and heroic men, all devas, brilliancies of nature and humanity, Rbhus, all artists and craftsmen, Indra, ruling power and electricity, Agni, fire and the brilliant leader, Ashvins, complementary currents of natural energy and teachers and preachers, all happy, adorable and appraising, may protect and promote us with all good fortune and well being for all time.

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