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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 65 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 65/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ता हि दे॒वाना॒मसु॑रा॒ ताव॒र्या ता न॑: क्षि॒तीः क॑रतमू॒र्जय॑न्तीः । अ॒श्याम॑ मित्रावरुणा व॒यं वां॒ द्यावा॑ च॒ यत्र॑ पी॒पय॒न्नहा॑ च ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ता । हि । दे॒वाना॑म् । असु॑रा । तौ । अ॒र्या । ता । नः॒ । क्षि॒तीः । क॒र॒त॒म् । ऊ॒र्जय॑न्तीः । अ॒श्याम॑ । मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒ । व॒यम् । वा॒म् । द्यावा॑ । च॒ । यत्र॑ । पी॒पय॑न् । अहा॑ । च॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ता हि देवानामसुरा तावर्या ता न: क्षितीः करतमूर्जयन्तीः । अश्याम मित्रावरुणा वयं वां द्यावा च यत्र पीपयन्नहा च ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ता । हि । देवानाम् । असुरा । तौ । अर्या । ता । नः । क्षितीः । करतम् । ऊर्जयन्तीः । अश्याम । मित्रावरुणा । वयम् । वाम् । द्यावा । च । यत्र । पीपयन् । अहा । च ॥ ७.६५.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 65; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 7; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (हि) निश्चयेन (ता) राजा तथा प्रजाजनौ (देवानाम्) विदुषां मध्ये (असुरौ) बलवन्तौ भवतः (ता) (अर्या) श्रेष्ठौ भवतः (तौ) (नः) अस्माकं (क्षितीः) पृथिवीं (ऊर्जयन्तीः) वृद्धिसंयुक्ताः (करतं) कुरुतामित्यर्थः (मित्रावरुणा) हे अध्यापकोपदेशकौ (वयं) (वां) युवां (अश्याम) प्राप्नुयाम (द्यावा) द्यावापृथिव्यौ (यत्र) यस्मिन्विषये (पीपयन्) अस्मान्प्रति प्याययेतां (च) पुनः (अहा) अहोरात्राणि वर्धेरन् यत्र एवंविधा प्रार्थना भवति तत्रैव सर्वैश्वर्य्यमुत्पद्यते इति भावः ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (हि) निश्चय करके (ता) वही (तौ) राजा तथा प्रजा (देवानां) देवों के मध्य (असुरौ) बलवाले होते, (अर्या) वही श्रेष्ठ होते और (ता) वही (नः) हमारी (क्षितीः) पृथिवी को (उर्जयन्तीः, करतं) उन्नत करते हैं, जो (मित्रावरुणा) सब के मित्र तथा वरणीय परमात्मा की उपासना करते हुए यह प्रार्थना करते हैं कि (वयं) हम लोग (अश्याम) परमात्मपरायण हों (च) और (यत्र) जहाँ (वां) राजा प्रजा दोनों (अहा) प्रतिदिन (पीपयन्) वृद्धि की प्रार्थना करते हैं, वहाँ (द्यावा) द्युलोक तथा पृथिवी लोक दोनों का ऐश्वर्य्य प्राप्त होता है ॥२॥

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों ! तुम प्रतिदिन परमात्मपरायण होने के लिये प्रयत्न करो, जो लोग प्रतिदिन परमात्मा से प्रार्थना करते हुए अपनी वृद्धि की इच्छा करते हैं, वे द्युलोक तथा पृथिवीलोक के ऐश्वर्य्य को प्राप्त होते हैं, इसलिए तुम सदैव अपनी वृद्धि के लिए प्रार्थना किया करो ॥२॥

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    विषय

    उन के गृहपति-गृहपत्नीवत् कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( यत्र ) जिस राष्ट्र या देश में है ( मित्रा वरुणा ) प्रजा के स्नेही, प्राण वायुवत् प्रिय और वरण योग्य श्रेष्ठ स्त्री पुरुषो ! ( द्यावा ) सूर्य और भूमिवत् विद्वान् और अविद्वान् जन और ( अहा च ) दिन रात्रिवत् स्त्री पुरुष सभी ( वां पीपयन् ) आप दोनों को पुष्ट करते हैं उसी देश में हम भी ( अश्याम ) नाना सुख समृद्धि प्राप्त करें । वे मित्र और वरुण दोनों ही ( देवानाम् ) विद्वान् मनुष्यों के बीच, प्राणों में प्राण उदान के समान ( असुरा ) बलवान् जीवनधारक, ( तौ अर्या ) वे दोनों ही स्वामी स्वामिनी के समान गृहपालक और ( ता ) वे दोनों ही ( नः क्षितीः ) हमारी भूमियों और मानव प्रजाओं को ( ऊर्जयन्तीः ) उत्तम अन्न और बल सम्पादन करने वाला ( करतम् ) बनावें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ मित्रावरुणौ देवते ॥ छन्दः–१, ५ विराट् त्रिष्टुप् । २ त्रिष्टुप् । ३, ४ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    विद्वानों द्वारा विभिन्न विद्याओं की शिक्षा

    पदार्थ

    पदार्थ - (यत्र) = जिस राष्ट्र या देश में, हे (मित्रा वरुणा) = प्रजा के स्नेही, प्राणवत् प्रिय और वरणीय स्त्री पुरुषो! (द्यावा) = सूर्य और (भूमिवत्) = विद्वान् और अविद्वान् जन और (अहा च) = दिनरात्रिवत् स्त्री-पुरुष सभी (वां पीपयन्) = आप दोनों को पुष्ट करते हैं, उसी देश में हम भी (अश्याम) = सुख-समृद्धि प्राप्त करें। वे मित्र और वरुण दोनों ही (देवानाम्) = विद्वान् मनुष्यों के बीच, प्राणों में प्राण उदान के समान (असुरा) = बलवान् जीवनधारक, (सौ अर्या) = वे दोनों ही स्वामी स्वामिनी के समान गृहपालक और (ता) = वे दोनों ही (नः क्षितीः) = हमारी भूमियों और मानव प्रजाओं को (ऊर्जयन्तीः) = उत्तम अन्न और बल के सम्पादक (करतम्) = बनावें ।

    भावार्थ

    भावार्थ - राजा को योग्य है कि वह राष्ट्र की प्रजा को पुष्ट करने तथा सुखी एवं समृद्ध करने हेतु विद्वानों व विदुषियों की नियुक्ति करे। वे विद्वान् लोगों को प्राण विद्या, स्वास्थ्यवृत्त, गृहपालन, कृषि तथा सन्तानों को उत्तम बनाने की शिक्षा प्रदान करें। प्रजा विद्वानों द्वारा प्रदत्त शिक्षाओं को धारण करे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Mitra and Varuna, manifestations of the Supreme Lord’s generous love and justice, are the best and highest of nature’s bounties. They strengthen and energise our lands and people and make them fertile and creative. O Mitra and Varuna, may we receive your favours whereby the earth and heaven, both exuberant, may promote us day and night.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करतो, की हे माणसांनो! तुम्ही प्रत्येक दिवशी परमात्मपरायण होण्याचा प्रयत्न करा. जे लोक प्रत्येक दिवशी परमात्म्याची प्रार्थना करीत आपल्या वृद्धीची इच्छा करतात ते द्युलोक व पृथ्वीलोकाचे ऐश्वर्य प्राप्त करतात. त्यासाठी तुम्ही सदैव आपल्या वृद्धीची प्रार्थना करा. ॥२॥

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