ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 73/ मन्त्र 3
अहे॑म य॒ज्ञं प॒थामु॑रा॒णा इ॒मां सु॑वृ॒क्तिं वृ॑षणा जुषेथाम् । श्रु॒ष्टी॒वेव॒ प्रेषि॑तो वामबोधि॒ प्रति॒ स्तोमै॒र्जर॑माणो॒ वसि॑ष्ठः ॥
स्वर सहित पद पाठअहे॑म । य॒ज्ञम् । प॒थाम् । उ॒रा॒णाः । इ॒माम् । सु॒ऽवृ॒क्तिम् । वृ॒ष॒णा॒ । जु॒षे॒था॒म् । श्रु॒ष्टी॒वाऽइ॑व । प्रऽइ॑षितः । वा॒म् । अ॒बो॒धि॒ । प्रति॑ । स्तोमैः॑ । जर॑माणः । वसि॑ष्ठः ॥
स्वर रहित मन्त्र
अहेम यज्ञं पथामुराणा इमां सुवृक्तिं वृषणा जुषेथाम् । श्रुष्टीवेव प्रेषितो वामबोधि प्रति स्तोमैर्जरमाणो वसिष्ठः ॥
स्वर रहित पद पाठअहेम । यज्ञम् । पथाम् । उराणाः । इमाम् । सुऽवृक्तिम् । वृषणा । जुषेथाम् । श्रुष्टीवाऽइव । प्रऽइषितः । वाम् । अबोधि । प्रति । स्तोमैः । जरमाणः । वसिष्ठः ॥ ७.७३.३
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 73; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ याजका वेदाध्ययनं कुर्युरित्युपदिश्यते।
पदार्थः
(उराणाः) हे वेदवाग्वक्तारो विद्वांसः ! यूयम् (इमाम् सुवृक्तिम्) इमां सुन्दरीं गिरं (जुषेथाम्) सेवध्वं (यज्ञम् पथाम्) यज्ञमार्गं (अहेम) वर्द्धयत अन्यच्च (वसिष्ठः) सर्वोत्तमगुणसम्पन्नः (श्रुष्टीवेव प्रेषितः) सर्वव्यापकः (वृषणा) समस्तमनोरथपूरकश्च परमात्मा (स्तोमैः जरमाणः) यो वेदवाणिभिर्वर्ण्यते, सः (वाम् प्रति) युष्मान् (अबोधि) बोधयतु ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
अब परमात्मा यज्ञकर्त्ता पुरुष को वेदाध्ययन का विधान करते हैं।
पदार्थ
(उराणाः) हे वेदवाणियों के वक्ता याज्ञिक लोगो ! तुम (इमां सुवृक्तिम्) इस सुन्दर वाणी को (जुषेथां) सेवन करते हुए (यज्ञं पथां अहेम) यज्ञ के मार्ग को बढ़ाओ और (वसिष्ठः) सर्वोत्तम गुणोंवाला (श्रुष्टीवेव प्रेषितः) सर्वत्र व्यापक और (वृषणा) सब कामनाओं को पूर्ण करनेवाला परमात्मा (स्तोमैः जरमाणः) जो वेदवाणियों द्वारा वर्णन किया जाता है, वह (वां प्रति) तुम्हारे प्रति (अबोधि) बोधन करे ॥३॥
भावार्थ
इस मन्त्र का भाव स्पष्ट है अर्थात् यज्ञनिधि परमात्मा याज्ञिक लोगों को उपदेश करते हैं कि तुम लोग वेदों का अध्ययन करते हुए यज्ञ की वृद्धि करो अर्थात् यज्ञ के सूक्ष्मांशों को वेद के अभ्यास द्वारा जानकर यज्ञविषयक उन्नति में प्रवृत्त होओ और सर्वगुणसम्पन्न तथा सब कामनाओं को पूर्ण करनेवाले परमात्मा की उपासना करते हुए प्रार्थना करो कि वह हमारी इस कामना को पूर्ण करे ॥३॥
विषय
उन के कर्तव्य और उपदेश ।
भावार्थ
हम लोग ( यज्ञम् उराणाः ) बहुत २ यज्ञ करते हुए (पथा) अपने जीवन के मार्ग की ( अहेम ) वृद्धि करें । हे ( वृषणा ) बलवान् स्त्री पुरुषो ! आप लोग इस ( सुवृक्तिम् ) सुखदायिनी सुमति का ( जुषेथा ) प्रेम पूर्वक सेवन करो। ( जरमाणः वसिष्ठः ) उपदेश करने हारा सर्वोत्तम वसु, पूर्ण ब्रह्मचारी विद्वान् पुरुष ( स्तोमैः ) नाना उपदेश योग्य वचनों से ( प्रेषितः श्रुष्ठीवा इव ) भेजे दूत के समान, ( प्रेषित: ) उत्तम इच्छा से युक्त ( श्रृष्टीवा ) श्रुति वचनों का ज्ञाता होकर (वाम् प्रति अबोधि) आप दोनों को ज्ञानवान् करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते । छन्दः—१, ५ विराट् त्रिष्टुप् । २, ३, निचृत् त्रिष्टुप् ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
विषय
ज्ञानी का उपदेश
पदार्थ
पदार्थ- हम लोग (यज्ञम् उराणा:) = यज्ञ करते हुए (पथाम्) = जीवन मार्गों की (अहेम) = वृद्धि करें। हे (वृषणा) = बलवान् स्त्री-पुरुषो! आप लोग इस (सुवृक्तिम्) = सुमति का जुषेथाम् सेवन करो। (जरमाणः वसिष्ठः) = उपदेश करने हारा, वसु, ब्रह्मचारी पुरुष (स्तोमै) = उपदेश-योग्य वचनों से (प्रेषितः श्रुष्टीवा इव) = भेजे दूत के समान, (प्रेषितः) = उत्तम इच्छा से युक्त (श्रुष्टीवा) = श्रुतिवचनों का ज्ञाता होकर (वाम् प्रति अबोधि) = आप दोनों को ज्ञानवान् करे ।
भावार्थ
भावार्थ- मनुष्य लोग नित्य प्रति यज्ञ करें। इससे सद्बुद्धि तथा ऐश्वर्य की वृद्धि तथा ज्ञानी लोगों की संगति प्राप्त होगी। इससे उनके वेद उपदेशों से ज्ञान की प्राप्ति होगी।
इंग्लिश (1)
Meaning
O mighty generous powers of the divine circuit of light, harbingers of energy and enlightenment, we extend the possibilities of yajna and follow the path of achievement wider and wider from the individual to society on the physical, mental and spiritual level. Listen and accept this homage and invitation to join us. The most enlightened high priest celebrating divinity with hymns of adoration is awake and, as on the waves of thought, comes and exhorts you.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्राचा भाव स्पष्ट आहे. अर्थात, यज्ञनिधी परमात्मा याज्ञिक लोकांना उपदेश करतो, की तुम्ही वेदाचे अध्ययन करीत यज्ञाची वृद्धी करा. अर्थात, यज्ञाच्या सूक्ष्मांशांना वेदाच्या अभ्यासाद्वारे जाणून यज्ञविषयक उन्नती करण्यात प्रवृत्त व्हा व सर्वगुणसंपन्न व सर्व कामनांना पूर्ण करणाऱ्या परमात्म्याची उपासना करीत प्रार्थना करा, की त्याने आमची ही कामना पूर्ण करावी. ॥३॥
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