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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 74 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 74/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अश्विनौ छन्दः - आर्षीभुरिग्बृहती स्वरः - मध्यमः

    यु॒वं चि॒त्रं द॑दथु॒र्भोज॑नं नरा॒ चोदे॑थां सू॒नृता॑वते । अ॒र्वाग्रथं॒ सम॑नसा॒ नि य॑च्छतं॒ पिब॑तं सो॒म्यं मधु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒वम् । चि॒त्रम् । द॒द॒थुः॒ । भोज॑नम् । न॒रा॒ । चोदे॑थाम् । सू॒नृता॑ऽवते । अ॒र्वाक् । रथ॑म् । सऽम॑नसा । नि । य॒च्छ॒त॒म् । पिब॑तम् । सो॒म्यम् । मधु॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युवं चित्रं ददथुर्भोजनं नरा चोदेथां सूनृतावते । अर्वाग्रथं समनसा नि यच्छतं पिबतं सोम्यं मधु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युवम् । चित्रम् । ददथुः । भोजनम् । नरा । चोदेथाम् । सूनृताऽवते । अर्वाक् । रथम् । सऽमनसा । नि । यच्छतम् । पिबतम् । सोम्यम् । मधु ॥ ७.७४.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 74; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (युवम्) हे विद्वांसः ! यूयं (चित्रम् भोजनम्) विविधानि भोजनानि (ददथुः) भक्षयत। (नरा) सर्वाः प्रजाः (सूनृतावते) सुन्दरस्तोत्रेषु युष्मान् (चोदेथाम्) प्रेरयन्तु, यतो भवन्तः (अर्वाक्) तेषां समक्षं (रथम्) सुवेदगिरः (समनसा) स्वभावेन (नियच्छतम्) प्रयुञ्जानाः (सोम्यम्) सुन्दरं (मधु) रसं (पिबतम्) पिबन्तु ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (युवं) हे विद्वानों ! तुम (चित्रं भोजनं) नाना प्रकार के भोजन (ददथुः) धारण=भक्षण करो। (नरा) सब प्रजाजन (सूनृतावते) सुन्दर स्तोत्रों में (चोदेथां) तुम्हें प्रेरित करें, ताकि तुम (अर्वाक् रथं) उनके सम्मुख उत्तम वेदवाणियों को (समनसा) अच्छे भावों से (नियच्छतं) प्रयोग करते हुए (सोम्यं) सुन्दर (मधु पिबतं) मीठे रसों का पान करो ॥२॥

    भावार्थ

    हे यजमानो ! तुम विद्वान् उपदेशकों को नाना प्रकार के भोजन और मीठे रसों का पान कराके प्रसन्न करो, ताकि वह सुन्दर वेदवाणियों का तुम्हारे प्रति उपदेश करें और वह तुम्हारे सम्मुख मानस यज्ञों द्वारा अनुष्ठान करके तुम्हें शान्ति का मार्ग बतलायें, जिससे तुम लोग परस्पर एक दूसरे की उन्नति करते हुए प्रजा में धर्म का प्रचार करो ॥२॥

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    विषय

    उत्तम नायकों, स्त्री-पुरुषों के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    हे (नरा ) उत्तम नायक जनो, उत्तम स्त्री पुरुषो ! ( युवं ) आप दोनों ( सूनृतावते) उत्तम सत्य वाणी, और अन्नसम्पत्ति से युक्त मनुष्य के हितार्थ ( चित्रं ) अद्भुत आश्चर्यकारक, और नाना प्रकार का ( भोजनं ) पालन करने का सामर्थ्य और भोगयोग्य उत्तम ऐश्वर्यं ( ददथु: ) प्रदान करो, और ( अर्वाक रथं चोदेथां ) अपने रमणीय व्यवहार, उत्तम उपदेश को रथ के समान आगे प्रेरित करो, उसको (समनसा नियच्छतम्) परस्पर एक चित्त होकर नियम में रक्खो और एक दूसरे के प्रति प्रदान करो । और ( सोम्यं मधु ) 'सोम' अर्थात् ओषधिरस से मिले मधु के समान अति गुणकारी, रोगनाशक, अन्न के समान पुष्टिकारक, ( सोम्यं मधु ) सोम अर्थात् राजपद के योग्य, ऐश्वर्यानुरूप मधुरं भोगों तथा सोम जीव, वा प्रभु के 'सोम' प्राण, वीर्य, 'सोम' पुत्र शिष्यादि तदनुरूप मधुर सुख का ( पिबतम् ) उपभोग करो और अन्यों को भी उस सुख का अनुभव कराओ ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १, ३ निचृद् बृहती । २, ४, ६ आर्षी भुरिग् बृहती । ५ आर्षी बृहती ॥ षडृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    राष्ट्र नायक का कर्त्तव्य

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (नरा) = उत्तम नायक जनो, उत्तम स्त्री पुरुषो ! (युवं) = आप दोनों (सूनृतावते) = उत्तम सत्यवाणी से युक्त मनुष्य के हितार्थ (चित्रं) = आश्चर्यकारक और नाना (भोजनं) = पालन-सामर्थ्य और भोग-योग्य उत्तम ऐश्वर्य (ददथुः) = प्रदान करो और (अर्वाक् रथं चोदेथां) = अपने रमणीय व्यवहार को रथ के समान आगे प्रेरित करो, उसको (समनसा नियच्छतम्) = एक चित्त होकर नियम में रक्खो और (सोम्यं मधु) = 'सोम' अर्थात् ओषधिरस से मिले मधु के समान अति गुणकारी, रोगनाशक अन्न के समान पुष्टिकारक, सोम अर्थात् राजपद के योग्य, ऐश्वर्यानुरूप मधुर भोग, मधुर सुख का (पिबतम्) = उपभोग करो।

    भावार्थ

    भावार्थ- उत्तम राष्ट्र नायक का कर्त्तव्य है कि वह राष्ट्र की प्रजाओं को पालन-पोषण हेतु उपभोग की सामग्री उपलब्ध करावे। मधुरतापूर्ण व्यवहार करे तथा सबको राजनियमों में चलावे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O leading lights of humanity, you provide wonderful food for the body, mind and soul, provide inspiration and incentive for the man of truth and rectitude. With an equal mind with us all, bring up your chariot, add to the joy of the community and share the honey sweets of peace and pleasure.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे यजमानांनो! तुम्ही विद्वान उपदेशकांना नाना प्रकारचे भोजन व मधुर रसाचे पान करवून प्रसन्न करा. कारण की त्यांनी चांगल्या वेदवाणीचा तुम्हाला उपदेश करावा व तुमच्यासमोर मानस यज्ञाद्वारे अनुष्ठान करून तुम्हाला शांतीचा मार्ग दाखवावा. त्यामुळे तुम्ही परस्पर उन्नती करून प्रजेत धर्माचा प्रचार करावा. ॥२॥

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