ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 26/ मन्त्र 5
ऋषिः - इध्मवाहो दाळर्हच्युतः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
तं साना॒वधि॑ जा॒मयो॒ हरिं॑ हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः । ह॒र्य॒तं भूरि॑चक्षसम् ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । सानौ॑ । अधि॑ । जा॒मयः॑ । हरि॑म् । हि॒न्व॒न्ति॒ । अद्रि॑ऽभिः । ह॒र्य॒तम् । भूरि॑ऽचक्षसम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तं सानावधि जामयो हरिं हिन्वन्त्यद्रिभिः । हर्यतं भूरिचक्षसम् ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । सानौ । अधि । जामयः । हरिम् । हिन्वन्ति । अद्रिऽभिः । हर्यतम् । भूरिऽचक्षसम् ॥ ९.२६.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 26; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(जामयः) इन्द्रियवृत्तयः (तम्) तस्य परमात्मनः (सानौ अधि) उन्नतोन्नतप्रदेशे (अद्रिभिः) स्वशक्तिभिः (हिन्वन्ति) प्रेरयन्ति यः (हरिम्) भक्तदुःखविहन्ता (हर्यतम्) प्रलयादिपरिणामेषु हेतुभूतः (भूरिचक्षसम्) सर्वज्ञश्चास्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(जामयः) इन्द्रियवृत्तियें (तम्) उस परमात्मा को (सानौ अधि) उच्च से उच्च प्रदेश में (अद्रिभिः) अपनी शक्तियों से (हिन्वन्ति) प्रेरणा करती हैं जो कि (हरिम्) भक्तों के दुःख को हरनेवाला और (हर्यतम्) प्रलयादि परिणामों में हेतुभूत तथा (भूरिचक्षसम्) सर्वज्ञ है ॥५॥
भावार्थ
उक्त परमात्मा ही जगत् के जन्मादिकों का हेतु है अर्थात् उसी से जगत् की उत्पत्ति, स्थिति तथा प्रलय होता है। वह परमात्मा हिमालय के उच्च से उच्च प्रदेशों में और सागर के गम्भीर से गम्भीर स्थानों में विराजमान है। उस सर्वज्ञ का साक्षात्कार चित्तवृत्ति- निरोधरूपी योगद्वारा ही हो सकता है, अन्यथा नहीं ॥५॥
विषय
हर्यतं भूरिचक्षसम्
पदार्थ
[१] (जामयः) = [जमतिः गतिकर्मा नि०] अपने कर्त्तव्य में लगे रहनेवाले गतिशील पुरुष (तम्) = उस (हरिम्) = सब रोगों का हरण करनेवाले सोम को (अद्रिभि:) = [आदृ- adore ] उपासनाओं के द्वारा (सानौ अधि) = शिखर प्रदेश में, मस्तिष्क में (हिन्वन्ति) = प्रेरित करते हैं । उपासना साधन बनती है, वासनाओं से बचने का इस प्रकार वासना विनाश साधन बनता है सोमरक्षण का । सुरक्षित सोम शरीर में ऊर्ध्वगतिवाला होता हुआ मस्तिष्क में पहुँचता है । यहाँ यह ज्ञानाग्नि को दीप्त कर देता है। [२] उस सोम को शिखर प्रदेश की ओर प्रेरित करते हैं, जो कि (हर्यतम्) = कमनीय है व हमें गतिमय बनानेवाला है तथा (भूरिचक्षसम्) = पालक व पोषक ज्ञानवाला है। यह हमें उस ज्ञान को प्राप्त कराता है जो कि हमारा पालक व पोषक बनता है।
भावार्थ
भावार्थ- सोम का रक्षण [क] क्रिया में लगे रहने से होता है, [ख] तथा उपासना द्वारा सुरक्षित सोम हमारे जीवन को कमनीय व ज्ञान- ज्योतिवाला बनाता है।
विषय
योग-समाधि द्वारा ज्योतिः स्वरूप प्रभु की प्राप्ति, साक्षात्कार।
भावार्थ
(सानौ अधि हरिं) उच्च पद पर विराजमान, अन्धकार के नाशक, सूर्य के समान तेजस्वी, स्वप्रकाश (हरिं) उस सर्व-दुःखहारी (सानौ अधि) सर्वोच्च पद पर विराजमान, (हर्यतं) परम कान्तिमान्, (भूरि-चक्षसं) बहुत से लोकों, जीवों के कर्मफलादि के देखने वाले, सर्वद्रष्टा परमेश्वर को (जामयः) उसके बन्धुवत् भक्त जन (अद्रिभिः) मेघवत् आनन्द रसवर्षक धर्ममेघ नामक समाधियों द्वारा (हिन्वन्ति) उस तक पहुंचते और उसकी स्तुति करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इध्मवाहो दार्ढच्युत ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३–५ निचृद गायत्री। २, ६ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Sages in unison, with their highest and most intense mental and spiritual faculties, adore, celebrate and realise that Soma on top of existence who is glorious and blissful, destroyer of suffering, and universal watcher, dispenser and disposer of the world of existence.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्माच जगाच्या जन्म इत्यादींचा हेतू आहे. अर्थात् त्याच्याकडूनच जगाची उत्पत्ती, स्थिती व प्रलय होतो. तो परमात्मा हिमालयाच्या उंचाहून उंच प्रदेशात व सागराच्या गंभीरहून गंभीर स्थानात विराजमान आहे. त्या सर्वज्ञाचा साक्षात्कार चित्तवृत्ती निरोधरूपी योगाद्वारेच होऊ शकतो, अन्यथा नाही. ॥५॥
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