ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 26/ मन्त्र 6
ऋषिः - इध्मवाहो दाळर्हच्युतः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
तं त्वा॑ हिन्वन्ति वे॒धस॒: पव॑मान गिरा॒वृध॑म् । इन्द॒विन्द्रा॑य मत्स॒रम् ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । त्वा॒ । हि॒न्व॒न्ति॒ । वे॒धसः॑ । पव॑मान । गि॒रा॒ऽवृध॑म् । इन्दो॒ इति॑ । इन्द्रा॑य । म॒त्स॒रम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तं त्वा हिन्वन्ति वेधस: पवमान गिरावृधम् । इन्दविन्द्राय मत्सरम् ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । त्वा । हिन्वन्ति । वेधसः । पवमान । गिराऽवृधम् । इन्दो इति । इन्द्राय । मत्सरम् ॥ ९.२६.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 26; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 6
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमान) हे सर्वस्य पावितः परमात्मन् ! (तम् गिरावृधम्) पूर्वोक्तगुणसम्पन्नं वेदवाग्भिः प्रकाशमानं (त्वा) भवन्तं (वेधसः) विद्वांसः (हिन्वन्ति) साक्षात्कुर्वन्ति। (इन्दो) हे परमैश्वर्य्यसम्पन्न भगवन् ! यो भवान् (इन्द्राय) अज्ञानिजीवेभ्यः (मत्सरम्) अत्यन्तगूढोऽस्ति ॥६॥ इति षड्विंशतितमं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (तम् गिरावृधम्) उस पूर्वोक्तगुणसम्पन्न और वेदवाणियों से प्रकाशमान (त्वा) आपको (वेधसः) विद्वान् लोग (हिन्वन्ति) साक्षात्कार करते हैं। (इन्दो) हे परमैश्वर्य्यसम्पन्न भगवन् ! आप (इन्द्राय मत्सरम्) अज्ञानी जीव के लिये अत्यन्त गूढ़ हो ॥६॥ परमात्मा के साक्षात्कार करने के लिये मनुष्य को संयमी होना आवश्यक है। जो पुरुष संयमी नहीं होता, उसको परमात्मा का साक्षात्कार कदापि नहीं होता। संयम मन वाणी तथा शरीर तीनों का कहलाता है। मन के संयम का नाम शम और वाणी के संयम का नाम वाक्संयम और इन्द्रियों के संयम का नाम दम है। इस प्रकार जो पुरुष अपनी इन्द्रियों को संयम में रखता है और अपने मन को संयम में रखता है तथा व्यर्थ बोलता नहीं, किन्तु वाणी को संयम में रखता है, वह पुरुष संयमी तथा दमी कहलाता है। इसका वर्णन शतपथब्राह्मण में विस्तारपूर्वक है। वहाँ यह लिखा है कि देव और असुर में यहीं भेद है कि देव दमी अर्थात् इन्द्रियों को दमन करनेवाले मनुष्यवर्ग का नाम है और इन्द्रियारामी विषयपरायण लोगों का नाम असुर है। उक्त मन्त्र में परमात्मा ने यह उपदेश किया है कि हे मनुष्यों ! तुम इन्द्रियारामी और अज्ञानी मत बनो, किन्तु तुम विद्वान् बनकर संयमी बनो, यही मनुष्यजन्म का फल है ॥६॥
भावार्थ
यह छब्बीसवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
इन्द्राय मत्सरम्
पदार्थ
[१] (वेधसः) = [a learned man ] ज्ञानी पुरुष, हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले सोम ! (तं त्वा) = उस तुझको (हिन्वन्ति) = अपने अन्दर, मस्तिष्क की ओर प्रेरित करते हैं। जो तू (गिरावृधम्) = ज्ञान की वाणियों से वृद्धि को प्राप्त होता है। ज्ञान की वाणियों में लगे रहने से हम सोम को सुरक्षित करनेवाले होते हैं । [२] हे (इन्दो) = सोम ! उस तुझको हम शरीर में ही प्रेरित करते हैं तो तू (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (मत्सरम्) = आनन्द का संचार करनेवाला है । सोमरक्षण करनेवाला पुरुष कभी निराश व उदास नहीं होता ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम जितेन्द्रिय पुरुष के जीवन को आनन्दमय बनाता है। यह सोमरक्षक ज्ञानी पुरुष सर्वहित में प्रवृत्त हुआ हुआ 'नृमेध' यज्ञ को करनेवाला 'नृमेध' ही बन जाता है। यह सोम की महिमा का वर्णन करता हुआ कहता है कि-
विषय
उसी की उपासना, स्तुति, प्रार्थना आदि।
भावार्थ
हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! हे (पवमान) परम पावन ! (इन्द्राय) तुझे साक्षात् देखने वाले जीव को (मत्सरम्) आनन्द से तृप्त करने वाले (गिरावृधम्) वाणी से स्तुति करने योग्य (तं त्वा) उस तुझ को (वेधसः) विद्वान् लोग (हिन्वन्ति) स्तुति करते हैं। इति षोडशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इध्मवाहो दार्ढच्युत ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३–५ निचृद गायत्री। २, ६ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, universal spirit of beauty and bliss, pure, purifying and ever flowing, so glorious as you are celebrated in songs of the universal Vedic eternity, self- realised sages adore and exalt you for the joy and ultimate salvation of the human soul.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराच्या साक्षात्कारासाठी माणसाला संयमी होणे आवश्यक आहे. जो पुरुष संयमी नसतो त्याला परमेश्वराचा साक्षात्कार कधीही होत नाही. संयम हा मन, वाणी, शरीर, तिन्हींचा असतो. मनाच्या संयमाचे नाव शम व वाणीच्या संयमाचे नाव वाक्संयम व इंद्रियांच्या संयमाचे नाव दम आहे. या प्रकारे जो पुरुष आपल्या इंद्रियांवर संयम ठेवतो व आपल्या मनावर संयम ठेवतो व व्यर्थ बोलत नाही तर वाणीवर संयम ठेवतो तो पुरुष संयमी व दमी म्हणविला जातो. याचे वर्णन शतपथ ब्राह्मणात विस्तारपूर्वक केलेले आहे. तेथे असे लिहिलेले आहे की देव व असुरात हाच भेद आहे की देव दमी अर्थात इंद्रियांचे दमन करणाऱ्या माणसांचे नाव आहे व इंद्रियरामी विषय परायण लोकांचे नाव असुर आहे वरील मंत्रात परमेश्वराने हा उपदेश केलेला आहे की हे माणसांनो! तुम्ही इंद्रियरामी व अज्ञानी बनू नका. तुम्ही विद्वान बनून संयमी बना हेच मनुष्य जन्माचे फळ आहे. ॥६॥
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