ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 46/ मन्त्र 4
आ धा॑वता सुहस्त्यः शु॒क्रा गृ॑भ्णीत म॒न्थिना॑ । गोभि॑: श्रीणीत मत्स॒रम् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । धा॒व॒त॒ । सु॒ऽह॒स्त्यः॒ । शु॒क्रा । गृ॒भ्णी॒त॒ । म॒न्थिना॑ । गोभिः॑ । श्री॒णी॒त॒ । म॒त्स॒रम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ धावता सुहस्त्यः शुक्रा गृभ्णीत मन्थिना । गोभि: श्रीणीत मत्सरम् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । धावत । सुऽहस्त्यः । शुक्रा । गृभ्णीत । मन्थिना । गोभिः । श्रीणीत । मत्सरम् ॥ ९.४६.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 46; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सुहस्त्यः) हे कर्मकुशलहस्ता विद्वांसः ! यूयं (आ धावत) ज्ञाने सन्नद्धा भवत (मन्थिना) यन्त्रैः (शुक्रा गृभ्णीत) बलवतः पदार्थान् साधयत (गोभिः) रश्मिमद्भिर्विद्युदादिपदार्थैः (मत्सरम्) आह्लादकारकान् पदार्थान् (श्रीणीत) सुदृढान् कृत्वा प्रकाशयत ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सुहस्त्यः) हे क्रियाकुशल हस्तोंवाले विद्वानों ! आप (आ धावत) ज्ञान की ओर लगकर (मन्थिना) यन्त्र द्वारा (शुक्रा गृभ्णीत) बलवाले पदार्थों को सिद्ध कीजिये (गोभिः) और रश्मियुक्त विद्युदादि पदार्थों द्वारा (मत्सरम्) आह्लादकारक पदार्थों को (श्रीणीत) सुदृढ़ करके प्रकाशित कीजिये ॥४॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि वे कर्म्मयोगियों से प्रार्थना करके अपने देश के क्रिया-कौशल की वृद्धि करें ॥४॥
विषय
ज्ञान द्वारा सोम का उचित परिपाक
पदार्थ
[१] हे (सुहस्त्यः) = शोभन कर्मों में प्रवृत्त पुरुषो! [ शोभनौ हस्तौ येषां ] (आ धावता) = इस सोम को समन्तात् शुद्ध करो। (मन्थिना) = ग्रन्थों का मन्थन करनेवाले के साथ, अर्थात् ज्ञानचर्चा में आसीन होकर, (शुक्रा) = सोम का (गृभ्णीत) = ग्रहण करो । ज्ञानचर्चा में लगे रहना सोमरक्षण का सर्वोत्तम मार्ग है। [२] (गोभिः) = इन ज्ञान की वाणियों के द्वारा (मत्सरम्) = आनन्द को सञ्चरित करनेवाले इस सोम को (श्रीणीत) = परिपक्व करो। ज्ञान में लगे रहने से ही इस सोम में विकार नहीं आते और इसका ठीक परिपाक होता है ।
भावार्थ
भावार्थ-यज्ञादि कर्मों में लगे रहकर व ज्ञानचर्चा में प्रवृत्त रहकर हम सोम का रक्षण व ठीक परिपाक करें ।
विषय
वीरों और ब्रह्मचारियों को समान वाक्य से आगे बढ़ने और वीर्य-रक्षा का उपदेश।
भावार्थ
हे (सुहस्त्यः) उत्तम हस्तवान्, सिद्धहस्त, कुशल पण्डित जनो ! हे उत्तम हनन साधनों से सम्पन्न वीरो ! आप लोग (आ धावत) आगे बढ़ो। अपने को पवित्र करो और (मन्थिना) शत्रुओं वा विघ्नों का मथन कर देने वाले गुरु वा सेनापति के साथ मिल कर (शुक्रा गृभ्णीत) बलों, वीर्यों और शुद्धाचारों, ज्ञानों तथा ऐश्वर्यो को ग्रहण करो। और (गोभिः मत्सरम् श्रीणीत) गोरस, दुग्ध से तृप्तिकारक अन्न मिला कर सेवन करो, वाणियों द्वारा आनन्दकंद भगवान् की स्तुति करो। (गोभिः) भूमियों द्वारा (मत्सरं) तृप्तिकारक अन्न प्राप्त करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अयास्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता। छन्द:- १ ककुम्मती गायत्री। २, ४, ६ निचृद् गायत्री। ३, ५ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Experts of noble hand and versatile mind, come, take hold of the pure and powerful materials with specialised tools and, with tempering mix and refinement, create the instruments of joyous social development.
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी कर्मयोग्याची प्रार्थना करून आपल्या देशाच्या क्रियाकौशल्याची वृद्धी करावी. ॥४॥
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