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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 46 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 46/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अयास्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    स प॑वस्व धनंजय प्रय॒न्ता राध॑सो म॒हः । अ॒स्मभ्यं॑ सोम गातु॒वित् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । प॒व॒स्व॒ । ध॒न॒म्ऽज॒य॒ । प्र॒ऽय॒न्ता । राध॑सः । म॒हः । अ॒स्मभ्य॑म् । सो॒म॒ । गा॒तु॒ऽवित् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स पवस्व धनंजय प्रयन्ता राधसो महः । अस्मभ्यं सोम गातुवित् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । पवस्व । धनम्ऽजय । प्रऽयन्ता । राधसः । महः । अस्मभ्यम् । सोम । गातुऽवित् ॥ ९.४६.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 46; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (धनञ्जय) हे स्वोपासकधनानां वर्धयितः ! (गातुवित्) हे उपदेशकेषूत्तम ! (सः) एवम्भूतानां विदुषामुत्पादको भवान् (महः राधसः) महत ऐश्वर्यस्य (प्रयन्ता) प्रदातास्ति। (सोम) हे परमात्मन् ! (अस्मभ्यम्) अस्मभ्यं (पवस्व) सर्वमभीष्टं देहि ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (धनञ्जय) हे अपने उपासकों के धन को बढ़ानेवाले ! (गातुवित्) हे उपदेशकों में श्रेष्ठ ! (सः) ऐसे विद्वानों के उत्पादक आप (महः राधसः) बड़े भारी ऐश्वर्य के (प्रयन्ता) प्रदाता हैं (सोम) हे परमात्मन् ! (अस्मभ्यम्) आप हमारे लिये (पवस्व) सब अभीष्ट प्रदान कीजिये ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा की कृपा से सदुपदेशक उत्पन्न होकर देश में सदुपदेश देकर देश का कल्याण करते हैं ॥५॥

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    विषय

    'गातुवित्' सोम

    पदार्थ

    [१] हे (धनञ्जय) = हमारे लिये सब आवश्यक धनों का विजय करनेवाले सोम ! (सः) = वह तू (पवस्व) = हमें प्राप्त हो, हमारे जीवन को पवित्र कर । तू (महः राधसः) = उत्कृष्ट कार्यसाधक धन का (प्रयन्ता) = देनेवाला है । सोमरक्षण करनेवाला सदा उत्तम मार्गों से धनों का विजय करनेवाला बनता है । [२] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (गातुवित्) = मार्ग को प्राप्त करानेवाला है। हमारे लिये मार्ग का तू ज्ञान देनेवाला है। भावार्थ- सोमरक्षण से शक्ति में वृद्धि होकर हम सांसारिक अभ्युदय को प्राप्त करते हैं। इससे ज्ञान में वृद्धि होकर हम मार्ग को देखनेवाले बनते हैं ।

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    विषय

    ऐश्वर्यवान्, धनदाता के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (धनञ्जय) ऐश्वर्य का विजय करने वाले ! हे (सोम) ऐश्वर्यवन्! (सः) वह तू (अस्मभ्यम्) हमें (महः राधसः प्रयन्ता) बड़े भारी धन का दाता और (गातुवित्) भूमि, ज्ञानोपदेश और मार्ग का बतलाने वाला होकर (पवस्व) हम पर कृपा कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अयास्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता। छन्द:- १ ककुम्मती गायत्री। २, ४, ६ निचृद् गायत्री। ३, ५ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, lord of joy and noble knowledge, winner of wealth and holy power, creator of great infrastructure for development, pure and powerful expert of the paths of history and social development, pray let the streams of peace and joy flow for us.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराच्या कृपेने सदुपदेशक उत्पन्न होऊन देशात सदुपदेश करून देशाचे कल्याण करतात. ॥५॥

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