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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 65 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 16
    ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    राजा॑ मे॒धाभि॑रीयते॒ पव॑मानो म॒नावधि॑ । अ॒न्तरि॑क्षेण॒ यात॑वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    राजा॑ । मे॒धाभिः॑ । ई॒य॒ते॒ । पव॑मानः । म॒नौ । अधि॑ । अ॒न्तरि॑क्षेण । यात॑वे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    राजा मेधाभिरीयते पवमानो मनावधि । अन्तरिक्षेण यातवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    राजा । मेधाभिः । ईयते । पवमानः । मनौ । अधि । अन्तरिक्षेण । यातवे ॥ ९.६५.१६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 16
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (राजा) राजते प्रकाशत इति राजा सर्वप्रकाशकः परमात्मा (मेधाभिः) बुद्धिभिः (ईयते) प्राप्यते। परमात्मा (पवमानः) सर्वपवितास्ति। तथा (मनावधि) यज्ञेषु पवित्रतासम्पादकोऽस्ति। (अन्तरिक्षेण यातवे) अथ च परलोकयात्रायां सहायकोऽस्ति ॥१६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (राजा) परमात्मा (मेधाभिः) बुद्धि से (ईयते) प्राप्त होता है, (पवमानः) सबको पवित्र करनेवाला है, (मनावधि) यज्ञों में पवित्रता देनेवाला है तथा (अन्तरिक्षेण यातवे) परलोकयात्रा में सहायक है ॥१६॥

    भावार्थ

    आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक इत्यादि सब यज्ञों में परमात्मा ही यज्ञदेव है और यज्ञ को पवित्र करनेवाला है तथा परलोकयात्रा में जीव का एकमात्र सहारा परमात्मा ही है। उक्त गुणसम्पन्न परमात्मा की उपासना एकमात्र संस्कृत बुद्धि द्वारा ही करनी चाहिये ॥१६॥

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    विषय

    मेधा - पवित्रता - मध्यमार्ग

    पदार्थ

    [१] (राजा) = हमारे जीवन का रञ्जन करनेवाला यह सोम 'राजा प्रकृतिरञ्जनात्' (मेधाभिः) = मेधा बुद्धियों के साथ (ईयते) = हमारे अन्दर गतिवाला होता है । यह सोम (मनौ अधि) = विचारशील पुरुष में (पवमानः) = पवित्रता को करनेवाला है। सोम 'राजा' है, यही हमारे जीवनों में आनन्द व उल्लास [रञ्जन] का कारण बनता है। सुरक्षित हुआ हुआ यह हमें मेधाबुद्धि से युक्त करता है। तथा हमारे जीवनों को पवित्र करता है। [२] यह सोम 'अन्तरिक्षेण यातवे'- सदा मध्यमार्ग से चलने के लिये होता है । सोमरक्षण से मनुष्य की प्रवृत्ति, अति को छोड़कर, युक्ताहार-विहारवाली व युक्तचेष्ट बनती है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से 'बुद्धि पवित्रता व मध्यमार्ग से चलने की वृत्ति' प्राप्त होती है ।

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    विषय

    सेनापति और राजा का सर्वोपरि प्रयाण योग्य होना।

    भावार्थ

    (मनौ अधि पवमानः) मननशील मनुष्य समूह या राष्ट्र को स्तम्भित, व्यवस्थित करने वाले सैन्यबल के ऊपर सेनापति-पद पर आता हुआ (राजा) तेजस्वी पुरुष, राजा (मेधाभिः) पवित्र यज्ञ, सत्संग आदि क्रियाओं, शत्रु हिंसक सेनाओं और उत्तम बुद्धियों सहित (ईयते) आगे बढ़ता और (अन्तरिक्षेण यातवे) आकाश-मार्ग से सूर्य के समान सर्वोपरि मार्ग से जाने के लिये समर्थ होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Refulgent Soma, divine spirit of power and peace, pure, purifying and vibrant, is attained through intelligential communion in meditation for reaching the higher stages of existence into the middle sphere between the earth and the highest regions of bliss.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    आध्यात्मिक, आधिभौतिक व आधिदैविक इत्यादी सर्व यज्ञात परमात्माच यज्ञदेव आहे व याजकांना पवित्र करणारा आहे तसेच परलोकयात्रेत जीवाचा एकमेव आधार आहे. वरील गुणसंपन्न परमात्म्याची उपासना संस्कृत बुद्धीद्वारेच केली पाहिजे. ॥१६॥

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