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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1214
    ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    29

    म꣣हो꣡ नो꣢ रा꣣य꣡ आ भ꣢꣯र꣣ प꣡व꣢मान ज꣣ही꣡ मृधः꣢꣯ । रा꣡स्वे꣢न्दो वी꣣र꣢व꣣द्य꣡शः꣢ ॥१२१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म꣡हः꣢꣯ । नः꣣ । रायः꣢ । आ । भ꣣र । प꣡व꣢꣯मान । ज꣡हि꣢ । मृ꣡धः꣢꣯ । रा꣡स्व꣢꣯ । इ꣣न्दो । वीर꣡व꣢त् । य꣡शः꣢꣯ ॥१२१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    महो नो राय आ भर पवमान जही मृधः । रास्वेन्दो वीरवद्यशः ॥१२१४॥


    स्वर रहित पद पाठ

    महः । नः । रायः । आ । भर । पवमान । जहि । मृधः । रास्व । इन्दो । वीरवत् । यशः ॥१२१४॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1214
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमात्मा तथा वीर मनुष्य से प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    हे (पवमान) क्रियाशील परमात्मन् वा वीर मनुष्य ! आप (नः) हमारे लिए (महः रायः) महान् धनों को (आ भर) लाओ, (मृधः) हिंसक शत्रुओं को (जहि) विनष्ट करो। हे (इन्दो) तेज से प्रदीप्त परमात्मन् वा वीर मनुष्य ! आप (वीरवत् यशः) वीरों जैसा यश (रास्व) हमें प्रदान करो ॥२॥

    भावार्थ

    संसार में परमात्मा की कृपा को प्राप्त वीर मनुष्य ही धन, धान्य और कीर्ति के सुखों को भोगने तथा भुगाने में और शत्रुओं को जीतने में समर्थ होते हैं ॥२॥

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    पदार्थ

    (इन्दो पवमान) हे आनन्दरसपूर्ण धारारूप में प्राप्त होने वाले परमात्मन्! तू (नः) हमारे लिये (महः-रायः) महती—ऊँची सम्पत्तियाँ जीवन्मुक्तों वाली (आभर) आभरित कर (मृधः जहि) हमारे प्रति अन्यों के पापों को नष्ट कर (वीरवत्-यशः-रास्व) स्वात्माधार बलवाले यश को प्रदान कर॥२॥

    विशेष

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    विषय

    ज्ञान, काम विजय, वीरता व यश

    पदार्थ

    हे (पवमान) = हम सबके जीवनों को पवित्र करनेवाले प्रभो ! १. (नः) = हमें (महे राये) = महत्त्वपूर्ण ऐश्वर्य के लिए, अर्थात् ज्ञानरूप ऐश्वर्य के लिए (आभर) = प्राप्त कराइए । २. इस ज्ञानैश्वर्य की प्राप्ति के लिए ही (मृधः) = कामादि हिंसक वृत्तियों को (जही) = नष्ट कीजिए । ३. हे (इन्दो) = परमैश्वर्यशाली, सर्वशक्तिमन् प्रभो! [इदि परमैश्वर्ये, इन्द्=to be powerful] (वीरवद् यशः) = वीरता से युक्त यश - हमें दीजिए । (रास्व) = काम ज्ञान पर सदा आवरण डाले रखता है। इस आवरण के हटने पर ही ज्ञान की दीप्ति चमकती है और मनुष्य उत्तम लोकहित के कार्यों को करता हुआ वीरता पूर्ण यश को प्राप्त करता है।

    भावार्थ

    हम ज्ञानी बनें, काम पर विजय पाएँ, वीर व यशस्वी हों ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे (पवमान) हे सबको पवित्र करने हारे परमात्मन् ! (नः) हमें (रायः) नाना प्रकार की धन धान्य सम्पदाएं (आ भर) प्राप्त करा। (मृधः) हिंसक शत्रुओं को (जहि) नाश कर। हे (इन्दो) ऐश्वर्यशील हमें (वीरवत्) पुत्र पौत्रों से युक्त (यशः) यश और सम्पत्ति का (रास्व) दान कर।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ प्रतर्दनो दैवोदामिः। २-४ असितः काश्यपो देवलो वा। ५, ११ उचथ्यः। ६, ७ ममहीयुः। ८, १५ निध्रुविः कश्यपः। ९ वसिष्ठः। १० सुकक्षः। १२ कविंः। १३ देवातिथिः काण्वः। १४ भर्गः प्रागाथः। १६ अम्बरीषः। ऋजिश्वा च। १७ अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः। १८ उशनाः काव्यः। १९ नृमेधः। २० जेता माधुच्छन्दसः॥ देवता—१-८, ११, १२, १५-१७ पवमानः सोमः। ९, १८ अग्निः। १०, १३, १४, १९, २० इन्द्रः॥ छन्दः—२-११, १५, १८ गायत्री। त्रिष्टुप्। १२ जगती। १३ बृहती। १४, १५, १८ प्रागाथं। १६, २० अनुष्टुप् १७ द्विपदा विराट्। १९ उष्णिक्॥ स्वरः—२-११, १५, १८ षड्जः। १ धैवतः। १२ निषादः। १३, १४ मध्यमः। १६,२० गान्धारः। १७ पञ्चमः। १९ ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मानं वीरं जनं च प्रार्थयते।

    पदार्थः

    हे (पवमान) क्रियाशील परमात्मन् वीर मनुष्य वा ! [पवते गतिकर्मा। निघं० २।१४।] त्वम् (नः) अस्मभ्यम् (महः रायः) महान्ति धनानि (आ भर) आहर, (मृधः) हिंसकान् शत्रून् (जहि) विनाशय। हे (इन्दो) तेजसा देदीप्त परमात्मन् वीर मानव वा ! (वीरवद् यशः) वीरसदृशीं कीर्तिम् (रास्व) अस्मभ्यं प्रयच्छ। [रा दाने अदादिः, आत्मनेपदं छान्दसम्] ॥२॥

    भावार्थः

    जगति परमात्मकृपावन्तो वीरा एव धनधान्यकीर्तिसुखानि भोक्तुं भोजयितुं च शत्रून् विजेतुं च क्षमन्ते ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।६१।२६।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, fill us with great riches, and destroy our foes. O Glorious God, grant us fame with manly sons !

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    Meaning

    Lord Supreme of beauty, splendour and grace, pure and purifying, ever awake, bring us wealth of the highest order, eliminate the destructive adversaries and bless us with honour, excellence and fame, and continue the human family with noble and brave generations. (Rg. 9-61-26)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (इन्दो पवमान) હે આનંદરસપૂર્ણ ધારારૂપમાં પ્રાપ્ત થનાર પરમાત્મન્ ! તું (नः) અમારે માટે (महः रायः) મહાન શ્રેષ્ઠ સંપત્તિઓ જીવન મુક્તોવાળો (आभर) આભરિત કર-પ્રાપ્ત કરાવ. (मृधः जहि) અમારા પ્રત્યેની પાપી મનોવૃત્તિને નષ્ટ કર (वीरवत् यशः रास्व) સ્વ આત્માધાર બળવાળા યશને પ્રદાન કર. (૨)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जगात परमात्म्याच्या कृपेने वीर माणसेच धन, धान्य व कीर्तीचे सुख भोगण्या व भोगविण्यात तसेच शत्रूंना जिंकण्यास समर्थ होतात. ॥२॥

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