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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1227
    ऋषिः - उचथ्य आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    43

    दि꣣वः꣢ पी꣣यू꣡ष꣢मुत्त꣣म꣢꣫ꣳ सोम꣣मि꣡न्द्रा꣢य व꣣ज्रि꣡णे꣢ । सु꣣नो꣢ता꣣ म꣡धु꣢मत्तमम् ॥१२२७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दि꣣वः꣢ । पी꣣यू꣡ष꣢म् । उ꣣त्तम꣢म् । सो꣡म꣢꣯म् । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । व꣣ज्रि꣡णे꣢ । सु꣣नो꣡त꣢ । म꣡धु꣢꣯मत्तमम् ॥१२२७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दिवः पीयूषमुत्तमꣳ सोममिन्द्राय वज्रिणे । सुनोता मधुमत्तमम् ॥१२२७॥


    स्वर रहित पद पाठ

    दिवः । पीयूषम् । उत्तमम् । सोमम् । इन्द्राय । वज्रिणे । सुनोत । मधुमत्तमम् ॥१२२७॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1227
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में फिर ब्रह्मानन्द-रस का विषय है।

    पदार्थ

    हे उपासको ! तुम (दिवः) प्रकाशमान परमात्मा के पास से (पीयूषम्) अमृतरूप, (उत्तमम्) सर्वोत्कृष्ट, (मधुमत्तमम्) अतिशय मधुर (सोमम्) आनन्द-रस को (वज्रिणे इन्द्राय) वीर जीवात्मा के लिए (सुनोत) अभिषुत करो ॥३॥

    भावार्थ

    अमृतरूप, अत्यन्त मधुर, ब्रह्मानन्द की महिमा जानकर भला कौन उसकी आकाङ्क्षा नहीं करेगा ॥३॥

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    पदार्थ

    (दिवः-उत्तमं पीयूषं मधुमत्तमं सोमम्) मोक्षधाम के स्वत्त्वरूप उत्तम अमृत अत्यन्त मधुर शान्तस्वरूप परमात्मा को (वज्रिणे-इन्द्राय) ओजस्वी४ आत्मा के लिये (सुनोत) हे उपासको साक्षात् करो॥३॥

    विशेष

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    विषय

    स्वर्ग का अमृत

    पदार्थ

    (सोमम्) = सोम को (सुनोत) = अपने अन्दर अभिषुत करो - उत्पन्न करो, जो सोमः – १. (दिवः पीयूषम्) = स्वर्ग का अमृत है। प्रसिद्धि है कि स्वर्गलोक में रहनेवाले देव अमृत का पान करते हैं । अमृतपान से ही वे अमर हैं— मृत्यु से ऊपर हैं। शरीर में उत्पन्न होनेवाला यह सोम ही अमृत हैइसका पान यही है कि इसे शरीर में ही व्याप्त करना । इसी का परिणाम स्वर्ग में निवास होता है। जीवन नीरोग रह, सुखी बनता है और मनुष्य रोगों से असमय में ही मर नहीं जाता । २. (उत्तमम्) = सोम उत्तम है—उत्+तम। मनुष्य को अधिक से अधिक उत्कर्ष तक ले जानेवाला है। इसकी रक्षा से जहाँ शरीर नीरोग और सबल बनता है, वहाँ बुद्धि सूक्ष्म होकर ज्ञान भी बहुत विशाल हो जाता है। ३. (मधुमत्तमम्) = यह सोम मन को पवित्र और राग-द्वेषादि से रहित करके जीवन को बड़े माधुर्यवाला बना देता है ।

    इस सोम को शरीर में इसलिए उत्पन्न करो कि ४. इन्द्राय यह आत्मा की शक्ति के विकास के लिए होता है। जीवात्मा को इन्द्रियों पर प्रभुत्ववाला बनाता है और इस प्रकार वह सचमुच ‘इन्द्र' बनता है ५. सोम को इसलिए भी उत्पन्न करो कि वज्रिणे = यह हमारे शरीर को वज्र-तुल्य बनाए। सोम शरीर को नीरोग व दृढ़ बनाता है।

    भावार्थ

    सोम स्वर्ग का अमृत है— सुरक्षित होकर यह हमारे जीवन को उत्तम बनाता है।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुषो ! आप लोग (दिवः पीयूषम्) आकाश को आनन्द से भर देने वाले, चन्द्रालोक के समान अति आह्लादजनक, ज्ञानस्वरूप प्रकाश के (पीयूषम्) अमृतरसस्वरूप, (मधुमत्तम्) अति मधुर, आनन्दकारी, (सोमम्) ब्रह्मानन्दरस को (वज्रिणे) ज्ञान और वैराग्य रूप वज्र के धारण करने हारे (इन्द्राय) आत्मा के लिये (सुनोत) उत्पन्न करे।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ प्रतर्दनो दैवोदामिः। २-४ असितः काश्यपो देवलो वा। ५, ११ उचथ्यः। ६, ७ ममहीयुः। ८, १५ निध्रुविः कश्यपः। ९ वसिष्ठः। १० सुकक्षः। १२ कविंः। १३ देवातिथिः काण्वः। १४ भर्गः प्रागाथः। १६ अम्बरीषः। ऋजिश्वा च। १७ अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः। १८ उशनाः काव्यः। १९ नृमेधः। २० जेता माधुच्छन्दसः॥ देवता—१-८, ११, १२, १५-१७ पवमानः सोमः। ९, १८ अग्निः। १०, १३, १४, १९, २० इन्द्रः॥ छन्दः—२-११, १५, १८ गायत्री। त्रिष्टुप्। १२ जगती। १३ बृहती। १४, १५, १८ प्रागाथं। १६, २० अनुष्टुप् १७ द्विपदा विराट्। १९ उष्णिक्॥ स्वरः—२-११, १५, १८ षड्जः। १ धैवतः। १२ निषादः। १३, १४ मध्यमः। १६,२० गान्धारः। १७ पञ्चमः। १९ ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरप्यानन्दरसविषय उच्यते।

    पदार्थः

    हे उपासकाः ! यूयम् (दिवः) द्युतिमतः परमात्मनः सकाशात् (पीयूषम्) अमृतरूपम्, (उत्तमम्) सर्वोत्कृष्टम्, (मधुमत्तमम्) अतिशयेन मधुरम् (सोमम्) आनन्दरसम् (वज्रिणे इन्द्राय) वीराय जीवात्मने। [वीर्यं वै वज्रः। श० ७।३।१।१९।] (सुनोत) सुनुत। [तप्तनप्तनथनाश्च। अ० ७।१।४५ इति तस्य तबादेशः, पित्वात् ङित्वाभावेन गुणनिषेधो न] ॥३॥

    भावार्थः

    अमृतरूपस्य मधुरमधुरस्य ब्रह्मानन्दस्य महिमानं ज्ञात्वा कस्तं नाकाङ्क्षेत् ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।५१।२।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O learned persons, pour out for the soul, armed with knowledge and asceticism, the sweetest, gladdening nectar of God's bliss!

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    Meaning

    Create the highest honey sweet Soma of divine consciousness, highest exhilarating experience of the light of heaven for the souls awareness, and then rise to adamantine power against all possible violations. (Rg. 9-51-2)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (दिवः उत्तमं पीयूषं मधुमत्तमं सोमम्) મોક્ષધામના સ્વત્વરૂપ ઉત્તમ અમૃત અત્યંત મઘુર શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્માને (वज्रिणे इन्द्राय) ઓજસ્વી આત્માને માટે (सुनोत) હે ઉપાસકો સાક્ષાત્ કરો. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    अमृतरूप अत्यंत मधुर ब्रह्मानंदाची महिमा जाणून कोण त्याची आकांक्षा करणार नाही? ॥३॥

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