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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1355
    ऋषिः - प्रगाथः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    64

    प꣣दा꣢ प꣣णी꣡न꣢रा꣣ध꣢सो꣣ नि꣡ बा꣢धस्व म꣣हा꣡ꣳ अ꣢सि । न꣢꣫ हि त्वा꣣ क꣢श्च꣣ न꣡ प्रति꣢꣯ ॥१३५५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पदा꣢ । प꣣णी꣢न् । अ꣣राध꣡सः꣢ । अ꣣ । राध꣡सः꣢ । नि । बा꣣धस्व । महा꣢न् । अ꣣सि । न꣢ । हि । त्वा꣣ । कः꣢ । च꣣ । न꣢ । प्र꣡ति꣢꣯ ॥१३५५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पदा पणीनराधसो नि बाधस्व महाꣳ असि । न हि त्वा कश्च न प्रति ॥१३५५॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पदा । पणीन् । अराधसः । अ । राधसः । नि । बाधस्व । महान् । असि । न । हि । त्वा । कः । च । न । प्रति ॥१३५५॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1355
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आगे फिर जीवात्मा को उद्बोधन है।

    पदार्थ

    हे इन्द्र जीवात्मन् ! तू (अराधसः) दूसरों के कार्यों को सिद्ध न करनेवाले (पणीन्) स्वार्थभावों को (पदा) जैसे पैर की ठोकर मार कर किसी को दूर फेंक देते हैं, वैसे (नि बाधस्व) दूर फेंक दे, तू (महान्) महान् (असि) है, (त्वा) तुझे (कश्च न) कोई भी (प्रति नहि) प्रतिरुद्ध नहीं कर सकता है, अर्थात् तेरे मार्ग में रुकावट नहीं डाल सकता है ॥२॥ यहाँ ‘पदा’ में लुप्तोपमालङ्कार है ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे कोई पैर की ठोकर मार कर मार्ग की रुकावट को दूर फेंक देता है, वैसे ही जीवात्मा को चाहिए कि विघ्नरूप आन्तरिक शत्रुओं को दूर कर दे ॥२॥

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    पदार्थ

    (अराधसः पणीन्) राधनारहित—उपासनारहित स्तुतिकर्ताओं—ऊपर से उपासना प्रदर्शनकर्ताओं को (पदा निबाधस्व) पैर से ठुकराते हैं ऐसे ठुकरा दे—ठुकराता है (महान्-असि) तू महान् है (त्वा प्रति) तेरा प्रतिपक्षी—प्रतिरोधी या तेरा प्रतिमान—तेरे समान उपास्यदेव (न हि कश्चन) कोई भी नहीं है॥२॥

    विशेष

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    विषय

    कृपणता को कुचलना

    पदार्थ

    प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि ‘प्रागाथ' प्रभु का प्रकृष्ट गायन करनेवाला है । प्रभु अपने इस भक्त से कहते हैं कि (पणीन्) = कृपणों को, वणिक् वृत्तिवालों को, धर्म का वाणिज्य करनेवालों को (अराधसः) = वाणिज्य वृत्ति के कारण यज्ञ न करनेवालों को [not able to perform sacrifice] (पदा निबाधस्व) = पावों से पीड़ित कर, अर्थात् कृपणता व अयज्ञिय भावना को तू पाँवों तले कुचल डाल। ये वृत्तियाँ तुझे घृणित प्रतीत हों । (महान् असि) = तू तो उदार हृदय है, तेरे हृदय में स्वार्थपरता व लोभ के लिए स्थान नहीं है ।

    ऐसा करने पर (कश्चन) = कोई भी (त्वा प्रति नहि) = तेरा मुक़ाबला न कर सकेगा। तेरा जीवन अद्वितीय सौन्दर्य को लिये हुए होगा । वस्तुत: जीवन में मालिन्य को लानेवाला कार्पण्य ही है इसे हमें अवश्य जीतना ही चाहिए । इस वृत्ति से हमें घृणा होनी चाहिए, इसलिए मन्त्र में इसे पाँवों तले रौंद देने को कहा है। घृणा उत्पन्न करने के लिए इससे अधिक सुन्दर और क्या कहा जा सकता है कि उसे पाँवों तले कुचल दिया जाए।

    भावार्थ

    कृपणता को कुचल कर ही हम अपना कुशल कर सकते हैं ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे (इन्द्र) ज्ञानवन् ! (पणीन्) केवल अदले बदले के व्यवहार को करने हारे, धन लोभी (अराधसः) यज्ञादि द्वारा आराधना न करने हारे मूर्ख पुरुषों को अपने (पदा) ज्ञान से (नि बाधस्व) पूर्ण रूप से पीड़ित कर अर्थात् उनकी लोभवृत्ति को नाश करदे। तू (महान्) सबसे बड़ा (असि) है। (त्वा प्रति) तेरे मुकाबले में (कः चन) कोई भी (नहि) नहीं है।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१, ६ मेधातिथिः काण्वः। १० वसिष्ठः। ३ प्रगाथः काण्वः। ४ पराशरः। ५ प्रगाथो घौरः काण्वो वा। ७ त्र्यरुणत्रसदस्यू। ८ अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वरा। ९ हिरण्यस्तूपः। ११ सार्पराज्ञी। देवता—१ इध्मः समिद्धो वाग्निः तनूनपात् नराशंसः इन्द्रश्चः क्रमेण। २ आदित्याः। ३, ५, ६ इन्द्रः। ४,७-९ पवमानः सोमः। १० अग्निः। ११ सार्पराज्ञी ॥ छन्दः-३-४, ११ गायत्री। ४ त्रिष्टुप। ५ बृहती। ६ प्रागाथं। ७ अनुष्टुप्। ४ द्विपदा पंक्तिः। ९ जगती। १० विराड् जगती॥ स्वरः—१,३, ११ षड्जः। ४ धैवतः। ५, ९ मध्यमः। ६ गान्धारः। ८ पञ्चमः। ९, १० निषादः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनर्जीवात्मानमुद्बोधयति।

    पदार्थः

    हे इन्द्र जीवात्मन् ! त्वम् (अराधसः) परकार्याऽसाधकान् (पणीन्) स्वार्थभावान् (पदा) पादाघातेन इव (नि बाधस्व) दूरं प्रक्षिप, त्वम् (महान्) महिमोपेतः (असि) विद्यसे। (त्वा) त्वाम् (कश्चन) कोऽपि (प्रति नहि) प्रतिरोद्धुं न शक्नोति ॥२॥ अत्र पदा पादेन इव इति लुप्तोपमालङ्कारः ॥२॥

    भावार्थः

    यथा कश्चित् पादाघातेन मार्गप्रतिबन्धकमपसारयति तथैव जीवात्मना विघ्नभूता आभ्यन्तराः शत्रवोऽपनेयाः ॥२॥

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    इंग्लिश (4)

    Meaning

    O God, crush With Thy might, the niggard, and those foolish persons who spend not their money on the performance of Yajnas. Mighty art Thom There is not one to equal Thee!

    Translator Comment

    $ The learned person refers to the person mentioned in the previous verse. The word रोदसी may also mean Prana and Apana, this world and the next world, heaven and earth.

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    Meaning

    Keep off under foot the haves who hoard and share not. You are great, simply great, the only one. There is none equal, alike or more. (Rg. 8-64-2)

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    Translation

    Crush with Thy foot (so to speak ) the niggard churls or wicked people who do not give in charity and are not Thy worshippers. Mighty and Great art Thou. There is no one to equal Thee. [God destroys wicked selfish people with His Might, as Dispenser of justice.]

    Comments

    (पणीत्) - पण व्यवहारे इति धातो परिणशब्दो निष्पद्यते अराधस इति विशेषणबलादत्र दुष्टव्यवहारवतां परिणशब्देन ग्रहणम ।

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    Translation

    May you crush with your foot the niggard churls who offer no homage. you are powerful; there is none so powerful as you are.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अराधसः पणीन्) રાધનારહિત-ઉપાસનારહિત સ્તુતિકર્તાઓ-ઉપરથી ઉપાસનાનું પ્રદર્શન કરનારાઓને (पदा निबाधस्व) પગોથી ઠુકરાવે છે. એવી રીતે ઠુકરાવી દે-ઠુકરાવે છે. (महान् असि) તું મહાન છે (त्वा प्रति) તારા પ્રતિપક્ષી-પ્રતિરોધી અથવા તારા પ્રતિમાન-તારા સમાન ઉપાસ્યદેવ (न हि कश्चन) કોઈ પણ નથી. (૨)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा एखादा माणूस पायाने ठोकर मारून मार्गातील अडथळे दूर कराते, तसेच जीवात्म्याने विघ्नरूपी आंतरिक शत्रूंना दूर करावे. ॥२॥

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